आपराधिक या भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे सरकारी अधिकारियों को पासपोर्ट के लिए विजिलेंस डिपार्टमेंट से मंजूरी नहीं दी जाएगी. कार्मिक मंत्रालय की नई गाइडलाइंस में ऐसा कहा गया है.
संबंधित अथॉरिटी उस मामले में फैसले ले सकती है, जिसमें ऐसे अधिकारियों को मेडिकल इमरजेंसी जैसी आपात स्थितियों के कारण विदेश जाने की जरूरत हो.
दिशा-निर्देशों में कहा गया है कि अगर किसी अधिकारी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हों और जांच लंबित हो, एफआईआर दर्ज की जा चुकी हो, अधिकारी के खिलाफ किसी सरकारी बॉडी ने मामला दर्ज कर रखा हो या अधिकारी सस्पेंड हो, तो विजिलेंस डिपार्टमेंट से मंजूरी को रोक कर रखा जा सकता है.
अगर किसी आपराधिक मामले में जांच एजेंसी ने कोर्ट में आरोप पत्र दायर कर दिया हो और मुकदमा लंबित हो, भ्रष्टाचार निरोधक कानून या किसी दूसरे आपराधिक मामले में जांच की मंजूरी दी जा चुकी हो, अनुशासनात्मक कार्रवाई में अधिकारी के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया गया हो या कार्यवाही लंबित हो, तो ऐसी स्थिति में भी विजिलेंस डिपार्टमेंट से पासपोर्ट के लिए मंजूरी नहीं मिलेगी.
मंत्रालय के दिशा-निर्देशों के मुताबिक, निजी शिकायत या दर्ज रिपोर्ट के आधार पर विजिलेंस डिपार्टमेंट मंजूरी को रोक कर नहीं रख सकता. एफआईआर के बारे में इनफॉर्मेशन पासपोर्ट ऑफिस के पास होनी चाहिए. साथ ही कहा गया है कि मामले पर अंतिम फैसला पासपोर्ट जारी करने वाला प्राधिकरण लेगा.
सिविल सेवा अधिकारियों को भारतीय पासपोर्ट हासिल करने के लिए विजिलेंस डिपार्टमेंट से मंजूरी की जरूरत होती है. मंत्रालय ने सभी केंद्रीय सरकारी विभागों के सचिवों को जारी किए आदेश में कहा:
ऐसी स्थितियां भी हो सकती है जिसमें सिविल सेवकों के विदेशों में रह रहे परिजन को मेडिकल इमरजेंसी हो सकती है या कोई पारिवारिक कार्यक्रम हो सकता है. खुद अधिकारी को इलाज के लिए विदेश जाने की जरूरत हो सकती है. इसलिए एक नीति के तौर पर सामान्यत: अगर अधिकारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही लंबित है, तो उसे पासपोर्ट जारी नहीं किया जाएगा.
हालांकि सक्षम प्राधिकरण इस पर विचार कर सकता है कि क्या मेडिकल इमरजेंसी जैसी आपात स्थिति के कारण अधिकारी की विदेश यात्रा जरूरी है.
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