पचयम्मल जब 16 साल की थीं तब उनकी शादी अरुल से हुई थी. उन्होंने अपने प्यार के लिए और अपनी इच्छा से शादी की थी. लेकिन उन्हें पता नहीं था कि उसकी शादी का इस्तेमाल ‘गुलामी’ के लिए किया जाएगा. अरुल 8 साल की उम्र से बंधुआ मजदूर थे. पिता के भागने के बाद उनके सर पर चट्टान खदान मालिक का 10,000 रुपये का कर्ज आ गया था.
6 साल तक, पचयम्मल ने 25 अन्य बंधुआ मजदूरों के साथ गुलामी की. सुबह 4:30 बजे से 9:00 बजे रात तक वो पत्थर तोड़ने और ढोने का काम करती थीं. एक समय मिलने वाला चावल या माड़ उनका दिनभर का खाना हुआ करता था. उन 6 सालों के दौरान, उन्हें हर दिन गाली-गलौज, सेक्सुअल हैरेसमेंट का भी सामना करना पड़ा.
पचयम्मल जब 23 साल की थी तो वहां से बचा ली गईं. उन्हें वो आजादी मिली जिसके बारे में उन्होंने सोचना बंद कर दिया था. अब पचयम्मल खुद बंधुआ मजदूरों को रेस्क्यू कराने के अभियान में शामिल हैं.
वो महीने के अंत में खदान, ईंट भट्ठियों और लकड़ी के काम वाले कारखानों का दौरा करने निकलती हैं. मजदूरों से बात करती हैं, सच्चाई का पता लगाकर, सरकारी अफसरों की मदद कर छापेमारी करवाती हैं और इन मजदूरों को आजाद करवाती हैं.
पचयम्मल इसके साथ ही रेस्क्यू कराए गए बंधुआ मजदूरों को उनके अधिकार, घर, बिजली, काम दिलाने का काम भी कर रही हैं.
सिर्फ तमिलनाडु में 10 लाख से ज्यादा बंधुआ मजदूर हैं.
25 साल की पचयम्मल ने 3 साल से कम समय में 100 से ज्यादा लोगों को बंधुआ मजदूरी की गुलामी से बचाया है, उनके लिए काम किया है और उनके पुनर्वास में मदद की है.
क्विंट और फेसबुक ने ‘मी, द चेंज’ लॉन्च किया है, एक ऐसा कैंपेन जो पूरे भारत में पहली बार वोट देने वाली महिला मतदाताओं के मुद्दों पर चर्चा कर रहा है.
इसी कैंपेन के तहत पेश है पचयम्मल की कहानी जो ला रही हैं बदलाव की बयार.
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