सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मुस्लिम समुदाय में बहुविवाह प्रथा और निकाह हलाला की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर जल्द सुनवाई से इनकार कर दिया. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने कहा कि केंद्र सरकार के अपना जवाब दाखिल करने के बाद उचित अवधि (इन ड्यू कोर्स) में मामले की सुनवाई की जाएगी.
पीठ ने याचिकाकर्ता समीना बेगम से कहा, "सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ उचित अवधि (इन ड्यू कोर्स) में मामले की सुनवाई करेगी."
समीना बेगम ने मंगलवार को याचिका पर सुनवाई का अनुरोध किया था और कहा था कि उसे याचिका वापस लेने के लिए धमकियों का सामना करना पड़ रहा है.
केंद्र सरकार ने याचिका पर अपना जवाब दाखिल करने के लिए और समय की मांग की थी, जिसे पीठ ने मंजूरी दे दी थी.
इससे पहले केंद्र सरकार को नोटिस जारी करते हुए अदालत ने कहा था कि हालांकि ये प्रथाएं मुस्लिम पसर्नल लॉ के तहत अमल में लाइ जा रही हैं, लेकिन यह संविधान के तहत न्यायिक समीक्षा से मुक्त नहीं हैं.
समीना बेगम, नफीसा खान, मौअल्लियम मोहसिन और बीजेपी नेता और वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने बहुविवाह प्रथा, निकाह हलाला, निकाह मुता (शिया समुदाय में अस्थाई विवाह की प्रथा) और निकाह मिस्यार (सुन्नी समुदाय में कम अवधि के विवाह की प्रथा) को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है और इन्हें संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन बताया है.
संविधान का अनुच्छेद 14 कानून के समक्ष समानता की गारंटी, अनुच्छेद 15 धर्म, जाति, लिंग, स्थान और जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव को प्रतिबंधित और अनुच्छेद 21 जिंदगी और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा की गारंटी देता है.
उपाध्याय ने अदालत से कहा कि अलग-अलग धार्मिक समुदायों को विभिन्न व्यक्तिगत कानूनों द्वारा शासित किया जाता है. उन्होंने दलील दी कि व्यक्तिगत कानूनों को संवैधानिक वैधता और नैतिकता के मानदंडों को पूरा करना होगा, क्योंकि वे संविधान के अनुच्छेद 14, 15,21 का उल्लंघन नहीं कर सकते.
मुस्लिम महिलाओं पर बहुविवाह प्रथा, निकाह हलाला और अन्य प्रथाओं के पड़ रहे 'भयावह प्रभाव' को चिह्नित करते हुए वरिष्ठ वकील मोहन पारासरन ने अदालत को बताया कि 2017 के फैसले ने तीन तलाक को असंवैधानिक जरूर करार दिया, लेकिन इन दो मुद्दों को हल नहीं किया गया था.
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(इनपुटः IANS)
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