27 सितंबर 2017 को भारतीय सेना म्यांमार बॉर्डर पर एक खतरनाक ऑपरेशन में नगा उग्रवादियों को ढेर कर देती है. ठीक साल भर पहले 28 सितंबर 2016 को इंडियन आर्मी के सूरमा, पड़ोसी पाकिस्तान के घर में घुसकर आतंकियों के ठिकानों को तबाह कर देते हैं और हिंदुस्तान सर्जिकल स्ट्राइक शब्द के मायने समझ जाता है. 9 जून 2015 को भारतीय सेना म्यांमार की सीमा के भीतर घुसकर हल्ला बोलती है.
इन कहानियों के बारे में आप शायद जानते होंगे. लेकिन इंडियन आर्मी का शौर्य, उसकी जांबाजी, उसकी हिम्मत सिर्फ इन तीन ऑपरेशन तक नहीं सिमटी. हम आपको कुछ ऐसे ऑपरेशंस के बारे में बताने वाले हैं जिनकी चर्चा भले कम हुई हो लेकिन मुश्किल हालात में विदेशी जमीन पर अंजाम दिए गए ये ऑपरेशन देश के लिए हमेशा गर्व का एहसास बनकर धड़कते रहेंगे.
- ऑपरेशन कैक्टस, 1988, देश- मालदीव
- ऑपरेशन खुकरी, 1999, देश- सियेरा लियोन
ऑपरेशन कैक्टस, 1988, मालदीव
साल 1988 में मौमूल अब्दुल गयूम मालदीव के राष्ट्रपति थें, इस दौरान श्रीलंकाई विद्रोहियों की मदद से मालदीव में विद्रोह की कोशिश की गई. राष्ट्रपति गयूम ने पाकिस्तान, श्रीलंका और अमेरिका समेत कई देशों को मदद के लिए संदेश भेजा. किसी भी दूसरे देश से पहले भारत के तात्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने मालदीव की तरफ मदद का हाथ बढ़ाया. फिर शुरू हुआ 'ऑपरेशन कैक्टस'.
खास बात ये है कि ऑपरेशन मालदीव में करना था, इस देश के बारे में कोई खास जानकारी किसी के पास उस वक्त तो नहीं थी. बता दें कि गूगल 'बाबा' भी तो उस वक्त नहीं हुआ करते थे.
दो दशकों तक बतौर सैन्य अधिकारी काम कर चुके सुशांत सिंह, इस ऑपरेशन के बारे में अपनी किताब में लिखते हैं- ये एक त्वरित, छोटी और सर्जिकल कार्रवाई थी. ऑपरेशन के नतीजे सटीक रहे लेकिन इसकी तैयारी अच्छी नहीं थी.
इस ऑपरेशन की तैयारियों के बारे में वो बताते हैं-
जब आपको ऐसी विदेशी जमीन पर कार्रवाई करनी है, जहां कि जानकारी आपको महज टूरिस्ट मानचित्र, कॉफी टेबल बुक और दूसरे विश्व युद्ध की खुफिया जानकारी के आधार पर ही आपको पता हो सके, ऐसे में अच्छी किस्मत का होना बहुत जरूरी है.
आपरेशन कैक्टस की कुछ खास बातें:
- मालदीव में तख्तापलट की कोशिश वहीं के एक नाराज अप्रवासी अब्दुल्ला लुतूफी ने की थी.
- लुतूफी ने ये हमला समंदर के जरिए मालदीव में घुस आए पीपुल्स लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन ऑफ तमिल ईलम (PLOTE) के 80 लड़ाकों से कराया था. कई लड़ाके पहले ही भेष बदलकर मालदीव पहुंच चुके थे.
- हिंद महासागर में स्थित मालदीव 3 नवंबर 1988 के दिन हथियारों और बमों से गूंज उठा.
- गयूम को प्रधानमंत्री राजीव गांधी के आश्वासन के बाद सेना तैयारियों में जुट गई, इस पूरे ऑपरेशन की हीरो रही इंडियन एयरफोर्स. पीएमओ से सूचना मिलते ही एयरफोर्स का एक विमान तैयार हो चुका था.
