"प्रेस को आजाद करो."
"ईमानदार पत्रकारिता का अपराधीकरण बंद करो."
ये कुछ पोस्टर थे, जो न्यूज पोर्टल न्यूजक्लिक पर दिल्ली पुलिस की कार्रवाई के खिलाफ बुधवार, 4 अक्टूबर को नई दिल्ली के प्रेस क्लब ऑफ इंडिया (Press Club of India) में पत्रकारों द्वारा किए गए विरोध प्रदर्शन में देखे गए. न्यूज पोर्टल, उसके कर्मचारियों और कॉन्ट्रिब्यूटर्स से जुड़े 35 से ज्यादा जगहों पर दिन भर तलाशी के बाद न्यूजक्लिक के संस्थापक प्रबीर पुरकायस्थ (Prabir Purkayastha) और इसके HR प्रमुख अमित चक्रवर्ती की UAPA के तहत गिरफ्तारी हुई. इसके एक दिन बाद यह विरोध-प्रदर्शन आयोजित किया गया.
इतिहासकार रामचंद्र गुहा, लेखिका अरुंधति रॉय, राजनीतिक कार्यकर्ता योगेन्द्र यादव, प्रशांत भूषण और राष्ट्रीय जनता दल (RJD) सांसद मनोज कुमार झा प्रेस क्लब की इस बैठक में शामिल लोगों में बड़े नाम थे.
'पहले कभी नहीं...': परंजॉय गुहा ठाकुरता ने रेड को 'अभूतपूर्व' बताया
एक बड़ी भीड़ को संबोधित करते हुए, अनुभवी पत्रकार परंजॉय गुहा ठाकुरता (जिनसे पुलिस ने मंगलवार को पूछताछ की थी) ने कहा कि वह उन कुछ लोगों में से एक थे, जिनके फोन और सिम कार्ड जब्त कर लिए गए थे.
ठाकुरता ने आपबीती सुनाते हुए बताया कि कैसे शुरुआत में अपने इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स को सरेंडर करने से इनकार करने के बाद उन्हें गुरुग्राम में उनके घर से ले जाया गया था.
“उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या मैं नेविल रॉय सिंघम को जानता हूं, तो मैंने उन्हें बताया कि मैं नहीं जानता. फिर उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या मैंने अमेरिका से एस. भटनागर से बात की है, तो मैंने उन्हें बताया कि मैंने बात की थी, क्योंकि वह मेरे बहनोई हैं.परंजॉय गुहा ठाकुरता, पत्रकार
मामला न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के आधार पर दायर किया गया है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि न्यूजक्लिक "चीनी प्रचार को बढ़ावा देने" के लिए अमेरिका स्थित टेक दिग्गज नेविल रॉय सिंघम द्वारा फंडेड संगठनों में से एक है.
उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा कि “आइए मान लेते हैं कि न्यूयॉर्क टाइम्स सही है. सवाल यह है कि इस सब में आतंक का पैसा कहां से आता है?"
मैसेज बिल्कुल साफ है. यह हर एक पत्रकार, हर एक स्वतंत्र पत्रकार के पास आ रहा है. कल (3 अक्टूबर) जो हुआ उसका इस देश में आजाद पत्रकारिता पर भयानक प्रभाव पड़ेगा...भारत में प्रेस और मीडिया के लिए मैं इसे एक काले दिन के रूप में देखता हूं.परंजॉय गुहा ठाकुरता, पत्रकार
परंजॉय गुहा ने दिल्ली पुलिस द्वारा की गई छापेमारी को 'अभूतपूर्व' बताया.
ठाकुरता ने द क्विंट से बात करते हुए कहा कि पहले भी पत्रकारों पर UAPA लगाया गया है. भीमा कोरेगांव मामले में शामिल कुछ लोग पत्रकार थे. इसलिए, ऐसा नहीं है कि यह पत्रकारों पर नहीं लगाया गया है, लेकिन इससे पहले कभी भी, डेढ़ महीने पहले दर्ज की गई FIR के आधार पर, दिल्ली पुलिस ने सुबह 6:30 बजे सैकड़ों पुलिसकर्मियों को पत्रकारों और कुछ गैर-पत्रकारों के घरों पर नहीं भेजा था.''
सीनियर पत्रकार परंजॉय गुहा ने कहा कि मुझे नहीं लगता कि 1975-77 के इमरजेंसी में भी आपने इस तरह का ऑपरेशन देखा था.
'पत्रकारों को आतंकित करने की कोशिश'
न्यूजक्लिक के साथ एकजुटता दिखाते हुए, मैन बुकर पुरस्कार विजेता लेखिका अरुंधति रॉय ने कहा कि बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार ने देश में प्रेस की आजादी को सीमित करने के लिए एक बार फिर UAPA का इस्तेमाल किया है.
अरुंधति रॉय ने द क्विंट से बात करते हुए कहा," उन्होंने पत्रकारिता और आतंकवाद के बीच की परिभाषा को खत्म कर दिया है. हमारे पास एक ऐसा प्रधानमंत्री है, जिसने अपने पूरे 10 सालों के कार्यकाल में एक भी प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित नहीं किया है. आप बोल सकते हैं कि ये प्रेस के लिए भारी अवमानना और अनादर है. उन्हें डराना और एक मैसेज देना है. मुझे लगता है कि यह सरकार की हताशा की भी निशानी है."
उन्होंने आगे कहा कि हमारे फोन हमारे शरीर में एक अंग हैं, आप जानते हैं. आप उनके बैंक डीटेल्स और ईमेल ले रहे हैं. आपको ऐसा करने का कोई अधिकार नहीं है. मुझे वास्तव में लगता है कि अदालतों को इस पर रोक लगानी चाहिए कि वे आकर आपके फोन नहीं छीन सकें.
