अभी पेगासस प्रोजेक्ट (Pegasus Project) सुर्खियों में है, कहा जा रहा है कि कथित तौर पर पेगासस स्पाइवेयर (Pegasus Spyware) के जरिए देश के 300 से ज्यादा मोबाइल नंबरों की जासूसी की गई है. इनमें 40 से ज्यादा सीनियर पत्रकार, विपक्षी नेता, सरकारी अधिकारी, संवैधानिक पदों पर बैठे लोग और एक्टिविस्ट्स शामिल हैं. जासूसी की वजह से इस पेगासस के साथ वाटरगेट (Watergate Scandal) का नाम जुड़ गया है. वाटरगेट वही कांड था जिसकी वजह से अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन (President Richard Nixon) को इस्तीफा देना पड़ा था. आइए जानते हैं इसकी पूरी कहानी...
मोदी वाटरगेट Vs निक्सन वाटरगेट
फ्रांस की संस्था Forbidden stories और एमनेस्टी इंटरनेशनल (Amnesty international) ने मिलकर खास जानकारी जुटाई फिर दुनिया के कुछ चुनिंदा मीडिया संस्थानों से शेयर की है. इस जांच को 'पेगासस प्रोजेक्ट' (Pegasus Project) नाम दिया गया है. इस सॉफ्टवेयर के जरिए दुनियाभर की सरकारें पत्रकारों, कानून के क्षेत्र से जुड़े लोगों, नेताओं और यहां तक कि नेताओं के रिश्तेदारों की जासूसी करा रही हैं.
निगरानी वाली लिस्ट में 1500 से ज्यादा नाम मिले. जिसमें 40 भारतीय पत्रकारों के नाम भी शामिल हैं. नामों के सामने आने के बाद फोन टैपिंग और जासूसी का मुद्दा गरमा गया है. सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाएं आनी शुरू हो गई हैं. इन्हीं प्रतिक्रियाओं में वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण की भी प्रतिक्रिया शामिल है. उन्होंने पेगासस प्रोजेक्ट को 'मोदी वाटरगेट' का नाम दिया है. यहां संदर्भ अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के वाटरगेट स्कैंडल का है, जिसमें उन्होंने डेमोक्रेट्स पर जासूसी कराई थी.
प्रशांत भूषण अकेले ऐसे शख्स नहीं है जो पेगासस प्रोजेक्ट की तुलना वाटरगेट से कर रहे हैं. सोशल मीडिया में वाटरगेट शब्द सर्च करते ही पेगासस के साथ वाटरगेट को जोड़ते हुए कई परिणाम सामने आ जाते हैं. इसमें सुब्रमण्यम स्वामी समेत कई नामी न्यूज चैनल भी हैं.
इतिहास के पन्नों पर नजर दौड़ाने पर हम पाते हैं कि वाटरगेट का संबंध अमेरिका राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के जासूसी कांड से है. उन्होंने कुछ लोगों को डेमोक्रेटिक पार्टी के नेशनल कमेटी के ऑफिस यानी वाटरगेट होटल कॉम्प्लेक्स की जासूसी का काम सौंपा था.
निक्सन के वाटरगेट कांड की कहानी
जनवरी 1969 में रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार रिचर्ड निक्सन अमेरिका के राष्ट्रपति चुने गए. शुरुआत के दो-ढाई साल तक सब कुछ ठीक था. उसके बाद जब उनके कार्यकाल का आखिरी साल आया जिसमें फिर से राष्ट्रपति का चुनाव होना था, उसमें उन्होंने ऐसा कांड कर दिया जिसका नाम आज भी लोगों की यादों में मौजूद है.
दसअसल निक्सन अगला चुनाव भी जीतना चाहते थे. एक ओर निक्सन अपनी तैयारी कर रहे थे, वहीं दूसरी ओर उन्हें ये भी जानना था कि उनकी प्रतिद्वंद्वी डेमोक्रेटिक पार्टी की तैयारियां क्या हैं? इसके लिए उन्होंने अपनी ताकत का इस्तेमाल किया और डेमोक्रेटिक पार्टी की जासूसी करवा दी.
प्रेसिडेंट निक्सन ने कुछ लोगों को डेमोक्रेटिक पार्टी की नेशनल कमेटी के ऑफिस यानी वाटरगेट होटल कॉम्प्लेक्स की जासूसी का काम सौंप दिया. जासूसों ने उस कॉम्प्लेक्स में रिकॉर्डिंग डिवाइस लगा दिए, ताकि उनकी बातचीत सुनी जा सके.
