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‘भारत एक खोज’ में ऐसी थीं पद्मावती,चर्चा में 30 साल पहले का सीरियल

राजा रतन सिंह और अलाउद्दीन खिलजी के चरित्र को समझाने के लिए कुछ वाकए का जिक्र है, कभी हीरो-कभी विलेन दिखेंगे

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''सृष्टि से पहले सत नहीं था, असत भी नहीं था अंतरिक्ष भी नहीं...आकाश भी नहीं था...छिपा क्या था..कहां किसने ढका था...''

इन पंक्तियों का 'पद्मावती' से खास कनेक्शन है. ये पंक्तियां 'भारत एक खोज' कार्यक्रम की शुरुआत में आती हैं. दूरदर्शन पर 1988 में शुरू हुए इस ऐतिहासिक कार्यक्रम के 26वें एपिसोड का नाम है 'दिल्ली सल्तनत पद्मावत और तुगलक खानदान'.

'भारत एक खोज'  के निर्देशक श्याम बेनेगल थे. 53 एपिसोड वाला ये कार्यक्रम जवाहर लाल नेहरू की किताब डिस्कवरी ऑफ इंडिया पर आधारित था. जो आज भी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने वालों के लिए एक ऑनलाइन दस्तावेज की तरह है.

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एपिसोड-26 यानी ‘दिल्ली सल्तनत पद्मावत और तुगलक खानदान' की बात करने से पहले ये जान लेना जरूरी है कि कार्यक्रम की एडिटिंग टीम में संजय लीला भंसाली भी हैं. जिनकी फिल्म 'पद्मावती' आज एक 'राष्ट्रीय मुद्दा'  बन गई है.

फिल्म पद्मावती पर मची 'मारकाट' के बीच दोनों पक्षों को इस एपिसोड को एकबार तो देख ही लेना चाहिए. मशक्कत की भी जरूरत नहीं है यूट्यूब पर इसके तमाम वीडियोज मौजूद हैं.

एपिसोड की शुरुआत कैसे होती है...

एपिसोड शुरू होता है जवाहर लाल नेहरू की भूमिका अदा कर रहे रोशन सेठ के इस नैरेशन से.

सन 1303 में अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ पर चढ़ाई की. बहादुर और रोमानियत के वतन चित्तौड़ में पहले जैसा हौसला था लेकिन उनके फौजी तरीके बेकार और पुराने हो चुके थे. इसलिए अलाउद्दीन की सेना ने उन्हें कुचल डाला.

इस नैरेशन पर खास ध्यान देने की जरूरत है. जिसमें कहा गया है कि

मलिक मुहम्मद जायसी के सूफी काव्य पद्मावत के एक भाग में इस चढाई का विवरण है. 'लोककथा' में मशहूर है कि अलाउद्दीन ने राणा रतन सिंह की रानी पद्मावती पर मोहित होकर ये चढ़ाई की थी.

बड़े ही साफ-साफ शब्दों में ये भी कहा गया है,

जायसी के पद्मावत में नैतिक उद्देश्य, ऐतिहासिक सच्चाई से ज्यादा महत्व रखता है
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जौहर का कोई जिक्र नहीं

जिस 'जौहर' को लेकर उठापटक मची हुई है. इस एपिसोड में उसका जरा सा भी जिक्र नहीं है. 'जौहर' को लेकर भी दीपिका पादुकोण की फिल्म 'पद्मावती' पर विवाद है.

अब इस एपिसोड का नाटकीय रुपांतरण शुरू होता है. राजा रतन सिंह, रानी पद्मावती और अलाउद्दीन खिलजी की 'कहानी' धोखे के एक वाकये से शुरू होती है, जिसमें राघव चेतन नाम के एक तांत्रिक को गलत तथ्य बताने के आरोप में राणा रतन सिंह, चित्तौड़ से बाहर निकाल देते हैं. अपने अपमान का बदला लेने के लिए वो दिल्ली सल्तनत के अलाउद्दीन खिलजी के पास पहुंचता है और रानी पद्मावती के सुंदरता और चित्तौड़ की दौलत की बात कहकर अलाउद्दीन को चित्तौड़ पर आक्रमण करने के लिए राजी करता है.

