(यह अतुल की कहानी है, जिसे भारत में चरमपंथी इस्लामिस्टों ने निशाना बनाकर उसे चरमपंथी बनाने की कोशिश की. ISIS की तरफ उसका रुझान बढ़ गया, पर इससे पहले कि वह अपने नए मत के अनुसार कुछ करता, एंटी टेररिस्ट स्क्वाड ने उसे हिरासत में ले लिया. अब उसने उस विचारधारा से दूरी बना ली है, जो उसे आतंकवादी संगठन के करीब ले आई थी. द क्विंट की यह एक्सक्लूसिव स्टोरी दो भागों में प्रकाशित की जाएगी. यह पहला भाग है.)
जब अतुल (पहचान सुरक्षित रखने के लिए बदला गया नाम) इस विचारधारा की ओर आकर्षित हुआ, तब वह टीनएजर था और उसे कोई अंदाजा नहीं था कि उसे चरमपंथी बनाया जा रहा है. उसे पता ही नहीं चला कि कब उसका झुकाव इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया (ISIS) की ओर हो गया.
जब वह 21 साल का हुआ, तो अचानक पुणे में रहने वाले अपने हिंदू परिवार को छोड़कर इस्लाम सीखने चला गया. पिता को दिल का दौरा पड़ने के बावजूद उसने अरबी भाषा सीखी, हदीस सीखा और यहां तक कि अपनी पहचान भी बदल ली. उसने नया नाम रख लिया, दाढ़ी उगा ली और अपने कपड़े पहनने का ढंग बदल लिया.
घर छोड़ने के 14 महीने बाद, एक दिन उसने अपने आपको महाराष्ट्र एटीएस के पुणे ऑफिस में सादी वर्दी में बैठे अधिकारियों को खुद को समझाते हुए पाया.
एसीपी भानुप्रताप बार्के, पुणे एटीएसउसके फोन से हमें इतनी सामग्री मिल गई थी कि हम उसके ISIS के प्रति झुकाव के बारे में जान गए. जब उसके पिता ने उसका मोबाइल देखने के बाद हमें भेज दिया, हमने पाया कि वह ISIS की वेबसाइट को देख रहा था. उसके फोन में ISIS की तस्वीरें थीं. यहां तक कि उसके फोन में लश्कर-ए-तैयबा (LeT) की भी तस्वीरें थीं. पर चूंकि अभी तक उसने कोई आपराधिक काम नहीं किया था, तो उसे डीरेडिकलाइज कर, उसके परिवार से मिला दिया गया.
ऐसे हुई शुरुआत...
पुणे के एटीएस ऑफिस से बातचीत करते हुए अतुल ने द क्विंट को बताया कि यह सब 2008 में शुरू हुआ, जब वह महाराष्ट्र के बीड जिले में इलेक्ट्रिकल इन्जीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था.
अपनी क्लास में वह एक ‘बेहद कुलीन’ मुस्लिम लड़के से मिला, जिसने उसका ध्यान इस्लाम की ओर आकर्षित करना शुरू किया. जैसे-जैसे उनकी दोस्ती बढ़ी, उसी के साथ इस्लाम में अतुल का रुझान भी बढ़ता गया.
अतुलहालांकि मैं हिंदू हूं, पर उसके पास मुझे अपने सवालों के जवाब मिलने लगे. जिस तरह वह इस्लाम की व्याख्या करता था, उसके शब्दों में, उसके नम्रता भरे भाषणों में मैं खुद को ढूंढने लगा. यह सुनने में अजीब लगेगा, पर उससे मेरा जुड़ाव कुछ ऐसा हो गया था कि शब्दों में बताया नहीं जा सकता. उसका मेरे ऊपर बहुत ज्यादा प्रभाव था. उसके जरिए मैं कुछ व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़ा. यहां तक कि मैंने अपने 4 ग्रुप बना लिए. उसने इंटरनेट के माध्यम से कई लोगों से मेरा परिचय कराया, सोशल नेटवर्क, चैट रूम और प्राइवेट मैसेंजर्स पर मेरी उनसे बातें होने लगीं. वे लोग मेरे साथ ऐसी तस्वीरें और वीडियो आदि शेयर करते कि मैं इस धर्म के साथ भावनात्मक रूप से जुड़ने लगा.