प्रेस क्लब ऑफ इंडिया पहुंचे राजनीतिक कार्यकर्ता और स्वराज इंडिया के नेता योगेन्द्र यादव ने छापेमारी को "पत्रकारों को आतंकित करने की कोशिश" बताया.
योगेंद्र यादव ने द क्विंट से बात करते हुए कहा कि छापेमारी का तरीका, छापे का समय और जिन लोगों को चुना गया है... उनकी पसंद से इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह केवल पत्रकारों को एक मैसेज भेजने की कोशिश है. यह बिल्कुल साफ है कि ये (छापे) चीजें मनगढ़ंत हैं, बढ़ा-चढ़ाकर पेश की जाती हैं और बात सिर्फ आतंकित करने के लिए हैं.
'ध्यान भटकाने की रणनीति': RJD सांसद मनोज झा
राष्ट्रीय जनता दल (RJD) सांसद मनोज कुमार झा ने बिहार में जातीय जनगणना जारी होने के बाद छापेमारी को बीजेपी सरकार की "ध्यान भटकाने की रणनीति" बताया.
मनोज झा ने द क्विंट से बात करते हुए कहा कि बिहार सरकार द्वारा जातीय जनगणना रिपोर्ट जारी करने से वे (बीजेपी) नाराज हो गए हैं. वे डेटा और नंबर्स के खिलाफ हैं. इसलिए उन्होंने (न्यूजक्लिक कर्मचारियों पर छापेमारी) निर्देश दिया. हमने 2 अक्टूबर को रिपोर्ट जारी की. उन्होंने अगले दिन छापेमारी की लेकिन यकीन मानिए, उनकी पॉलिटिकल फिलॉस्फी खत्म होने वाली है.
मनोज झा ने कहा कि हम आज विरोध क्यों कर रहे हैं? पूछताछ के लिए तलब किए जाने वाले पत्रकारों की लिस्ट देखिए. वे अपनी नैतिकता नहीं बेचेंगे, वे झुकेंगे नहीं. वे आपके (सरकार) सामने सलाम नहीं करेंगे. वे आपको बेनकाब करते रहे. उन्होंने कांग्रेस को भी नहीं बख्शा. लेकिन आप (सरकार) अद्वितीय हैं. आप उन लोगों के पीछे ईडी भेजते हैं, जो आपसे सवाल करते हैं. आप उन्हें डराते हैं. आप उन्हें धमकी देते हैं. यह सभी फासीवादी सरकारों की परंपराएं हैं.
'एक लंबी लड़ाई'
The Wire के संस्थापक संपादक और 11-सदस्यीय डिजिटल समाचार संघ, DigiPUB के सदस्य, सिद्धार्थ वरदराजन ने द क्विंट से बात करते हुए कहा कि छापे पत्रकारिता गतिविधि पर दबाव डालने के लिए एक "स्मोकस्क्रीन" थे.
सिद्धार्थ वरदराजन ने सवाल उठाते हुए कहा
आरोप यह है कि आपने अमेरिका में एक निवेशक से पैसा लिया और वह व्यक्ति चीनियों का करीबी है. खैर, भारतीय कंपनियों ने सीधे चीनी कंपनियों से निवेश लिया है. क्या इसे भारत में अपराध माना जाता है. अगर हां, तो आप उन सभी कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई करने जा रहे हैं, जिनके पास चीनी वित्तपोषण है?
उन्होंने द क्विंट को बताया कि यह पूरी बात एक अटैक को बदनाम करने और वैध, सच्ची पत्रकारिता गतिविधि पर दबाव डालने के लिए सिर्फ एक दिखावा है. यह इस उम्मीद में की गई कि डिजिटल मीडिया के इस संपन्न पारिस्थितिकी तंत्र को किसी तरह से डराया जाएगा और पीछे हटने के लिए मजबूर किया जाएगा या शायद जनता डर जाएगी क्योंकि सरकार उन्हें 'राष्ट्र-विरोधी' के रूप में पेश करती है. यही यहां का एजेंडा है.
PCI अध्यक्ष गौतम लाहिड़ी ने इसे "लंबी लड़ाई" बताते हुए कहा कि ज्यादा पत्रकारों को परेशान किया जाएगा... हम सरकार के आभारी हैं कि वे हमें उनके खिलाफ विरोध करने का मौका दे रहे हैं और वे हमें एकजुट कर रहे हैं.
बुधवार को 18 मीडिया संगठनों ने भारत के चीफ जस्टिस DY चंद्रचूड़ को पत्र लिखकर उन मामलों में हस्तक्षेप करने की मांग की, जहां पत्रकारों को सरकार की ओर से कार्रवाई का सामना करना पड़ रहा है.
पत्र में गुजारिश की गई कि न्यायपालिका "मौलिक सत्य के साथ सत्ता का सामना करे - कि एक संविधान है जिसके प्रति हम सभी जवाबदेह हैं" और कहा गया कि UAPA का उपयोग "विशेष रूप से डरावना" था.
इस बीच, न्यूजक्लिक के संस्थापक प्रबीर पुरकायस्थ और HR चीफ अमित चक्रवर्ती को सात दिनों की पुलिस हिरासत में भेज दिया गया है. दिल्ली की एक कोर्ट ने बुधवार को UAPA मामले के तहत दायर प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) की एक कॉपी की मांग करने वाली पुरकायस्थ की याचिका पर पुलिस को नोटिस भी जारी किया.
न्यूज पोर्टल ने आरोप लगाया था कि उनके खिलाफ दर्ज की गई FIR की कॉपी उपलब्ध नहीं कराई गई है.
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