- इस ऑपरेशन के लिए इंडियन एयरफोर्स ने तीन आईएल-76 और 10 एएन-32 परिवहन विमान उपलब्ध कराए गए, सैकड़ों की संख्या में पहुंचे भारतीय सैनिकों ने अनजान सी धरती पर पहुंचकर विद्रोहियों को चुन-चुनकर ढेर कर दिया.
बाद में लुतूफी भी धर लिया गया. ऐसे में ऑपरेशन कैक्टस की तारीफ श्रीलंका के भाड़े के सैनिकों के नेता लुतूफी ने भी की, जब उससे पूछा गया कि इस तरह के लापरवाही भरे अभियान के सफल होने की उम्मीद थी, उसने तपाक से दुस्साहसिकअंदाज में जवाब दिया,
दुनियाभर से मिली भारत को तारीफ
सुशांत सिंह ने अपनी किताब में लिखा है कि ऑपरेशन कैक्टस, ने जिस तरह मालदीव में विद्रोह को खत्म किया पूरे दुनिया से भारत को तारीफें मिलने लगी. अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन, ब्रिटिश प्रधानमंत्री मार्गेट थ्रेचर यहां तक पाकिस्तानी अधिकारियों से भी भारत को तारीफें मिली थीं.
ऐसा ही एक ऑपेशन था 'ऑपरेशन खुकरी'.
ऑपरेशन खुकरी, 2000, सियेरा लियोन
ये मिशन देश से करीब 10 हजार किलोमीटर दूर अफ्रीका विद्रोहियों के चंगुल में फंसे 223 से ज्यादा भारतीय सैनिकों को छुड़ाने के लिए चलाया गया था. सुशांत सिंह की किताब कहती है कि, सियेरा लियो में चलाया गया ये ऑपरेशन वैसे तो यूनाइटेड नेशन के तत्वाधान में था. लेकिन सही मायने में ये भारत का ही ऑपरेशन था क्योंकि यूएन के मिशन पर गए उसके ही 223 सैनिकों को 75 दिनों से बंधक बनाया गया था. ऑपरेशन की जिम्मेदारी मेजर जनरल वी.के. जेटली के पास थी.
अमेरिका-ब्रिटेन ने साफ इनकार कर दिया था
ऑपरेशन खुकरी इस लिहाज से भी खास था क्योंकि अमेरिका और ब्रिटेन ने बंधक भारतीय सैनिकों को छुड़ाने में मदद से साफ इनकार कर दिया था. यहां तक की यूनाइटेड नेशंस के तात्कालीन महासचिव कोफी अन्नान भी इससे दूरी बनाकर रखना चाहते थे.
ऑपरेशन खुकरी की कुछ खास बातें:
- दरअसल, सियेरा लियोन में साल 1999 से पहले 8 साल तक गृहयुद्ध चल रहा था. 1999 में विद्रोहियों, निर्वाचित सरकार और सेना के बीच समझौता हुआ. इस समझौते को पूरे देश में लागू कराने के लिए यूनाइटेड नेशंस ने शांति सेना तैयार की थी, भारत भी इस सेना का हिस्सा था.
- इस बीच 223 भारतीय शांति रक्षकों को विद्रोहियों ने बंधक बना लिया था. ऐसे में बेहतरीन खुफिया सूचना की मदद से ऑपरेशन खुकरी को अकेले दम पर भारत ने चलाया और सफलता हासिल की. भारतीय सैनिकों के कुछ मुखबिर उस जगह पहुंच चुके थे जहां सैनिकों को बंधक बनाया गया था.
- बंधक बनाने वाले विद्रोहियों की संख्या करीब 1700-1800 के करीब थी, जेटली की टीम में भी करीब-करीब इतने ही सैनिक थे. इसलिए मुकाबला 1:1 का था, अनुमान लगाया गया कि इस ऑपरेशन को 30 घंटे में अंजाम दिया जाना था लेकिन भारी बारिश से ऑपरेशन में हुई देर
- आखिरी में भारतीय सैनिकों की मेहनत रंग लाई और सभी बंधक जवान सुरक्षित छुड़ा लिए गए, कई विद्रोहियों को ढेर कर दिया गया.
'ऑपरेशन खुकरी' और 'आपरेशन कैक्टस' ऐसे अभियान हैं जो स्वतंत्र भारत के इतिहास का अभिन्न अंग हैं, देश को हमेशा इन पर गर्व रहेगा.
(सोर्स- मिशन ओवरसीज, सुशांत सिंह)
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