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Pegasus के प्रहार से गिरी थी कर्नाटक JDS-कांग्रेस सरकार?

Rahul Gandhi, Prashant kishor जब पेगासस के टारगेट पर आए वो समय अपराधी का सुराग दे रहा है

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पेगासस प्रोजेक्ट (Pegasus Project) के तहत हुए खुलासे कहते हैं कि कई देशों में पेगासस स्पाईवेयर से नेताओं और लोकतांत्रिक संस्थाओं को टारगेट किया गया. NSO कहता है कि हम सरकारों को ही ये स्पाईवेयर देते हैं. लिहाजा भारत में विपक्ष आरोप लगा रहा है कि भारत सरकार ने ही जासूसी कराई है. लेकिन भारत सरकार ने इससे साफ इनकार किया है. फिलहाल तो किसी जांच से भी इनकार है. तो फिर अपराधी का कैसे पता चले? जवाब के तलाश में विपक्षी नेताओं के टारगेट पर आने के समय को देखना काफी अहम है.

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इसे हम कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi), राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) और 2019 में गिरी कर्नाटक की JD(S)- कांग्रेस सरकार से जुड़े लोगों की संभावित जासूसी की टाइमिंग से समझने की कोशिश करते हैं.

कर्नाटक की JD(S)-कांग्रेस सरकार गिरने के बीच हैकिंग

जुलाई 2019 में कर्नाटक की JD(S)- कांग्रेस गठबंधन की सरकार गिरने के बीच उपमुख्यमंत्री जी. परमेश्वर और मुख्यमंत्री एच.डी कुमारस्वामी तथा पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के निजी सचिवों को भी जासूसी के संभावित टारगेट के रूप में चुना गया था.

यह रिपोर्ट 'द वायर' ने पेगासस स्पाइवेयर बनाने वाली कंपनी NSO ग्रुप के भारतीय कस्टमर के लीक डेटा के विश्लेषण के बाद छापी है. रिपोर्ट के अनुसार लीक रिकॉर्ड से संकेत मिलता है कि कर्नाटक के कुछ प्रमुख राजनैतिक व्यक्तियों के फोन नंबर सर्विलांस के संभावित टारगेट के रूप में तब चुने गए थे जब बीजेपी और जनता दल (सेक्यूलर)- कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार के बीच सत्ता संघर्ष चल रहा था.

20 जुलाई को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी द्वारा आयोजित एक मीडिया सम्मेलन में, कर्नाटक कांग्रेस के नेताओं सिद्धारमैया, डीके शिवकुमार और मल्लिकार्जुन खड़गे सहित कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने नरेंद्र मोदी सरकार पर 2019 में पेगासस का उपयोग करके कर्नाटक की लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को गिराने का आरोप लगाया है .

गौरतलब है कि 2019 में JD(S)- कांग्रेस गठबंधन के 17 विधायकों ने अचानक इस्तीफा दे दिया था, जिसके बाद सरकार को विधानसभा में विश्वास मत सिद्ध करने के लिए मजबूर होना पड़ा. और JD(S)-कांग्रेस गठबंधन सरकार गिर गई. बीजेपी ने विधायकों के 'हॉर्स-ट्रेडिंग' के आरोप से इनकार किया था, लेकिन फिर सारे बागी विधायक बीजेपी में शामिल होकर कुमारस्वामी की सरकार गिरने के बाद उपचुनाव में बीजेपी उम्मीदवार के तौर पर उतरे.

हमें नहीं मालूम कि क्या विपक्ष के नेताओं और उनके करीबियों की जासूसी कर उनकी कोई कमजोर नब्ज पकड़ी गई, उन्हें ब्लैकमेल किया और फिर वो तख्तापलट में साथ आने को मजबूर हुए.

राहुल गांधी: 2019 आम चुनावों के ठीक पहले

Rahul Gandhi, Prashant kishor जब पेगासस के टारगेट पर आए वो समय अपराधी का सुराग दे रहा है

पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को पेगासस स्पाइवेयर की मदद से जासूसी के संभावित टारगेट के रूप में 2019 के आम चुनाव के पहले शामिल किया गया था. पेगासस के लीक डेटा के विश्लेषण से यह रिपोर्ट किया गया है कि 2019 के आम चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी की मुख्य प्रतिद्वंदी पार्टी कांग्रेस के चेहरे, राहुल गांधी के 2 फोन नंबर को सर्विलांस के संभावित टारगेट के रूप में शामिल किया गया.

इसके अलावा राहुल गांधी के करीबी दोस्तों और पार्टी के अन्य अधिकारियों के कम से कम 5 फोन नंबर पर भी संभावित रूप से जासूसी की गई है.
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प्रशांत किशोर : पश्चिम बंगाल चुनाव के बीच

Rahul Gandhi, Prashant kishor जब पेगासस के टारगेट पर आए वो समय अपराधी का सुराग दे रहा है

हाल ही में बीजेपी को पश्चिम बंगाल चुनाव में हराने वाली TMC पार्टी के राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर के फोन पर 14 जुलाई को किए गए फॉरेंसिक विश्लेषण के बाद दावा किया गया कि उस दिन तक उनका फोन पेगासस की मदद से सर्विलांस किया जा रहा था. एमनेस्टी के सिक्योरिटी लैब की जांच में इस बात के सबूत मिले कि बंगाल चुनाव के बीच अप्रैल में प्रशांत किशोर के फोन को पेगासस की मदद से हैक किया गया. यानी बीजेपी के लिए राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बंगाल चुनाव के अंतिम हफ्तों में प्रशांत किशोर के फोन कॉल, ईमेल, मैसेज की कथित निगरानी की जा रही थी. जुलाई 2021 में प्रशांत कभी पवार तो कभी राहुल गांधी से मिल रहे थे.

किसी ठोस जांच के अभाव में हम सिर्फ सवाल ही उठा सकते हैं कि लोकसभा चुनाव के दौरान राहुल गांधी और बंगाल चुनाव के समय प्रशांत किशोर की जासूसी से किसको फायदा हो सकता है?
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याद रखें कि इजराइल स्थित कंपनी NSO ग्रुप के मिलिट्री ग्रेड स्पाइवेयर, पेगासस की मदद से टारगेट के मोबाइल फोन को संक्रमित किया जा सकता है और उसके कॉल ,कैमरा फीड, मैसेज को सुना-देखा जा सकता है. इसके अलावा NSO ग्रुप की पॉलिसी है कि वह अपना पेगासस स्पाइवेयर सिर्फ सरकारों को ही बेचती है.

इन तीनों केस में पेगासस की मदद से संभावित जासूसी की टाइमिंग अपने आप में बड़ा सवाल उठाती है.अगर NSO ग्रुप सिर्फ सरकारों को यह स्पाइवेयर बेचती है तो भारत में इसे खरीदने का अधिकार सिर्फ एक को ही है. तीनों केस में इस निगरानी का राजनीतिक फायदा किसे हो सकता है, इसका जवाब भी स्पष्ट है. ध्यान रहे कि ना ही NSO ग्रुप और ना ही मोदी सरकार ने इस बात से इनकार किया है कि भारत इस स्पाइवेयर का कस्टमर था.

और अगर इसमें किसी विदेशी सरकार का हाथ है तो फिर सवाल ये है कि किसके कहने पर क्यों हमारे लोकत्रांत्रिक चुनावों कोई और सरकार सर्जिकल स्ट्राइक कर रही थी?

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