भारत में कोरोना के दूसरी लहर के बीच ऑक्सीजन की किल्लत का एक कारण कंसंट्रेटेड ऑक्सीजन सिलेंडर की जमाखोरी को बताया जा रहा है. इस कथित रैकेट के अंतर्गत विदेशों से ऑक्सीजन मंगाया जा रहा है, सप्लाई को रोककर डिमांड बढ़ने का इंतजार किया जा रहा है और उसके बाद जनता को ऊंचे दामों में इसे बेचा जा रहा है.
सुप्रीम कोर्ट के अलावा पूरे देश के हाई कोर्ट ने भी संकट की इस घड़ी में जमाखोरों के ‘लाभ कमाने’ के इस रवैये की आलोचना की है. विभिन्न कोर्ट सरकार को आपदा प्रबंधन कानून या एसेंशियल कमोडिटीज एक्ट के अंतर्गत ऑक्सीजन के दामों को रेगुलेट या कंट्रोल करने के लिए कहती रहे हैं.
लोगों की कड़े विरोध और प्रभावी कदम उठाने के लिए न्यायिक समीक्षा की मांग के बाद छापे मारे गए ,ऑक्सीजन सिलेंडर जब्त किया गया और गलती करने वालों को कड़ी सजा देने की बात कही गई .लेकिन सरकार इसके लिए क्या योजना बना रही है ?क्या एक व्यापारी को अधिकतम लाभ कमाने के लिए सजा दिया जा सकता है? ऑक्सीजन सिलेंडर के दामों पर सरकार द्वारा अधिकतम सीमा ना घोषित किये जाने की स्थिति में क्या सरकार जमाखोरों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही कर सकती है?
जुर्म कहां है?
ऑक्सीजन के जमाखोरी पर आपराधिक सजा के लिए पहले ऑक्सीजन को एसेंशियल कमोडिटी के रूप में मान्यता मिलना जरूरी है. एसेंशियल कमोडिटीज एक्ट ,1955 सरकार को किसी भी वस्तु को 'एसेंशियल' चिन्हित करने की शक्ति देती है ताकि वह ना सिर्फ उसके मूल्य को नियंत्रित कर सके बल्कि उसके विक्रय, स्टोरेज ,वितरण और अधिग्रहण को भी रेगुलेट कर सके
एसेंशियल कमोडिटीज एक्ट के अंतर्गत दोष सिद्ध हुए व्यक्ति को 7 साल की जेल या फाइन या दोनों हो सकता है. इसके अलावा सरकार ऐसे जमाखोरों पर कार्यवाही के लिए प्रिवेंशन ऑफ ब्लैक मार्केटिंग और मेंटेनेंस ऑफ सप्लाईज ऑफ एसेंशियल कमोडिटी एक्ट के अंतर्गत भी कार्यवाही कर सकती है. लेकिन इस प्रावधानों के प्रयोग के लिए ऑक्सीजन को पहले एसेंशियल कमोडिटी के रूप में मान्यता मिलना जरूरी है.
दिल्ली में कंसंट्रेटेड ऑक्सीजन की कमी के बावजूद यह एसेंशियल कमोडिटीज एक्ट के अंतर्गत स्पष्ट रूप से एसेंशियल कमोडिटी के रूप में नोटिफाइड नहीं है. यहां तक कि 6 मई को दिल्ली हाईकोर्ट ने भी केंद्र एवं दिल्ली सरकार दोनों की इस मामले पर खिंचाई की थी. कोर्ट ने कहा कि "आपने मेडिकल ऑक्सीजन को एसेंशियल कमोडिटी के रूप में वर्गीकृत क्यों नहीं किया"
यह लेख लिखे जाने तक, हाई कोर्ट के द्वारा कहे जाने के 1 सप्ताह बाद भी मेडिकल ऑक्सीजन को एसेंशियल कमोडिटी के रूप में मान्यता नहीं मिली है.
29 जून 2020 को नेशनल फार्मास्यूटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी(NPPA) ने पल्स ऑक्सीमीटर और ऑक्सीजन कंसंट्रेटर के दामों को रेगुलेट करने के लिए ऑफिस मेमोरेंडम जारी किया था. इसके अंतर्गत निर्माताओं और आयातकों को यह निर्देश था कि इन मेडिकल उपकरणों का दाम 1 साल में 10% से अधिक नहीं बढ़ना चाहिए.
8 मई को द्वारका के 1 जिला कोर्ट ने ऑक्सीजन सिलेंडर की जमाखोरी और उसे मनमाने दाम पर बेचने से संबंधित एक केस में यह टिप्पणी की कि "NPPA's द्वारा 29 जून 2020 को जारी मेमोरेंडम में कहीं भी ऑक्सीजन कंसंट्रेटर को एसेंशियल कमोडिटी के रूप में घोषित नहीं किया गया है".
इसके अलावा कोर्ट ने यह भी कहा कि इन्वेस्टिगेशन ऑफिसर ने कोई भी ऐसा नोटिफिकेशन कोर्ट के सामने प्रस्तुत नहीं किया है जिसके आधार पर एसेंशियल कमोडिटीज एक्ट की धारा 3 और 7 के अंतर्गत कार्यवाही की जा सके.
