पिछले पांच सालों में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT), भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM) जैसे राष्ट्रीय संस्थानों से ड्रॉपआउट की संख्या में गिरावट आई है. आईआईटी में 2015-16 में ड्रॉपआउट की दर 1626 (2.25 प्रतिशत) थी जो 2019-20 में घटकर 910 (0.68 प्रतिशत) हो गई है.
इंडियन एक्सप्रेस मे छपी खबर के मुताबिक मानव संसाधन और विकास मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, आईआईएम में 2015-16 में 1.04 प्रतिशत था, जो 2019-20 में घटकर 0.78 प्रतिशत हो गया है. मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल ने लोकसभा में अपने लिखित जवाब में कहा, ड्रॉपआउट को कम करने के लिए कई कदम उठाये गए जिसके चलते यह आंकड़ा हासिल हुआ, जिसमें सलाहकारों की नियुक्ति और छात्रों पाठ्यक्रम पर निगरानी शामिल है.
कैंपस प्लेसमेंट समेत कई उपायों से हुआ संभव
आईआईटी-दिल्ली के निदेशक वी रामगोपाल राव ने कहा, ड्रॉपआउट की संख्या में सुधार उनके द्वारा पेशेवर पाठ्यक्रम, अंग्रेजी भाषा सीखने और बेहतर कैंपस प्लेसमेंट सहित कई उपायों के कारण हुआ है. छोड़ने वालों में से ज्यादातर छात्रों ने क्लास के नियम का पालन नहीं किया, क्योंकि शिक्षक अंग्रेजी में पढ़ाते हैं. इसे ध्यान में रखते हुए, IIT ने उन छात्रों के लिए 2019 में अंग्रेजी भाषा पर क्लासे शुरू की, जिनसे उन्हें लाभ मिला और कई ने अपने पहले सेमेस्टर की तुलना में दूसरे वर्ष में बेहतर अंक हासिल किये.
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) में हर साल M.Tech की 15-20 प्रतिशत सीटें खाली रह जाती है. IIT ने सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की प्रवेश प्रक्रिया को ड्रॉपआउट का प्रमुख कारण माना.
एमटेक छात्रों के बीच ड्रॉपआउट की जांच के लिए विश्वविद्यालय ने कॉमन ऑफर एक्सेप्टेंस पोर्टल (COAP) शुरू किया. COAP पोर्टल एक सामान्य मंच प्रदान करता है जो छात्रों, संस्थान और नौकरी देने वालों को जोड़ता है.
2018 में IIT-Delhi में MTech पाठ्यक्रमों में प्रवेश पाने वाले 301 छात्रों में से 74 छात्रों ने सीटें खाली छोड़ दी थी. मुंबई और मद्रास के आईआईटी में खाली सीटों की संख्या 45.01 प्रतिशत और 19.25 प्रतिशत थी.
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेन्ट्स (IIM) में ड्रॉपआउट की संख्या 0.78 प्रतिशत तक कम हो गई, कम से कम 13 IIM पिछले शैक्षणिक वर्ष 2019-20 में कोई ड्रॉपआउट दर नहीं गिन रहे है.
आईआईएम संबलपुर के निदेशक महादेव जायसवाल ने कहा, 2016 में आखिरी ड्रॉपआउट देखा गया था, जब 30 प्रतिशत छात्रों ने पाठ्यक्रमों को बीच में ही छोड़ दिया था. लेकिन 2017 से संस्थान में कोई भी गिरावट नहीं देखी.
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