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"अखबारों की मेन कॉपी जमा करें", पतंजलि केस में रामदेव-बालकृष्ण को अगली पेशी से छूट

Patanjali Case: अदालत ने पतंजलि की भी खिंचाई की और कहा कि वह उसके आदेशों का "पालन नहीं" कर रही है.

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Patanjali Misleading Ads:  सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (30 अप्रैल) को पतंजलि आयुर्वेद के खिलाफ भ्रामक विज्ञापन मामले में "निष्क्रियता" के लिए उत्तराखंड राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण को फटकार लगाई. अदालत ने कहा कि प्राधिकरण ने "सबकुछ खत्म करने की कोशिश की".

अदालत ने पतंजलि की भी खिंचाई की और कहा कि वह उसके आदेशों का "पालन नहीं" कर रही है. शीर्ष अदालत ने रामदेव और बालकृष्ण के वकील से प्रत्येक अखबारों के मूल पेज को रिकॉर्ड पर दाखिल करने को कहा जिसमें सार्वजनिक माफी जारी की गई थी.

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हालांकि, कोर्ट ने योग गुरु रामदेव और उनके सहयोगी आचार्य बालकृष्ण को मामले में अगली सुनवाई के लिए व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट दे दी, जो 17 मई को होगी.

इससे पहले रामदेव और बालकृष्ण की ओर से सार्वजनिक माफी तब मांगी गई थी, जब सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाया कि क्या इसका आकार पिछली सुनवाई के दौरान उनके विज्ञापनों से मेल खाएगा.

सार्वजनिक माफी में कहा गया कि "सुप्रीम कोर्ट में चल रहे एक मामले के मद्देनजर, हम अपनी व्यक्तिगत क्षमता के साथ-साथ कंपनी की ओर से भी, सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों/आदेशों का पालन न करने या अवज्ञा के लिए बिना शर्त माफी मांगते हैं."

कोर्ट में क्या क्या हुआ?

सुनवाई शुरू होते ही कोर्ट ने पतंजलि के वकील से सवाल किया की माफीनामा उन्हें आज सुबह क्यों मिला है. इसे समय पर क्यों नहीं फाइल किया गया, जिस पर पतंजलि के वकील ने सफाई देते हुए कहा कि माफीनामा 5 दिन पहले फाइल कर दिया गया था.

बेंच ने कंपनी द्वारा कोर्ट में माफिनामा का पीडीएफ फाइल देने पर नाराजगी जताते हुए कहा:

"आपने ई-फाइलिंग की है. ये हमारे आदेश का पालन नहीं है. हमने कहा था, जैसा माफीनामा है, वैसा फाइल करो. फिजिकली माफीनामा देने का मतलब यह नहीं है कि आप पीडीएफ फाइल दें. हमें लग रहा है कि जितना हम नहीं चाहते उतना आपके वकील क्लाइंट को कोर्ट में बार-बार पेश करना चाहते हैं पूरा. माफीनामे का न्यूज पेपर फाइल किया जाना था."

सुप्रीम कोर्ट ने योग गुरु बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण के वकील से हर उस अखबार के मूल पेज को रिकॉर्ड में दाखिल करने को कहा जिसमें सार्वजनिक माफी जारी की गई है.

बेंच ने आगे कहा कि, "आपने 4 साल तक कुछ नहीं किया. अपने बड़े अधिकारियों के आदेशों का उल्लंघन किया. आप इसका जवाब कैसे देंगे? सब कुछ अधर में अबतक क्यों था? कुछ दिन पहले ही सब कुछ किया गया है. 10 अप्रैल के हमारे आदेश के बाद ही अधिकारी सक्रिय हुए."

बेंच ने मेहता द्वारा दायर 5 हलफनामे पर असंतोष व्यक्त किया है. साथ ही उन्हें 10 दिनों के भीतर अतिरिक्त हलफनामा दाखिल करने की अनुमति दी है.

कोर्ट ने कहा, आप विश्वास रखें, बेंच आपके प्रति भेदभाव नहीं करेगा

मामले की अगली सुनवाई 17 मई को होगी.

जस्टिस जे अमानुल्लाह ने सुनवाई के आखिरी में कंपनी से कहा, हम यह नहीं कह रहे हैं कि हम नाराज हैं. बार और बेंच के बीच पारदर्शिता होनी चाहिए. ध्यान रखिए. जो आपने किया है, उसे अपनाएं, माफी मांगें. अदालत में भरोसा रखें कि आपको निशाना नहीं बनाया जाएगा. हम पक्षपाती नहीं होंगे. हमारी तरफ से आपको यह आश्वासन है.

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उत्तराखंड सरकार ने पतंजलि आयुर्वेद पर की कार्रवाई

इससे पहले सोमवार (29 अप्रैल) को, उत्तराखंड सरकार ने शीर्ष अदालत को सूचित किया कि उसने पतंजलि आयुर्वेद और दिव्य फार्मेसी के 14 उत्पादों के विनिर्माण लाइसेंस को 'तत्काल प्रभाव' से निलंबित कर दिया है. भ्रामक विज्ञापनों के लिए पतंजलि आयुर्वेद के खिलाफ कार्रवाई नहीं करने के लिए राज्य प्राधिकरण की पहले आलोचना की गई थी, जिसके बाद यह कार्रवाई की गई.

इसके अलावा, पतंजलि फूड्स, पूर्व में रुचि सोया इंडस्ट्रीज लिमिटेड को 27.46 करोड़ रुपये के इनपुट टैक्स क्रेडिट की वसूली के संबंध में जीएसटी खुफिया विभाग से कारण बताओ नोटिस मिला था.

नोटिस जीएसटी इंटेलिजेंस महानिदेशालय, चंडीगढ़ जोनल यूनिट द्वारा जारी किया गया था, जैसा कि 26 अप्रैल को कंपनी द्वारा एक नियामक फाइलिंग में खुलासा किया गया था.

जानकारी के अनुसार, 27 फरवरी को, सुप्रीम कोर्ट ने भ्रामक स्वास्थ्य उपचार विज्ञापन के प्रचार के लिए रामदेव और बालकृष्ण को अवमानना ​​नोटिस जारी किया और पतंजलि को हृदय रोग और अस्थमा जैसी बीमारियों के इलाज के अप्रमाणित दावों वाले उत्पादों को बढ़ावा देने से रोक दिया था.

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