2012 दिल्ली गैंगरेप पीड़िता निर्भया के माता-पिता की वकील सीमा कुशवाहा अब 19 साल की हाथरस पीड़िता के परिवार का केस भी लड़ेंगी. पीड़ित परिवार के एक सदस्य ने क्विंट को बताया कि कुशवाहा के साथ इस केस में भीम आर्मी के लीगल एडवाइजर एमएस आर्य और राजरत्न अंबेडकर भी शामिल होंगे. राजरत्न डॉ बीआर अंबेडकर के परपोते हैं और बुद्धिस्ट सोसाइटी ऑफ इंडिया के चेयरपर्सन हैं.
क्विंट से बात करते हुए सीमा कुशवाहा ने कहा:
“मैं हाथरस की रेप पीड़िता के परिवार का प्रतिनिधित्व करूंगी. हमने वकालतनामा साइन किया है. मैं तब तक लड़ूंगी, जब तक हाथरस की बेटी को न्याय नहीं मिल जाता है. हमें तब तक लड़ना होगा, जब तक महिला सुरक्षा सबसे पहली प्राथमिकता नहीं बन जाती.”
19 साल की दलित लड़की की 29 सितंबर को मौत हो गई थी. लड़की का कथित रूप से गैंगरेप किया गया था. ये घटना पूरे देश की नजरों में उस समय आई, जब उत्तर प्रदेश पुलिस ने आधी रात में परिवार की मर्जी और मौजूदगी के बिना लड़की के शव का अंतिम संस्कार कर दिया था.
यूपी पुलिस ने कुशवाहा को पीड़ित परिवार से मिलने से रोका
लड़की की मौत के दो दिन बाद 1 अक्टूबर को कुशवाहा हाथरस गई थीं. लेकिन यूपी पुलिस ने उन्हें रोक दिया था.
सुप्रीम कोर्ट की वकील ने ANI को बताया, “मैं पूछना चाहती हूं कि मेरी पीड़ित परिवार से मुलाकात कैसे कानून-व्यवस्था की स्थिति बिगाड़ सकती थी. मैं यहां एक व्यक्ति के तौर पर आई थी, मैं कैसे कोई कानून-व्यवस्था की दिक्कत पैदा कर सकती है. एक निजी वकील के तौर पर मैं अपनी मदद देना चाहती थी.”
उसके बाद से सीमा कुशवाहा परिवार से दो बार मिल चुकी हैं. उन्होंने क्विंट को बताया कि परिवार उनके साथ फोन पर तब से संपर्क में है, जब से पीड़ित लड़की को अलीगढ़ के अस्पताल से दिल्ली लाया गया था.
कुशवाहा निर्भया की आवाज कैसे बनी थीं?
उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के उग्गरपुर गांव में जन्मीं सीमा कुशवाहा राजधानी दिल्ली में एक लॉ ट्रेनी थीं, जब 2012 में निर्भया गैंगरेप हुआ था. जब 29 दिसंबर 2012 को निर्भया की मौत हुई तो कुशवाहा ने उसकी याद में एक सभा रखी और निर्भया के माता-पिता को भी बुलाया.
कुशवाहा निर्भया के माता-पिता से तब से संपर्क में थीं, लेकिन उन्होंने केस लड़ना 2014 में ही शुरू किया था. कुशवाहा ने सुप्रीम कोर्ट में चार व्यस्क दोषियों के लिए फांसी की मांग की थी.
कुशवाहा ने NDTV के साथ एक इंटरव्यू में बताया था, "जैसे-जैसे और जानकारी आती गई, मेरे अंदर कुछ बदल गया. मैंने आंसू पोछे. पूरी जिंदगी मैं अपने लिए लड़ी थी, लेकिन वो समय घर बैठकर रोने का नहीं था, बल्कि वो समय बाहर जाकर लड़ने का था."
सात साल बाद, तीन डेथ वारंट और अनगिनत दिनों के इंतजार के बाद चार दोषियों को 20 मार्च 2020 को फांसी दी गई.
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