ADVERTISEMENTREMOVE AD

नर्सरी एडमिशन फिर ले आया पैरेंट्स के लिए सिरदर्द!

दिल्ली में हर साल कई पैरेंट्स को अपने बच्चों के नर्सरी एडमिशन को लेकर टेंशन से गुजरना पड़ता है.

Published
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

दिल्ली के स्कूलों में नर्सरी में अपने बच्चे का दाखिला कराना जंग जीतने से कम नहीं है. जब दिल्ली के हौजखास में रहने वाली शालिनी दत्त चन्नी ने द क्विंट को बताया कि कैसे उनकी बेटी का नर्सरी एडमिशन के लिए एप्लीकेशन रिजेक्ट किया गया था. तो उनकी इस बात से अनजाने ही उस समस्या के बारे में पता चला जिनसे दिल्ली में हर साल कई पैरेंट्स को गुजरना पड़ता है.

हमने जिन स्कूलों में अप्लाई किया था उनमें से 15 स्कूल की तरफ से कोई रेस्पांस नहीं आया. कोई आॅप्शन नहीं था. लेकिन प्ले स्कूल ने नर्सरी प्रोग्राम शुरू किया. और हमने उसकी स्कूलिंग वहीं जारी रखी.
शालिनी दत्त चन्नी

दिल्ली के कई पैरेंट्स को इसी तरह अनिश्चितता की दुनिया में फेंक दिया जाता है, जब 1500 से ज्यादा जाने-माने प्राइवेट स्कूल हर साल दिसंबर के अंत में नर्सरी एडमिशन प्रोसेस शुरू करते हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
चार गुना
नर्सरी एडमिशन के लिए आवेदन करने वालों की संख्या 1.25 लाख सीटों से चार गुना ज्यादा होती हैं.

इस साल 27 दिसंबर से फाॅर्म मिलने शुरू हो गए हैं. एडमिशन प्रोसेस 31 मार्च 2018 तक खत्म होने के आसार हैं. ये प्रोसेस 100 पाॅइंट सिस्टम के आधार पर की जाएगी जिसमें अलग अलग क्राइटेरिया के तहत पाॅइंट दिए जाएंगे. जिनमें से कुछ अहम हैं-

  • लोकेशन (बच्चे के घर से स्कूल तक की दूरी)
  • भाई-बहन (बच्चे का कोई भाई-बहन जो उसी स्कूल में पढ़ रहा हो)
  • एल्युमनाई (बच्चे के मां-बाप उस स्कूल के पूर्व छात्रा या छात्र रहे हों)
  • गर्ल चाइल्ड
  • सिंगल पैरेंट

पैरेंट्स की बढ़ी चिंता

वसंत कुंज की रहने वाली प्रिया मैथ्यू की चिंता बढ़ रही है. 32 साल की प्रिया कहती हैं कि उन्हें नहीं पता कि उनके साढ़े तीन साल के बच्चे को उनकी पसंद के स्कूल में एडमिशन मिल भी पाएगा या नहीं.

हालांकि साउथ दिल्ली के वसंत कुंज में उनका घर होने से उन्हें थोड़ी राहत जरूर है. वो कहती हैं कि इलाके में कई अच्छे स्कूल हैं जो लोकेशन क्राइटेरिया के आधार पर उन्हें पाॅइंट दे सकते हैं लेकिन फिर भी चिंता बनी हुई है.

बच्चों की संख्या अधिक है. काॅम्पटीशन काफी है. लोग पांच-छह नहीं बल्कि 20-25 स्कूलों में अप्लाई करते हैं. प्रक्रिया की ट्रांसपेरेंसी को लेकर भी चिंता रहती है. मैंने सुना है कि जिन लोगों का काॅन्टैक्ट होता है उन्हें आसानी से सीट मिल जाती है. पैसे लेकर सीट देने के बारे में भी मैंने सुना है.
प्रिया मैथ्यू

प्रक्रिया की ट्रांसपेरेंसी को लेकर मिसेज चन्नी भी यही बात करती हैं. 45 साल की मिसेज चन्नी बताती हैं कि कैसे 2 साल पहले उन्हें कहा गया था

