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"गिरफ्तारी का नहीं बताया आधार", प्रबीर पुरकायस्थ के अरेस्ट को SC ने क्यों बताया अवैध?

Newsclick Case: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कार्रवाई मनमाने ढंग से नहीं की जा सकती है.

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चीन से अवैध फंडिंग लेने के आरोपों में UAPA के तहत गिरफ्तार न्यूजक्लिक (Newsclick) के फाउंडिंग एडिटर प्रबीर पुरकायस्थ (Prabir Purkayastha) की गिरफ्तारी को सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार, 15 मई को अमान्य करार दे दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, दिल्ली पुलिस (Delhi Police) पुरकायस्थ को हिरासत में लेने से पहले उनकी गिरफ्तारी का कारण बताने में विफल रही है.

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सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

प्रबीर पुरकायस्थ को रिमांड एप्लिकेशन की कॉपी नहीं दी गई थी, जो कि न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है. इसको आधार मानते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया.

"रिमांड एप्लिकेशन की कॉपी अपीलकर्ता को प्रदान नहीं की गई थी. पंकज बंसल मामले के बाद अपीलकर्ता की गिरफ्तारी को प्रभावित करता है."

इसके साथ ही कोर्ट ने कहा,

4 अक्टूबर, 2023 को रिमांड आदेश पारित करने से पहले पुरकायस्थ या उनके वकील को रिमांड आवेदन की एक कॉपी नहीं दी गई थी. इसका मतलब है कि उन्हें गिरफ्तारी का आधार लिखित में नहीं दिया गया था. दिल्ली पुलिस का मानना था कि गिरफ्तारी के आधार को लिखित में देने की जरूरत रिमांड आवेदन की कॉपी देने के साथ ही पूरी हो गई थी, लेकिन अदालत इससे सहमत नहीं हुआ.

इसीलिए गिरफ्तारी और रिमांड को कानून की नजर में अमान्य करार देते हुए कोर्ट ने पुरकायस्थ को रिहा करने का आदेश दिया.

जस्टिस बीआर गवई की अगुवाई वाली बेंच ने पुरकायस्थ की रिहाई का आदेश देते हुए कहा कि, पुरकायस्थ को जमानत की शर्त पूरी करने के बाद रिहा किया जाए, क्योंकि मामले में चार्जशीट दायर हो चुकी है.

गिरफ्तारी के टाइमिंग को लेकर सवाल

जस्टिस बीआर गवई की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि भले ही मामला आतंकी गतिविधि का है फिर भी कार्रवाई मनमाने ढंग से नहीं की जा सकती. बेंच ने कहा उचित प्रक्रिया के तहत ही कार्रवाई हो सकती है.

गिरफ्तारी की टाइमिंग की बात करें तो पुरकायस्थ को 3 अक्टूबर 2023 को सुबह करीब 6.30 बजे दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने गिरफ्तार किया था. गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) लगाते हुए, दिल्ली पुलिस ने आरोप लगाया कि न्यूजक्लिक को चीन समर्थक प्रचार के लिए फंड मिला है.

FIR में गंभीर अपराधों का उल्लेख है: यूएपीए की धारा 13 (गैरकानूनी गतिविधियां), 16 (आतंकवादी अधिनियम), 17 (टेररिस्ट एक्ट के लिए फंड जुटाना), 18 (साजिश), और 22 (सी) (कंपनियों, ट्रस्टों द्वारा अपराध), और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 153 ए (विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना) और 120 बी (आपराधिक साजिश).

केस में समस्या कहां पैदा होती है?

मामला यह है कि 4 अक्टूबर, 2023 को बिना किसी पूर्व सूचना के पुरकायस्थ को रिमांड सुनवाई के लिए सुबह 6.30 बजे एक विशेष न्यायाधीश के आवास पर ले जाया गया. पुरकायस्थ के वकीलों ने दावा किया कि उन्हें सुबह लगभग 7 बजे, एक फोन कॉल पर कार्यवाही के बारे में सूचित किया गया.