अहमदाबाद का मदरसा
अगले पांच साल में वह कई और लोगों से मिला. इस्लाम पर उसने गहरा रिसर्च किया और इस्लाम में उसकी दिलचस्पी गहरी होती चली गई.
जब उसकी शुरुआती उत्सुकता बहुत आगे तक बढ़ गई, तो जुलाई 2014 में उसने पुणे का अपना घर छोड़ दिया. बिना माता-पिता को एक शब्द कहे, घर का सबसे छोटा बेटा घर से गायब हो गया था.
उसके माता-पिता ने गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई, दोस्तों से पता किया, कॉलेज में पूछा, हर परिचित के घर की तलाशी ले ली, पर अतुल का कहीं पता न था. अतुल अहमदाबाद जाकर एक मदरसे में रह रहा था.
अहमदाबाद जाने से पहले व्हाट्सएप पर मैंने वहां के लोगों से संपर्क बना लिए थे. उन्होंने मुझसे कहा कि वे मेरे रहने की व्यवस्था कर देंगे और मुझे वो सब सिखाएंगे जिसकी मुझे जरूरत थी. जब मैं अहमदाबाद पहुंचा, तो देखा वहां मेरे जैसे कई लोग थे, जो धर्म परिवर्तन कराने आए थे. वे इंटीरियर डिजाइनर्स थे, इंजीनियर्स थे, बिजनेसमैन थे, यहां तक कि शादीशुदा जोड़े भी थे. अहमदाबाद में 40 दिन बिताने के बाद उन्होंने मुझे दिल्ली भेज दिया और फिर उत्तर प्रदेश. यूपी में मैंने दूसरे मदरसे में 8 महीने बिताए. उन्होंने मुझे अरबी और उर्दू सिखाई; मैंने पवित्र कुरान भी सीखी. वे हमें सिखाते थे कि हम कैसे बोलें, कैसे व्यवहार करें, कैसे समय बिताएं और हमारा जीवन कैसा होना चाहिए. मैं हर बात मानता था. पांचों वक्त नमाज पढ़ता था. यहां तक कि मैंने अपनी दाढ़ी बढ़ा ली और एक नई पहचान बना ली. मुझे कभी शक नहीं हुआ कि मैं गलत लोगों के साथ था या किसी अमानवीय काम को अंजाम देने के लिए मेरा ब्रेनवॉश किया जा रहा था. मैं तो बस वहां इस्लाम सीखकर खुद को तलाशने गया था और मुझे इन लोगों ने जो बना दिया था, वह बनकर मैं खुश था.
उत्तर प्रदेश के बाद अतुल वापस अहमदाबाद आ गया, जहां उसने अगले 4 महीने एक और मदरसे में बिताए. उसे एक मौलवी बनने की ट्रेनिंग दी जा रही थी.
इस्लाम ने उसे जो सिखाया था, उससे वह खुश था. वे महान शिक्षाएं थीं. उन्होंने उसे बच्चों से नरमी से बात करना सिखाया, गुस्से पर काबू पाना सिखाया, महिलाओं का सम्मान करना सिखाया और अपनी चीजों को जरूरतमंदों के साथ बांटना सिखाया. वह घर छोड़ने के अपने फैसले से संतुष्ट था, अपने परोपकारी निर्वाण से खुश था.
पर एटीएस के मुताबिक, उसे पता ही नहीं लगा कि धीरे-धीरे वह दुनिया के सबसे बड़े आतंकी संगठन ISIS के लिए सहानुभूति जताने लगा था.
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