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कानूनी तौर पर किस हद तक देश के नागरिकों की जासूसी करा सकती है सरकार?

Pegasus Project में दावा किया है कि पत्रकारों, विपक्षी नेताओं की जासूसी की गई

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पेगासस प्रोजेक्ट (Pegasus Project) के तहत भारत समेत विश्व के कम से कम 10 देशों में पेगासस स्पाइवेयर की मदद से पत्रकारों, विपक्षी नेताओं, कानूनविदों समेत कई प्रमुख लोगों की जासूसी के खुलासे ने सर्विलांस की वैधता और निजता के अधिकार पर इसके प्रभाव से जुड़े गंभीर सवालों को खड़ा किया है.

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फॉरबिडन स्टोरीज,एमनेस्टी इंटरनेशनल सहित विश्व के 17 मीडिया हाउसों के कॉलेजियम ने पेगासस प्रोजेक्ट के तहत विभिन्न सरकारों द्वारा सर्विलांस का खुलासा किया है. भारत में भी कम से कम 40 पत्रकार, तीन बड़े विपक्षी नेता समेत कई प्रमुख लोग भी संभावित सर्विलांस लिस्ट में शामिल है.

ऐसे में सवाल है कि क्या भारत में सरकार के पास सर्विलांस का लीगल रूट है और अगर है तो वह क्या है ?

'सरकारी जासूसी' : भारत में सर्विलांस के लीगल तरीके

भारत में सरकारों के पास वैध 'जासूसी' का भी विकल्प मौजूद है. भारतीय टेलीग्राफ एक्ट, 1885 और सूचना प्रौद्योगिकी (संशोधन) अधिनियम, 2000 में मौजूद प्रावधान केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारों को फोन कॉल, ईमेल ,व्हाट्सएप मैसेज आदि सभी प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक कम्युनिकेशन को सुनने की अनुमति देते हैं.

भारतीय टेलीग्राफ एक्ट,1885 की धारा 5(2) के अंतर्गत केंद्र और राज्य की एजेंसियां किसी भी "पब्लिक इमरजेंसी की घटना या पब्लिक सेफ्टी के हित में" इलेक्ट्रॉनिक कम्युनिकेशन की निगरानी कर सकती है.

यह कानून नामित अधिकारी को किसी भी डिवाइस को सर्विलांस पर रखने का अधिकार देता है अगर उस अधिकारी को यह लगे कि "भारत की संप्रभुता-अखंडता ,राज्य की सुरक्षा, विदेशी राष्ट्रों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों, पब्लिक ऑडर या किसी अपराध को रोकने के लिए" ऐसा करना जरूरी है.

इस स्थिति में आदेश देने के लिए जरूरी कारणों को संबंधित अधिकारियों द्वारा लिखित रूप में दर्ज किया जाना चाहिए.

इसी तरह सूचना प्रौद्योगिकी एक्ट, 2000 की धारा 69 और आईटी (प्रोसीजर फॉर सेफगार्ड फॉर इंटरसेप्शन,मॉनिटरिंग एंड डिस्क्रिप्शन ऑफ़ इनफार्मेशन) रूल्स, 2005 एजेंसी को मोबाइल फोन सहित किसी भी कंप्यूटर रिसोर्स की निगरानी के लिए आदेश जारी करने का अधिकार देता है.

IT एक्ट, 2000 की धारा 69 के अनुसार- "भारत की संप्रभुता-अखंडता,राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों या पब्लिक ऑर्डर के हित में या उपरोक्त से संबंधित किसी भी संज्ञेय अपराध की जांच के लिए" सर्विलांस की अनुमति होगी.

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सर्विलांस से जुड़े संवैधानिक पक्ष

सर्विलांस पर पहला सबसे बड़ा जजमेंट 1964 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिया गया था. 'खड़क सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य' मामले में 7 जजों वाली पीठ ने निर्णय दिया कि सरकार द्वारा सर्विलांस अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है क्योंकि ऐसा कोई भी कानून नहीं है जिसके तहत 'फिजिकल सर्विलांस' की मंजूरी हो.

'जस्टिस पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ' के मामले में सुप्रीम कोर्ट के 9 जजों वाली पीठ ने 'निजता के अधिकार' को अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी. लेकिन किसी भी अन्य मौलिक अधिकार की तरह इसकी भी कुछ सीमा है.

सुप्रीम कोर्ट निर्णय में जस्टिस चेलमेश्वर ने प्राइवेसी के मामले में सरकार के दखल के संबंध में चार परीक्षण के प्रयोग की बात कही:

  • राज्य अगर मनमानी कार्रवाई करता है तो अनुच्छेद 14 के तहत उसकी तर्कसंगतता की जांच हो सकती है.

  • सरकार अगर अश्लीलता या पब्लिक ऑर्डर का हवाला देती है तो अनुच्छेद 19 (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) के तहत उसकी जांच की जा सकती है.

  • जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मामले में सरकार की कार्रवाई की न्यायसंगतता, निष्पक्षता और उचित तरीके की जांच अनुच्छेद 21 के अंतर्गत की जा सकती है.

  • ऐसे मामलों में जहां राज्य का हित अत्यधिक दिख रहा हो, वहां उसकी उच्चतम स्तर की जांच की आवश्यकता है.

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