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स्कूल लूट: क्या पेरेंट्स को फीस बढ़ोतरी के नाम पर लूटा जा रहा है?

दिल्ली -एनसीआर के स्कूलों में फीस बढ़ोतरी के खिलाफ माता- पिता सड़कों पर उतर आए हैं.

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गाजियाबाद प्रशासन ने फीस बढ़ाने के फैसले पर एक प्राइवेट स्कूल को नोटिस भेज आपराधिक प्रक्रिया संहिता को लागू करने कदम उठाया है.

पब्लिक स्कूलों की ओर से मनमाने तरीके से बढ़ाई गई फीस को लेकर एनसीआर में पेरेंट्स महीने भर से विरोध-प्रदर्शन कर रहे थे. गुड़गांव में 1000 पेरेंट्स ने विरोध में मार्च भी निकाला था.

ये नोटिस ट्रोनिका सिटी स्थित सालवान स्कूल को भेजी गई है. मनमाने तरीके से बढ़ाई गई फीस का मामला एसडीएम तक पहुंच गया था. स्कूल मैनेजमेंट के विरोध में बुधवार को पैरंट्स तहसील पहुंचे और एसडीएम प्रेमरंजन सिंह से शिकायत की. पेरेंट्स ने प्रशासन को चेतावनी देते हुए कहा कि अगर बढ़ी हुई फीस वापस नहीं ली गई तो वे लगातार धरना प्रदर्शन करेंगे. एसडीएम ने स्कूल कमिटी से फीस बढ़ाने के कारणों का स्पष्टीकरण मांगते हुए 25 अप्रैल को पेश होने का निर्देश दिया है.

पेरेंट्स हैं परेशान

दिल्ली पब्लिक स्कूल गाजियाबाद, गुरुग्राम के पालम विहार में स्थित है. इस स्कूल में क्लास 9 में पढ़ने वाले छात्र के पिता देव कुमार ने बीते साल 32,600 रुपये फीस दी थी. लेकिन इस बार स्कूल ने उन्हें तकरीबन 1,04,000 रुपये फीस देने को कहा है. यानी की फीस में करीब 200 फीसदी की बढोतरी हुई है.

एक तरफ दुखी अभिभावक देशभर में इस बढ़ोतरी के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ स्कूल सही समय पर फीस न दे पाने वाले छात्रों को स्कूल से निष्कासित कर रहे हैं. कई स्कूल अभिभावकों को फीस का सर्कुलर भेजकर फीस बढोतरी को जायज ठहरा रहे हैं और कुछ मामलों में स्कूल मैनेजमेंट बिना नोटिस दिए स्कूलों को कुछ दिन के लिए बंद रख रहे हैं.

इन सब चीजों के बीच जो दो मुख्य बातें बाहर आती हैं. पहली बात ये कि निजी स्कूल कितनी फीस चार्ज कर सकते हैं और हर साल इसमें कितनी बढोतरी जायज है?

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एनसीआर में पेरेंट्स की तकलीफ

एनसीआर के नामी स्कूल जैस मानव रचना, शिव नादर और शलोम हिल्स इंटरनेशनल में पढ़ने वाले छात्रों के अभिभावक इस ‘मनमाने ढंग’ से की गई फीस बढोतरी के खिलाफ एकजुट हो गए हैं.

शिवनादर स्कूल, फेस 1, गुरुग्राम में पढ़ने वाले एक छात्र के पिता जितेश के मुताबिक, बीते पांच सालों में 65 फीसदी फीस बढोतरी की गई है.

एक और पिता के मुताबिक, “स्कूल हर साल फीस बढाता रहा है. इस पर हमने उन्हें कुछ नहीं कहा. लेकिन इस साल कुछ शुल्कों में विस्तार करने से 400 फीसदी तक फीस बढ़ोतरी की गई है, जोकि सरासर लूट है. मेरी मंथली इनकम भी इस रफ्तार से नहीं बढ़ती तो फिर मैं इतनी तेजी से बढ रही फीस कैसे भरूं?”

