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'प्राइवेसी का उल्लंघन': पेगासस स्पाइवेयर के पीड़ितों ने SC का दरवाजा खटखटाया

5 अगस्त को भारत के चीफ जस्टिस एनवी रमना और जस्टिस सूर्यकांत के सामने हो सकती है मामले की सुनवाई.

Published
भारत
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चार भारतीय पत्रकारों और एक एक्टिविस्ट ने निजता के अपने मौलिक अधिकार की रक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. पांचों का नाम पेगासस स्पाइवेयर (Pegasus Project) टारगेट की संभावित लिस्ट में शामिल था. पत्रकार परंजॉय गुहा ठाकुरता, एसएनएम आब्दी, प्रेम शंकर झा, रूपेश कुमार सिंह और एक्टिविस्ट इप्सा शताक्षी ने ये याचिका दाखिल की है.

पांचों की तरफ से ये याचिकाएं अहम हैं, क्योंकि ये उन लोगों द्वारा दायर की जाने वाली पहली याचिका हैं, जो कथित हैकिंग से व्यक्तिगत रूप से प्रभावित हुए हैं. इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट में पेगासस स्पाइवेयर को लेकर याचिका दायर की गई है, लेकिन ये याचिका उन लोगों की तरफ से दाखिल नहीं की गई है जो सीधे इसका शिकार हुए हैं. ये याचिका वकील एमएल शर्मा, पत्रकार एन राम और शशि कुमार और राज्यसभा सांसद जॉन ब्रिटास ने दायर की है. इस याचिका में कोर्ट की निगरानी में मामले की जांच की मांग की गई है.

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नए याचिकाकर्ताओं में, गुहा ठाकुरता और आब्दी दोनों के फोरेंसिक एनालिसिस ने पुष्टि की है कि पेगासस प्रोजेक्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, पेगासस का उपयोग करके उनके फोन से छेड़छाड़ की गई थी.

एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड प्रतीक चड्ढा के माध्यम से दायर पांच याचिकाओं को, पुरानी याचिकाओं के साथ, 5 अगस्त को भारत के चीफ जस्टिस एनवी रमना और जस्टिस सूर्यकांत के सामने लिस्टेड होने की उम्मीद है.

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नई याचिकाओं में क्या है?

याचिकाओं के मुताबिक, "पेगासस जैसी मिलिट्री ग्रेड की तकनीक" का इस्तेमाल आईटी एक्ट के तहत 'हैकिंग' के बराबर है. ये अवैध है, और आईटी एक्ट की धारा 43 का उल्लंघन है, क्योंकि इसमें कंप्यूटर सिस्टम तक पहुंचना, डिवाइस को नुकसान पहुंचाना और उससे डेटा निकालना शामिल है.

उनका ये भी तर्क है कि पेगासस का इस्तेमाल इन धाराओं का उल्लंघन करता है:

  1. आईटी एक्ट की धारा 66 बी - जो चोरी किए गए डेटा को बेईमानी से प्राप्त करने के लिए दंडित करती है

  2. आईटी एक्ट की धारा 72 - जो प्राइवेसी के उल्लंघन के लिए दंडित करती है.

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याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि इस तरह स्पाइवेयर के इस्तेमाल को वैध निगरानी के रूप में उचित नहीं ठहराया जा सकता है.

केंद्र को याचिकाओं में रिस्पॉन्डेंट के रूप में नामित किया गया है, क्योंकि केंद्र सरकार भारतीय नागरिकों के खिलाफ पेगासस को खरीदने और इस्तेमाल करने से इनकार करने में विफल रही है, और NSO ग्रुप ने बार-बार कहा है कि वो अपनी टेक्नोलॉजी केवल सरकारों को बेचती है.

याचिकाकर्ताओं का कहना है कि "राज्य प्रायोजित अवैध हैकिंग" हुई है, जो संविधान के आर्टिकल 19 और 21 के तहत उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती है.

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प्रेस की स्वतंत्रता को खतरा

प्रेस के सदस्यों के खिलाफ पेगासस के इस्तेमाल के बारे में चार पत्रकारों ने विशेष रूप से कुछ सवालों को उठाया है. याचिका में कहा गया है, "पत्रकारों और रिपोर्टरों पर लगातार निगरानी आर्टिकल 19(1)(a) के तहत अधिकारों का उल्लंघन करती है और उस स्वतंत्रता को प्रभावित करती है जो प्रेस को निष्पक्ष कवरेज के लिए जरूरी है."

ये तर्क दिया गया है कि इस तरह की जासूसी को संविधान के आर्टिकल 19 (2) में मिली अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कभी भी 'उचित प्रतिबंध' नहीं माना जा सकता है, क्योंकि ये केवल उनके भाषण पर नहीं, बल्कि पत्रकारों पर हमला करता है.

"पेगासस के जरिये जासूसी का इस्तेमाल स्वतंत्र रिपोर्टिंग को चुप कराने और दबाने के लिए एक उपकरण के रूप में किया जाता है."
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में परंजॉय गुहा ठाकुरता
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याचिकाकर्ताओं की मांग

हैकिंग पीड़ितों ने कोर्ट से ये घोषित करने के लिए कहा है कि पेगासस जैसे मैलवेयर/स्पाइवेयर का इस्तेमाल "अवैध और असंवैधानिक" है.

इसके अलावा, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से ये भी कहा है कि वो केंद्र को पेगासस के इस्तेमाल के लिए जांच, ऑथोराइजेशन और आदेशों से जुड़े सभी दस्तावेजों को पेश करने और उनका खुलासा करने का निर्देश दे.

उन्होंने कोर्ट से मांग की है कि वो केंद्र सरकार को पेगासस जैसे "साइबर हथियारों" के इस्तेमाल से भारतीय नागरिकों की रक्षा के लिए कदम उठाने का निर्देश दे.

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