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मुस्लिमों को देश से बाहर करने का हथियार है असम का NRC: यूएस कमीशन

अमेरिकी कमीशन की रिपोर्ट के मुताबिक NRC लोगों के वोट देने के अधिकार छीनने की सोची-समझी चाल है

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भारत
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अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वंत्रता पर अमेरिका की एक फेडरल कमीशन ने कहा है कि असम का एनआरसी धार्मिक अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने का औजार है. यह मुस्लिमों को देश से बाहर करने की कोशिश है.

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NRC से बाहर हैं 19 लाख लोग

असम की एनआरसी लिस्ट से 19 लाख लोग बाहर हैं. इतने लोगों को बाहर रखे जाने पर यूएस कमीशन ऑन इंटरनेशनल रिलिजियस फ्रीडम ने (USCIRF) ने कहा कि कई घरेलू और अंतररराष्ट्रीय संगठनों ने एनआरसी पर चिंता जताई है और कहा है कि यह बंगाली मुस्लिमों के वोट के अधिकार छीनने का सोची-समझी चाल है. इस पूरी कवायद से नागरिकता के लिए धार्मिकता की जरूरत स्थापित करने की कोशिश हो रही है. और इससे बड़ी तादाद में मुस्लिमों के राज्य विहीन होने का खतरा पैदा हो गया है.

पॉलिसी विश्लेषक हैरिसन अकिन्स की ओर से तैयार रिपोर्ट में USCIRF ने कहा है कि अगस्त 2019 में एनआरसी लिस्ट रिलीज करने के बाद बीजेपी सरकार ने ऐसे कदम उठाए हैं, जिससे मुस्लिमों के प्रति पूर्वाग्रह दिखता है.

असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस सबसे पहले 1951 में बनाया गया था ताकि ये तय किया जा सके कि कौन इस राज्य में पैदा हुआ है और भारतीय है और कौन मुस्लिम बहुल बांग्लादेश से आया है.
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इस साल अगस्त में इस रजिस्टर को पहली बार अपडेट किया गया. इसमें 19 लाख लोगों को नाम नहीं थे. इन लोगों को अपनी नागरिकता साबित करने के लिए अब फॉरनर्स ट्रिब्यूनल में अपना दावा पेश करना होगा. इसमें उन लोगों को भारतीय नागरिक के तौर पर स्वीकार किया जाना है जो ये साबित कर पाएं कि वे 24 मार्च 1971 से पहले से राज्य में रह रहे हैं.ये वो तारीख है जिस दिन बांग्लादेश ने पाकिस्तान से अलग होकर अपनी आजादी की घोषणा की थी.

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विदेश मंत्रालय ने अपने जवाब में कहा है कि एनआरसी संवैधानिक, पारदर्शी और कानूनी प्रक्रिया है, जिसे सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी मिली हुई है.

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