Parliament Security Breach: दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरुवार, 28 दिसंबर को संसद सुरक्षा उल्लंघन मामले में आरोपी नीलम आजाद की याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने से इनकार कर दिया. याचिक में दावा किया गया था कि उनकी पुलिस रिमांड अवैध है क्योंकि उन्हें बचाव के लिए 'अपनी पसंद के वकील' से परामर्श करने की अनुमति नहीं दी गई थी. उनका मामला ट्रायल कोर्ट के सामने चल रहा है.
सुनवाई के दौरान कोर्ट में क्या हुआ?
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा और न्यायमूर्ति शलिंदर कौर की अवकाश पीठ के समक्ष याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने के लिए उल्लेख किया गया था, जिन्होंने कहा, "किसी भी मामले में, सुनवाई 3 जनवरी को की जाएगी."
आजाद के वकील ने अदालत को बताया कि उन्होंने हैबियस कॉर्पस याचिका दायर की है और आजाद की पुलिस हिरासत 5 जनवरी को समाप्त हो रही है, तो पीठ ने कहा कि "कोई तात्कालिकता नहीं है" और मामले की सुनवाई के लिए "पर्याप्त समय" है.
याचिका में क्या मांग की गई?
आजाद ने हाईकोर्ट के समक्ष उसे पेश करने के लिए हैबियस कॉर्पस की रिट और साथ ही "उसे रिहा करने" का आदेश देने की मांग की है. अपनी याचिका में, उसने दावा किया कि उसे अपनी पसंद के वकील से परामर्श करने की अनुमति न देना संविधान के तहत प्रदत्त उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है.
ट्रायल कोर्ट ने नीलम आजाद को 5 जनवरी तक पुलिस हिरासत में भेज दिया था
याचिका में कहा गया है, "उसकी गिरफ्तारी पर, याचिकाकर्ता के परिवार को सूचित नहीं किया गया था. इसकी जानकारी 14.12.2023 की शाम को ही दी गई. इसके अलावा, उन्हें अधिवक्ताओं सहित किसी भी व्यक्ति से मिलने की अनुमति नहीं दी गई, जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 22(1) के तहत अनिवार्य है. यहां तक कि अदालत में सभी आरोपी व्यक्तियों के लिए एक ही दिल्ली कानूनी सेवा प्राधिकरण (DLSA) वकील नियुक्त किया गया था, बिना उन्हें वकीलों के बीच कोई विकल्प दिए."
याचिका में कहा गया है कि 21 दिसंबर का रिमांड आदेश 'अवैध' है और भारत के संविधान के अनुच्छेद 22(1) का उल्लंघन करता है, जो "आरोपी व्यक्ति का बचाव उसकी पसंद के कानूनी व्यवसायी द्वारा करना अनिवार्य करता है, जबकि वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता के वकील को रिमांड आवेदन के खत्म होने से पहले निर्देश लेने और याचिकाकर्ता का बचाव करने की अनुमति नहीं थी.
क्या है कानून?
भारत के संविधान के अनुच्छेद 22(2) के अनुसार, किसी को भी गिरफ्तार किया जाता है और हिरासत में रखा जाता है, तो उसे गिरफ्तारी के 24 घंटे के भीतर निकटतम मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जाना चाहिए. इसमें गिरफ्तारी के स्थान से मजिस्ट्रेट की अदालत तक की यात्रा के लिए आवश्यक समय शामिल नहीं है. अनुच्छेद 22(2) यह भी कहता है कि ऐसे किसी भी व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के अधिकार के बिना उक्त अवधि से अधिक हिरासत में नहीं रखा जाएगा.
याचिका में कहा गया है कि आजाद को 14 दिसंबर को "गिरफ्तारी के 29 घंटे बाद" ट्रायल कोर्ट में पेश किया गया था.
22 दिसंबर को, दिल्ली हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के उस आदेश के क्रियान्वयन पर 4 जनवरी तक रोक लगा दी थी, जिसमें दिल्ली पुलिस को आजाद को एफआईआर की एक कॉपी देने का निर्देश दिया गया था.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)