शिवनादर स्कूल से कुछ ही दूरी पर स्थित श्रीराम मिलेनियम स्कूल नोएडा सेक्टर 135 में पढ़ने वाले एक छात्र के पिता के मुताबिक, स्कूल ने बीते साल करीब 14 फीसदी फीस बढ़ाई थी. द क्विंट को उन्होंने बताया कि, ‘मैंने बीते साल एक क्वार्टर (तीन महीने) में 65,540 रुपये फीस भरी थी. जोकि अब 74,710 रुपये हो गई है.”

द क्विंट ने नोएडा के शिव नादर स्कूल और श्रीराम मिलेनियम स्कूल से ये जानने की कोशिश की, कि आखिर इन स्कूलों ने फीस बढोतरी क्यों की? लेकिन अबतक इसका जवाब नहीं मिला है.

सरप्लस फंड के बावजूद, हर साल बढ़ रही है फीस

द क्विंट ने शहर के दर्जनों अभिभावकों से बात की. अभिभावकों के मुताबिक, इंफ्रास्ट्रक्चरल डेवलेपमेंट और टीचर्स की सेलरी के नाम पर फीस बढोतरी समझी जा सकती है. लेकिन क्या स्कूल ऐसा कर रहे हैं?

साल 2010 में नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की जांच में सामने आया था कि कई नामी स्कूल पेरेंट्स से सरप्लस फंड लेते हैं. इसके बावजूद वह हर साल फीस भी बढ़ा रहे हैं.

एक शैक्षिक सलाहकार ने द क्विंट को नाम न छापने की शर्त पर बताया, “कई मामलों में, स्कूल अपनी फीस को जायज भी नहीं ठहरा पा रहे हैं. स्कूल किस तरह से अपने फंड्स का प्रबंधन करते हैं, इस बात का खुलासा कोर्ट द्वारा गठित कई अंतरिम समितियों ने भी किया है.” 

कई स्कूलों ने फीस बढोतरी के पीछे इस साल सातवें वेतन आयोग के लागू होने को भी कारण बताया है.

एडवोकेट अशोक अग्रवाल से स्कूलों के इस बहाने से संबंधित सवाल पूछने पर उन्होंने दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा गठित कमेटी की रिपोर्ट का हवाला दिया.

अग्रवाल ने द क्विंट को बताया, "साल 2016 में जस्टिस अनिल देव सिंह कमेटी ने ऐसे 525 स्कूलों को चिन्हित किया था, जिन्होंने छठे वेतनमान को लागू करने के बहाने फीस बढ़ाई थी. लेकिन वास्तव में उन्होंने छठा वेतनमान लागू किया नहीं था. इन स्कूलों में 350 करोड़ रुपये का अधिशेष था."

अग्रवाल स्कूलों के टीचर्स की सेलरी बढ़ाने के खिलाफ नहीं हैं लेकिन वो कहते हैं कि स्कूलों ने सातवें वेतनमान को लागू करने के नाम पर शिक्षा को धंधा बना लिया है. वह पूछते हैं, "हर साल ये स्कूल नई ब्रांच खोलते हैं. इसके लिए उनके पास पैसा आता कहां से है?"

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लैंड लोन में फंसे हैं स्कूल?

दिल्ली-एनसीआर में स्कूलों को स्थापित कराने वाले एक वरिष्ठ सलाहकार ने फीस बढ़ने के पीछे के कुछ दूसरे संभावित कारणों पर भी प्रकाश डाला. द क्विंट से उन्होंने कहा, "जमीन की कीमत स्कूलों की फीस बढ़ने के पीछे की बड़ी वजह है."

सालों पहले दिल्ली में निजी स्कूल शुरू करने के लिए जमीन सब्सिडाइज्ड रेट पर मिलती थी. लेकिन अब नोएडा और गुरुग्राम में नए स्कूल मार्केट प्राइज पर जमीन खरीदते हैं.