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इस कहानी में दोनों हीरो-दोनों विलेन

पूरे एपिसोड में राजा रतन सिंह और अलाउद्दीन खिलजी के चरित्र को समझाने के लिए कुछ वाकए का जिक्र है. अलाउद्दीन खिलजी अपने सहयोगी के कहने पर चित्तौड़ जीतने के लिए फरेब करने को शुरुआत में तैयार नहीं होते, बाद में 'सामंती' फायदे को देखते हुए रतन सिंह को धोखा देने का फैसला कर लेते हैं. राणा रतन सिंह के मान-सम्मान देने के बावजूद भी उन्हें बंधक बना लिया जाता है.

वहीं, रतन सिंह के राज्य पर हमला हो चुका है. खिलजी राज्य पर कब्जा करने ही वाला है. सहयोगी बता रहे हैं कि राजा हार का मुंह देखने के लिए तैयार रहें. उस वक्त रतन सिंह को 'घूमर' डांस देखते हुए दिखाया गया है.

बाद में महिलाओं की सम्मान की रक्षा को सबसे ऊपर बताने वाले रतन सिंह, अपनी पत्नी 'पद्मावती' का 'रूप' खिलजी को दिखाने के लिए तैयार भी हो जाते हैं. हीरो-विलेन बनाना दर्शक का नजरिया है. इस कार्यक्रम में ये तटस्थता पूरी तरह से बरती गई है.

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एपिसोड का अंत कैसे होता है...

रतन सिंह को खिलजी बंधक बना लेते हैं. राजा के विरह में रानी पद्मावती चित्तौड़ में परेशान दिखती हैं. आखिर में चित्तौड़ के गुप्तचर पता लगा लेते हैं कि रतन सिंह को कहां बंधक बनाकर रखा गया है और उन्हें कैद से छुड़ा लेते हैं. यहां एपिसोड का पद्मावती प्रसंग खत्म होता है.

बचपन में आपने ये जरूर पढ़ा होगा कि इस कहानी में हमें क्या शिक्षा मिलती है. बचपने को फिर याद करते हुए हमें (फिल्म के विरोध वाले-फिल्म के समर्थन वाले) इस कार्यक्रम से ये जान लेने की जरूरत है...

  • कार्यक्रम को बनाने वाले और लिखने वाले की दूरदर्शिता की तारीफ होनी चाहिए. उन्हें पता था कि आधुनिक भारत में 'जौहर' जैसी प्रथा की जरूरत नहीं है. इसलिए कार्यक्रम में नहीं दिखाया गया. उन्हें पता है कि आपका संविधान, आपका कोर्ट और आपके नियम किसी भी ज्यादती, बेइज्जती और बदसलूकी से निपटने के लिए काफी हैं.
  • कौन हीरो, कौन विलेन ये बहस दर्शक पर छोड़ देने की जरूरत हैं. क्योंकि ये पब्लिक है सब जानती है.
  • महिलाओं के सम्मान की रक्षा महिलाएं खुद ही कर सकती हैं. क्योंकि एपिसोड के अंत में वो रानी पद्मावती ही थीं जिनकी सूझबूझ से राजा रतन सिंह, अलाउद्दीन खिलजी के चंगुल से बचकर निकलें.
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फिल्म को देखे बिना देश भर में विरोध कैसे हो सकता है?

पद्मावती विवाद पर 'भारत एक खोज' के निर्देशक श्याम बेनेगल अपनी साफ राय रखते हैं. उन्होंने कहा है कि फिल्म को देखे बिना वो इस पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकते. फिल्म को किसी ने नहीं देखा है, तो भी लोगों का झुंड इसका विरोध कर रहा है. क्या इसका कोई मतलब बनता है? बेनेगल ने कहा कि वो समझ नहीं पा रहे हैं कि फिल्म को देखे बिना देश भर में विरोध कैसे हो सकता है?

बता दें कि सेंसर बोर्ड की कार्य प्रणाली में सुधार लाने वाली सुझाव समिति के श्याम बेनेगल चैयरमेन रह चुके हैं.

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