"आप अपनी विफलता को नहीं छुपा सकते"
जबकि सरकार ने कंसंट्रेटेड ऑक्सीजन सिलेंडर को एसेंशियल कमोडिटी के रूप में नोटिफाइड करने की जरूरत को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया है उसे ऑक्सीजन सिलेंडर की जमाखोरी पर कार्यवाही करने के लिए जनता और न्यायपालिका के दबाव में कदम उठाने पड़े.
जनता के दबाव में दिल्ली सरकार ने कुछ गिरफ्तारियां और FIR दर्ज किए. लेकिन वर्तमान हालातों के हिसाब से कानून में कोई बदलाव नहीं किया.
ऑक्सीजन सिलेंडर की जमाखोरी के आरोप पर सुनवाई करते हुए चीफ मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट ,अरुण कुमार गर्ग ने दिल्ली सरकार को कथित जमाखोरों के खिलाफ उसके कानूनी कार्यवाही पर लताड़ा है.
” आप पहले सजा देकर उसके बाद कानून नहीं बना सकते .सिर्फ लोगों की नजर में अपनी छवि को ठीक करने के लिए आप आरोपियों को ऐसी चीज के लिए सजा नहीं दे सकते हैं जो कानूनी जुर्म ही नहीं है. आप अपनी विफलता को छुपाने के लिए दूसरों के पीछे नहीं भाग सकते. आप आतंक उत्पन्न नहीं कर सकते .”अरुण कुमार गर्ग,चीफ मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट
कोर्ट ने दिल्ली सरकार की ऑक्सीजन की जमाखोरी रोकने के लिए कानून नहीं बनाने पर खिंचाई की. कोर्ट के अनुसार अगर सरकार दामों को रेगुलेट करने में असफल रहती है तो बाजार मांग और आपूर्ति के नियम पर ही काम करेगा." क्या व्यापार करना अपराध है" .कोर्ट ने सरकार से यह पूछते हुए कहा कि
“कोई कानून है नहीं ,उसकी कमी है और आप कानून बनाना नहीं चाहते .आप जवाबदेही से मुंह मोड़ना चाहते हैं. व्यापारियों ने इस मौके को भुनाया है. सिर्फ इसलिए कि आपको अपनी गलतियां छुपानी है ,आप लोगों के मौलिक अधिकार पर रोक नहीं लगा सकते”.अरुण कुमार गर्ग,चीफ मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट
ऑक्सीजन सिलेंडर पर कोई कानूनी प्रावधान ना होने के बावजूद दिल्ली पुलिस जांच पड़ताल के पहले ही गिरफ्तारियां कर रही है. यह निष्पक्ष जांच की अवधारणा के खिलाफ है और यह जांच करने वाली एजेंसी की सजा देने की जल्दबाजी तथा रणनीति की कमी को दिखाता है.
अब मुकदमा कैसे चले?
ऑक्सीजन की कथित जमाखोरी के खिलाफ एसेंशियल कमोडिटीज एक्ट को प्रयोग करने में असफल रहने के बाद दिल्ली सरकार के पास एपिडेमिक डिजीज एक्ट और IPC की धारा 188 और 420 के अंतर्गत कार्यवाही का विकल्प बचता है.
एपिडेमिक डिजीज एक्ट और IPC की धारा 188 के अंतर्गत अपराध जमानती है और ऐसे संगीन समस्या को सुलझाने के लिए यह प्रभावी नहीं है. यहां तक कि इसके अंतर्गत मिलने वाली सजा एसेंशियल कमोडिटीज एक्ट की अपेक्षा बहुत कम है .दूसरी तरफ IPC की धारा 420 ,जोकि धोखेबाजी से संबंधित है, को कोर्ट में साबित करना बहुत मुश्किल होगा.
धोखेबाजी के अपराध को साबित करने के लिए यह सिद्ध करना पड़ेगा कि जो लोग ऊंचे दामों पर ऑक्सीजन बेच रहे थे ,वह उन ऊंचे दामों की मांग किसी विशेष 'इलाज' या उच्च मेडिकल सहायता का झूठा वादा करके कर रहे थे.
लेकिन अब तक के मामलों में यही दिखा है कि जिन्होंने ऑक्सीजन के लिए ऊंचे दामों की मांग की है उन्होंने ऑक्सीजन को वैध रूप से खरीदा था, कस्टम ड्यूटी और GST दिया था और ऊंचे दाम को मांगने के लिए उन्होंने किसी झूठे प्रलोभन का उपयोग नहीं किया .
और दुखद विडंबना यह है कि ऑक्सीजन की जमाखोरी के कारण बेशकीमती जानें गई (क्योंकि कई परिवारों को या तो ऑक्सीजन मिला नहीं या वें 'जमाखोरों' के द्वारा महंगे दामों पर बेचे जाने वाले ऑक्सीजन को खरीदना नहीं सकते थे) क्योंकि सरकार सो रही थी. और यह पहली दफा नहीं है.
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