केंद्र सरकार (Central Governmnet) ने मंगलवार, 30 नवंबर को कहा कि किसान आंदोलन में मरने वाले किसानों का कोई आंकड़ा नहीं है, इसलिए उन्हें मुआवजा देने का कोई सवाल ही नहीं है. आईएनएस के मुताबिक, "तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को निरस्त करने की मांग को लेकर साल भर के आंदोलन के दौरान मरने वाले किसानों की संख्या से संबंधित कोई डेटा नहीं है और इसलिए वित्तीय सहायता प्रदान करने का कोई सवाल ही नहीं है."
केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने मंगलवार को लोकसभा में कुछ सांसदों द्वारा उठाए गए 'कृषि कानूनों के आंदोलन' पर पूछे गए सवालों के जवाब में यह बात कही है.
सांसदों ने पूछा था कि आंदोलन के संबंध में किसानों के खिलाफ दर्ज मामलों की संख्या, राष्ट्रीय राजधानी में और उसके आसपास हुए आंदोलन के दौरान मारे गए किसानों की संख्या पर डेटा, विरोध के दौरान मारे गए किसानों के परिजनों को सहायता और क्या सरकार ने वित्तीय सहायता प्रदान करने का प्रस्ताव किया था. जिस पर जवाब आया-
इस मामले में सरकार के पास कोई रिकॉर्ड नहीं है इसलिए वित्तीय सहायता प्रदान करने का सवाल नहीं उठता है.
हांलाकि आंदोलन का नेतृत्व करने वाले संयुक्त किसान मोर्चा ने दावा किया है कि पिछले साल से अब तक आंदोलन के दौरान लगभग 700 किसान अपनी जान गंवा चुके हैं.
तीन विवादास्पद कानूनों को निरस्त करने की मुख्य मांगों के अलावा जिन्हें अब आधिकारिक रूप से संसद द्वारा निरस्त कर दिया गया है, किसानों की मांग है कि एक साल से अधिक समय से चल रहे आंदोलन के दौरान किसानों के खिलाफ मामलों को वापस लिया जाए और इस दौरान शहीद हुए किसानों के परिवारों को मुआवजा दिया जाए.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)