सब ठीक चल रहा था अचानक रुक गई रिकॉर्डिंग
डिवाइस लगाने के बाद सब ठीक चल रहा था. इस डिवाइस के जरिए निक्सन के खास लोग डेमोक्रेटिक पार्टी की हर खुफिया जानकारी को पता कर लेते थे. लेकिन चुनाव से एक साल पहले ही उस डिवाइस ने अचानक से काम करना बंद कर दिया, जिसे ठीक करवाने के लिए निक्सन एक स्पेशल टीम को वाटरगेट होटल भेजते हैं.
17 जून 1972 की रात को पांच लोगों ने उस बिल्डिंग में घुसने की कोशिश की, ताकि रिकॉर्डिंग डिवाइस ठीक की जा सके. वो तारों के साथ काम कर ही रहे थे कि अचानक से वहां पुलिस पहुंच जाती है और उन्हें गिरफ्तार कर लेती है.
जब उन लोगों को गिरफ्तार किया गया. तब पांच लोगों के पास से 10 मिलियन डॉलर कैश और कुछ बिल्स मिले. उन पांच चोरों के नाम थे, वरजिलियो गोंजालेज, बर्नार्ड बारकर, जेम्स डब्ल्यू मैकॉर्ड, यूजेनियो मार्टिनेज और फ्रैंक स्टरगिस. जनवरी 1973 में इन सभी कैदियों को सजा सुनाई गई.
डीप थ्रोट से उजागर हुई सच्चाई
अगले दिन अमेरिकी अखबार वॉशिंगटन पोस्ट में इस घटना की खबर छपती है. रिपोर्टर बॉब वुडवर्ड और कार्ल बर्नस्टीन ने ये खबर की थी. उनकी खबर का एक सोर्स था, जिसने अपनी पहचान डीप थ्रोट बताई दी. 1972 में अमेरिका में रिलीज हुई एक अश्लील फिल्म थी डीप थ्रोट, जो उस वक्त खूब चर्चित हो रही थी. लेकिन कई वर्षों बाद 2005 में ये पता चला कि डीप थ्रोट कोई और नहीं बल्कि एफबीआई (FBI) के डिप्टी डायरेक्टर विलियम मार्क फैल्ट थे.
बॉब वुडवर्ड और कार्ल बर्नस्टीन का सोर्स यानी डीप थ्रोट उनको गुप्त जानकारियां दे रहा था और अखबार उसे प्रकाशित किए जा रहा था. इस केस में मामला आगे बढ़ता जा रहा था, एक-एक करके सत्ता पक्ष की रिपब्लिकन पार्टी के नेताओं के नाम सामने आ रहे थे. लेकिन निक्सन तक जांच की आंच नहीं पहुंच रही थी.
जब निक्सन पर आई आंच तो करीबियों से दिलाया इस्तीफा
पांच आरोपी में से एक मैकॉर्ड ने जज के नाम एक चिट्ठी लिखी थी. उसमें ये बताया गया था कि इस स्कैंडल में रिपब्लिकन पार्टी के लोग शामिल हैं. जैसे ही ये चिट्ठी बाहर आई मीडिया कार्रवाई के लिए निक्सन सरकार पर दबाव डालने लगी.
आगे जाकर मामला सीनेट में पहुंच गया. मई 1973 में केस सीनेट में शुरु हुआ. इस मामले की जांच के लिए और दोषियों को सजा दिलवाने के लिए हॉवर्ड के लॉ प्रोफेसर अर्चिबाल्ड कॉक्स को वकील के तौर पर नियुक्त किया गया.
कॉक्स की जांच की आंच निक्सन तक भी पहुंच रही थी. तो निक्सन ने अपने अटॉर्नी जनरल रिचर्डसन से कहा कि वो कॉक्स को हटा दें. रिचर्डसन ने इनकार कर दिया और खुद इस्तीफा दे दिया. फिर निक्सन ने डिप्टी अटॉर्नी जनरल विलियम रकलहॉस को कॉक्स को हटाने को कहा तो रकलहॉस ने भी इस्तीफा दे दिया. ऐसे में जब निक्सन को लगा कि वो खुद फंस जाएंगे, तो उन्होंने अपने करीबियों को इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया.
जुलाई 1973 को निक्सन के सबसे भरोसेमंद शख्स एलेक्जैंडर बटरफिल्ड को सिनेट में लाया गया. उसने बताया कि व्हाइट हाउस के ओवल ऑफिस में फोन पर की जा रही बातें रिकॉर्ड की जा रही है. इसे खुद निक्सन ने 1971 में लगवाया था.
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