सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बुधवार, 27 अक्टूबर को अपने महत्वपूर्ण आदेश में भारतीय नागरिकों के खिलाफ पेगासस स्पाइवेयर (Pegasus Spyware) के इस्तेमाल के आरोपों की जांच के लिए एक स्पेशल एक्सपर्ट कमेटी बनाई है.
भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना (NV Ramana) की अध्यक्षता वाली पीठ ने पेगासस पर कोई स्पष्ट रुख न अपनाने के लिए केंद्र सरकार की आलोचना की. सरकार ने अभी तक इस बात पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है कि उसने स्पाइवेयर खरीदा और इस्तेमाल किया है या नहीं.
मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice) ने कहा कि पेगासस हैकिंग के पीड़ितों सहित याचिकाकर्ताओं के प्रथम दृष्टया मामले को स्वीकार करना होगा और आरोपों की जांच करनी होगी.
एक्सपर्ट कमेटी की देखरेख शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरवी रवींद्रन (RV Raveendran) करेंगे. उन्हें पूरी जांच के बाद एक रिपोर्ट तैयार करने और इसे तेजी से कोर्ट में जमा करने के लिए कहा गया है.
कमेटी के सदस्यों में शामिल लोग:
डॉ. नवीन कुमार चौधरी, प्रोफेसर (साइबर सुरक्षा और डिजिटल फोरेंसिक) और डीन, राष्ट्रीय फोरेंसिक विज्ञान विश्वविद्यालय, गांधीनगर, गुजरात.
डॉ. प्रभारन पी, प्रोफेसर (इंजीनियरिंग स्कूल), अमृता विश्व विद्यापीठम, अमृतापुरी, केरल.
डॉ. अश्विन अनिल गुमस्ते, इंस्टीट्यूट चेयर एसोसिएट प्रोफेसर (कंप्यूटर साइंस एंड इंजीनियरिंग), इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, बॉम्बे, महाराष्ट्र.
लेकिन कमेटी को वास्तव में क्या देखने के लिए कहा गया है? सुप्रीम कोर्ट ने किस तरह की जांच का आदेश दिया है और सुप्रीम कोर्ट को दी जाने वाली उनकी रिपोर्ट में क्या शामिल होना चाहिए?
यहां जानिए सुप्रीम कोर्ट का आदेश क्या कहता है.
जांच का दायरा
टेक्निकल कमेटी को संदर्भ की गई शर्तें इनवेस्टिगेट, इंक्वायर और डिटरमाइन करने के लिए कहती हैं.
क्या स्पाइवेयर के पेगासस सूट का इस्तेमाल भारत नागरिकों के फोन या अन्य उपकरणों पर स्टोर किए गए डेटा तक पहुंचने, बातचीत सुनने, इंटरसेप्ट जानकारी या किसी अन्य उद्देश्य के लिए किया गया था?
ऐसे स्पाइवेयर हमले से प्रभावित हुए लोगों या व्यक्तियों का विवरण.
पेगासस स्पाइवेयर का उपयोग करके भारतीय नागरिकों के वॉट्सऐप अकाउंट हैक करने के बारे में 2019 में रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद केंद्र द्वारा क्या कार्रवाई की गयी है.
क्या भारत के नागरिकों के खिलाफ इस्तेमाल के लिए केंद्र, किसी राज्य सरकार या किसी केंद्रीय या राज्य एजेंसी द्वारा स्पाइवेयर के पेगासस सूट का अधिग्रहण किया गया था?
अगर किसी सरकारी एजेंसी ने इस देश के नागरिकों पर स्पाइवेयर के पेगासस सूट का इस्तेमाल किया है, तो किस कानून, नियम, दिशा निर्देश, प्रोटोकॉल या वैध प्रक्रिया के तहत ऐसी तैनाती की गई थी?
यदि किसी डोमेस्टिक संस्था या व्यक्ति ने इस देश के नागरिकों पर स्पाइवेयर का प्रयोग किया है, तो क्या ऐसा प्रयोग अधिकृत है?
कोई अन्य मामला या पहलू जो उपरोक्त संदर्भ की शर्तों से जुड़ा या सहायक हो सकता है, जिसे समिति जांच के लिए उपयुक्त समझे.
ऐसा करने में सक्षम होने के लिए समिति को अपनी प्रक्रिया तैयार करने, जांच के संबंध में किसी भी व्यक्ति के बयान लेने और किसी भी प्राधिकरण या व्यक्ति के रिकॉर्ड के लिए कॉल करने के लिए अधिकृत किया गया है.
न्यायमूर्ति रवींद्रन को पूर्व भारतीय पुलिस सेवा (IPS) और अनुसंधान और विश्लेषण विंग (RAW) के अधिकारी आलोक जोशी के साथ-साथ डॉ. सुदीप ओबेरॉय द्वारा सहायता प्रदान की जाएगी, साथ ही जांच के लिए आवश्यक किसी भी सेवानिवृत्त अधिकारियों या विशेषज्ञों की सहायता लेने के लिए भी ऑथराइज किया गया है.
सुप्रीम कोर्ट को दी जाने वाली सिफारिशें
टेक्निकल कमेटी को निर्देश दिया गया है कि वह अपनी जांच के बाद, गोपनीयता और साइबर सुरक्षा दोनों में सुधार के तरीकों सहित कई सवालों पर सुप्रीम कोर्ट को सिफारिशें दें.
दिलचस्प बात यह है कि कोर्ट ने नागरिकों के लिए अवैध निगरानी के बारे में शिकायतों को उठाने के लिए एक मकैनिज्म स्थापित करने पर सिफारिशें मांगी हैं, जिसमें अदालत द्वारा एक अंतरिम मकैनिज्म भी शामिल है, जब तक कि संसद उसके लिए कानून नहीं बनाती.
मांगी गई सिफारिशों का पूरा सेट-
निगरानी के आसपास के मौजूदा कानून और प्रक्रियाओं के अधिनियमन या संशोधन के संबंध में व निजता के बेहतर अधिकार को सुरक्षित करने के लिए.
राष्ट्र और उसकी संपत्तियों की साइबर सुरक्षा को बढ़ाने और सुधारने के संबंध में.
ऐसे स्पाइवेयर के माध्यम से राज्य या गैर-राज्य संस्थाओं द्वारा कानून के अनुसार नागरिकों के निजता के अधिकार पर आक्रमण की रोकथाम सुनिश्चित करना.
नागरिकों को उनके डिवाइस की अवैध निगरानी के संदेह पर शिकायत करने के लिए एक तंत्र की स्थापना के संबंध में.
साइबर अटैक से संबंधित खतरे का आकलन करने और देश में साइबर हमले की घटनाओं की जांच और साइबर सुरक्षा कमजोरियों की जांच के लिए एक सुसज्जित स्वतंत्र प्रीमियर एजेंसी की स्थापना के संबंध में.
संसद द्वारा कमियों को भरने के लिए लंबित नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए एक अंतरिम उपाय के रूप में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा की जा सकने वाली किसी भी एड-हॉक व्यवस्था के संबंध में.
किसी अन्य सहायक मामले पर जो समिति उचित समझे.
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