कुछ लोग इस तरीके से अपनी पसंद की सीट ले लेते हैं. लेकिन मैंने ऐसा नहीं किया.
शालिनी दत्त चन्नी
ADVERTISEMENTREMOVE AD

मानदंड आधारित सिस्टम- अच्छा या बुरा

नर्सरी एडमिशन के लिए स्कूलों के मानदंड आधारित सिस्टम को लेकर पैरेंट्स के बीच समर्थन है या विरोध ये साफ नहीं है. हालांकि इससे कुछ को फायदा मिल रहा होता है जबकि दूसरों को नुकसान हो रहा होता है.

प्रिया मैथ्यू कहती हैं कि उन इलाकों में रहने वाले लोग जहां बहुत कम स्कूल हैं, उन्हें इस सिस्टम से नुकसान है जबकि ऐसे जगह पर रहने के पीछे उनकी कोई गलती नहीं है.

दिल्ली कैंट एरिया में पैरेंट्स को बहुत दिक्कत का सामना करना होता है क्योंकि वहां ज्यादा स्कूल नहीं है.
प्रिया मैथ्यू

एक पैरेंट्स ने ये भी बताया कि किस तरह से इसका दुरुपयोग होता है. लोग घर के पते को लेकर गलत पेपर बनवा लेते हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

एडमिशन के लिए अनिवार्य है बच्चे का आधार कार्ड?

इस साल भी दिक्कतें कम नहीं हैं. Admissionsnursery.com के फाउंडर सुमित वोहरा बताते हैं कि एडमिशन के लिए स्कूल सिर्फ पैरेंट्स का ही नहीं बल्कि बच्चों का आधार कार्ड भी अनिवार्य कर रहे हैं. इससे तनाव बढ़ेगा.

उन्होंने बताया कि शिक्षा निदेशालय की ओर से ऊपरी-आयु सीमा तय करने को लेकर 2019-20 तक विचार किया जा सकता है. इसके बावजूद, कई स्कूल ऊपरी-आयु सीमा तय कर रहे हैं.

वोहरा के मुताबिक, कुछ स्कूलों ने विचित्र "अनुचित" मानदंड रखे हैं- जैसे एक्स्ट्रा करिकुलर, खाने की प्राथमिकता वगैरह, जबकि दिल्ली सरकार ने इसे खत्म कर दिया है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

समाधान क्या है?

राष्ट्रीय राजधानी में नर्सरी एडमिशन प्रक्रिया चुनौतियों से भरी है, माता-पिता ये सोचते हैं कि प्रक्रिया को सुचारू बनाने के लिए क्या किया जा सकता है.

स्प्रिंगडेल स्कूल, पुसा रोड की प्रिंसिपल अमीता वाट्टल का कहना है कि राज्य सरकार को ये सुनिश्चित करना जरूरी है कि राजधानी में अधिक नर्सरी स्कूल खोले जाए.

अधिक से अधिक सरकारी नर्सरी स्कूल खुलने चाहिए. इस तरह, निजी स्कूलों पर दबाव कम हो जाएगा. इसके अलावा, जिम्मेदारी माता पिता पर भी है कि सभी स्कूलों को अच्छे प्रशासन और शिक्षा देने के लिए जिम्मेदार बनाने का दबाव बनाएं. न कि सिर्फ 15-16 कथित ‘अच्छे स्कूलों’ पर निर्भर रहें.
अमीता वाट्टल

वहीं हिंदुस्तान टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट में सीबीएसई के पूर्व चेयरमैन अशोक गांगुली ने कहा है कि इस दिशा में उचित कानून बनाए जाने की जरूरत है.

आरटीई (शिक्षा का अधिकार) में प्री प्राइमरी के लिए कोई प्रावधान नहीं है. अगर संशोधन कर इसे लागू किया जाए तो इससे एडमिशन प्रक्रिया, शिक्षक भर्ती और पाठ्यक्रम जैसे मुद्दों से जुड़ी समस्याओं का हल निकालने में भी मदद मिल सकती है.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×