दिल्ली हाई कोर्ट के सामने अपने दलील में पुरकायस्थ ने कहा कि एक बिना साइन की हुई रिमांड कॉपी उनके वकीलों को व्हाट्सएप पर भेजी गई थी, जिसमें न तो गिरफ्तारी का समय लिखा था और न ही गिरफ्तारी का आधार बताया गया था.

हालांकि, रिमांड पर आपत्तियां सुबह 8 बजे से पहले दायर की गईं, पुरकायस्थ के वकीलों को बताया गया कि रिमांड आदेश पहले ही पारित किया जा चुका है, और सात दिनों की पुलिस हिरासत दी गई है.

आधिकारिक रिकॉर्ड से पता चलता है कि रिमांड आदेश पर सुबह 6 बजे हस्ताक्षर किए गए थे, जो कि पुरकायस्थ को न्यायाधीश के सामने पेश किए जाने या उनके वकीलों को सूचित किए जाने से भी पहले था. यहां तक ​​कि मामले की एफआईआर भी उनकी गिरफ्तारी के कुछ दिन बीतने के बाद ही सार्वजनिक की गई.

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गिरफ्तारी की वैधता को लेकर सवाल

पुरकायस्थ का मामला ये है कि उनकी गिरफ्तारी अवैध थी क्योंकि इसमें उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया था.

संविधान का अनुच्छेद 22 (1), जो गिरफ्तारी और हिरासत से सुरक्षा के बारे में है, कहता है: “गिरफ्तार किए गए किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तारी का आधार बताए बिना हिरासत में नहीं रखा जा सकता और उसे अपनी पसंद के वकील से कानूनी सलाह लेने के अधिकार से भी नहीं रोका जा सकता.”

बता दें कि, जिस दिन पुरकायस्थ को गिरफ्तार किया गया था उसी दिन 3 अक्टूबर 2023 को पंकज बंसल बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संवैधानिक और वैधानिक आदेशों को सही अर्थ देने के लिए, "अब से यह जरूरी होगा कि गिरफ्तारी के ऐसे लिखित आधार की एक कॉपी गिरफ्तार किए जाने वाले व्यक्ति को बिना किसी अपवाद के दी जाए".

जबकि पंकज बंसल मामला मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम (PMLA) के तहत मनी लॉन्ड्रिंग अपराध से संबंधित था, यूएपीए में भी एक समान प्रावधान है, जिसके लिए गिरफ्तारी का आधार बताना जरूरी होता है. PMLA और UAPA कानून लगभग एक जैसे हैं इसलिए ये फैसला यूएपीए पर भी लागू माना जाएगा.

यहां जो 'टेक्निकैलिटी' (तकनीकी बात) बताई गई वो महत्वपूर्ण है क्योंकि पीएमएलए और यूएपीए जैसे कड़े कानूनों में जमानत देने की शर्तें बहुत ऊंची हैं, जिससे जमानत पाना लगभग असंभव हो जाता है. इसलिए, कड़े अपराधों में गैरकानूनी गिरफ्तारियों से सुरक्षा और भी महत्वपूर्ण है.

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दिल्ली पुलिस ने क्या कहा था?

दिल्ली पुलिस की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष दलील दी थी कि पुरकायस्थ के खिलाफ कथित अपराध "बहुत गंभीर हैं, और इस तरह इस अदालत को तकनीकी आधार पर हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए".

मेहता ने भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा, देश की स्थिरता और अखंडता का हवाला दिया था, और पुरकायस्थ और "अन्य संस्थाओं" के बीच ईमेल का लेन-देन का हवाला दिया था, जिसमें "जम्मू और कश्मीर राज्य और अरुणाचल प्रदेश को विवादित क्षेत्रों के रूप में दिखाया गया.

दिल्ली हाई कोर्ट ने 13 अक्टूबर को अपने आदेश में कहा था, "यहां तक ​​कि विशेष रूप से अरुणाचल प्रदेश के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले शब्द "भारत की उत्तरी सीमा" हैं, जो मेहता के अनुसार, आम तौर पर चीनी प्रचार के रूप में उपयोग किया जाता है."

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