गुरुग्राम स्थित एक स्कूल के प्रबंधन से जुड़े शख्स ने बताया कि स्कूल को जमीन के लिए बैंक से लिया गया लोन भरना पड़ता है.

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दिल्ली में क्या है अलग?

यह कम हैरानी वाली बात नहीं है कि दिल्ली के कुछ स्कूलों ने अपनी फीस में ज्यादा बढ़ोतरी नहीं की है.

दिल्ली में कुछ कानून प्रमुखता से लागू हैं. जनवरी 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि निजी स्कूल दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) द्वारा दी गई जमीन पर बनाए जाएं और फीस में बढोतरी करने से पहले वह सरकार की इजाजत लें.

दिल्ली के 1700 निजी स्कूलों में से 410 स्कूल डीडीए की जमीन पर बने हैं. करीब 168 स्कूलों ने फीस बढाने को लेकर सरकार के पास प्रस्ताव भेजा था, जिनमें से कुल पांच स्कूलों को ही फीस बढ़ाने की मंजूरी मिली. वहीं, दिल्ली पब्लिक स्कूल आरके पुरम, फादर एंजल स्कूल और एल्कॉन इंटरनेशनल जैसे नामी स्कूलों की अपील खारिज कर दी गई.

दिल्ली के स्प्रिंगडेल्स स्कूल में पढ़ने वाले एक बच्चे के अभिभावक के मुताबिक, इस साल 2000 से 3000 तक फीस बढोतरी की गई. साउथ दिल्ली के वसंत वैली स्कूल में पढ़ाने वाले एक टीचर ने बताया कि इस साल उनके स्कूल में किसी तरह की फीस बढोतरी नहीं की गई है. इसके अलावा दिल्ली के डीपीएस आरके पुरम और मॉर्डन स्कूल बाराखंबा रोड ने अभी तक नया फी स्ट्रक्चर घोषित नहीं किया है.

हालांकि, संस्कृति स्कूल का मामला इनसे अलग है. क्लास 9 में पढ़ने वाले छात्र की साल 2016-2017 की पहली तिमाही में 51,676 रुपये फीस थी. वहीं अब उसने क्लास 10 के लिए 57,981 रुपये फीस जमा की है.

द क्विंट ने संस्कृति स्कूल से इस बारे में जानने की कोशिश की, कि क्या उन्होंने फीस में बढोतरी को लेकर दिल्ली सरकार की मंजूरी ली थी. लेकिन अब तक इस बारे में स्कूल की ओर से कोई जवाब नहीं मिला है.

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कानून बनाने को लेकर उठ रही मांग

स्कूलों के खिलाफ अभिभावकों का प्रदर्शन जोर पकड़ रहा है. अभिभावक कानूनी समाधान की मांग कर रहे हैं.

उनकी इस मांग को तब और भी बल मिल गया जब गुजरात सरकार ने निजी स्कूलों में फीस निर्धारित करने को लेकर एक कानून पास कर दिया, जिसके मुताबिक, अब स्कूलों को फीस बढ़ाते समय मध्यमवर्गीय अभिभावकों की स्थिति को ध्यान में रखना होगा.

एडवोकेट अशोक अग्रवाल जोकि खुद ऑल इंडिया पेरेंट्स एसोशिएशन के राष्ट्रीय संयोजक हैं, ने मानव विकास संसाधन मंत्रालय को इस संबंध में एक पत्र लिखा है. इस पत्र की एक कॉपी द क्विंट के पास भी है.

हर दिन गुजरने के साथ दोनों पक्षों के बीच विरोधाभास बढ़ता जा रहा है. अभिभावकों का समूह पीछे हटने को तैयार नहीं है. क्या सरकार इस मामले में फीस निर्धारित करने को लेकर कोई कानून लेकर आएगी?

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