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पहलू खान घर आते तो मिठाई जरूर लाते थे,बच्चे पूछते हैं-दादा कहां गए

अलवर कोर्ट के फैसले के बाद परिवार ने क्विंट के साथ साझा किया अपना दुख

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‘‘हर जुमे की शाम हम सब जाते हैं पहलू खान की कब्र पर उनसे बात करने.’’ 25 साल के मुबारक की यह कहते-कहते आंखें भर आती हैं. मुबारक के पिता पहलू खान, राजस्थान के अलवर में गाय की तस्करी के शक में मॉब लिंचिंग के शिकार हुए थे.

बुधवार को अलवर की अदालत ने पहलू खान की हत्या के छह आरोपियों को छोड़ दिया, जबकि पहलू पर हमले का वीडियो मौजूद था. पहलू खान के आठ बच्चों में से एक मुबारक अदालत के इस फैसले के बाद खुद को छला हुआ महसूस कर रहे हैं.

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पहलू खान की पत्नी जैबुना उन लम्हों को याद करती हैं, जब उन्होंने अहसास करना शुरू किया कि आखिरकार उनके पति के साथ क्या हुआ. वह कहती हैं:

‘‘गांव के एक लड़के ने मुझे वह वीडियो दिखाया, जिसमें यह दिख रहा था कि मेरे पति के साथ मेरे दो बेटों आरिफ और इरशाद को किस कदर मारा जा रहा था. मेरे दिल ने धड़कना बंद कर दिया. सांसें थम गईं. वीडियो देखने के बाद मैं बदहवास हो गई और उन्हें फोन करने लगी. लगा कि फोन सुनकर कोई उन्हें बचा लेगा या फिर पहलू या बच्चे फोन उठा लेंगे.’’
जुबैना

पहलू खान के आठ बच्चे हैं. चार लड़कियां और चार लड़के. उनके परिवार ने न्याय व्यवस्था पर विश्वास जताया था, लेकिन अदालत की ओर से आरोपियों को छोड़े जाने की वजह से यह टूट गया है.

जुबैना ने कहा, ‘‘पुलिस दबाव में थी. जज दबाव में थे. किसी ने भी अपना काम सही से नहीं किया. हम गरीब हैं गरीबों की सुनवाई कोर्ट में कहां होती है.’’

मुबारक ट्रक ड्राइवर हैं. जब उनके पिता और भाइयों पर हमला हुआ, तो वह कोलकाता में थे. मुबारक के लिए उनके पिता की कब्र खास है, क्योंकि पहलू पर जब हमला हुआ, तो वह यहां नहीं थे. वह अपने पिता की कब्र पर मिट्टी नहीं डाल सके थे.

जुबैना कहती हैं,‘‘हमारे साथ जो कुछ हो रहा था, उससे हम बेहद डरे हुए थे. हम मुबारक को तनाव में नहीं डालना चाहते थे. जब तक मुबारक घर लौटते तब तक पहलू खान को दफनाया जा चुका था.’’ (जुबैना जब यह कह रही थीं, तो पीछे बैठे मुबारक अपनी डबडबाई आंखों से निकले आंसू पोंछ रहे थे.)

जुबैना ने कहा:

‘‘पहलू दोस्तों के साथ नूंह की जामा मस्जिद में नमाज पढ़ने जाते थे. लौटते समय वो बच्चे के लिए मिठाई लाना कभी नहीं भूलते थे. घर आते ही मेरे पोती-पोते उन्हें घेर लेते थे. आज जब वे पूछते हैं कि दादा जी कहां हैं, तो उन्हें कहना पड़ता है कि उन्हें दफना दिया गया है. हमारे साथ वे भी उनकी कब्र के पास चुपचाप खड़े होते हैं. कुछ बुदबुदाते हैं. पहलू खान के कुछ कपड़े हैं, जो उनकी बेटियों ने ले लिए हैं. सबा और वारिसा दोनों शादीशुदा हैं. उन्होंने पहलू की एक-एक जोड़ी कपड़े ले ली है. वे इन्हें धोकर अपने पास रखती हैं. उनके लिए पिता की यही निशानी है.’’
जुबैना

ईद के बारे में बात करते हुए जुबैना और उनकी बेटियां कहती हैं कि जब से पहलू खान की मौत हुई है, तब से उनके पास इतने पैसे कभी नहीं हुए कि कोई नई चीज खरीद सकें.

जुबैना ने कहा कि वह मवेशी पालना चाहते थे. यह काम उन्होंने कभी नहीं किया था, लेकिन सुना था कि अच्छी नस्ल की गाय के दूध से ठीक-ठाक कमाई हो जाती है. वो रमजान के दिन थे और पहलू उसी दौरान यह काम शुरू करना चाहते थे. उन्हें पता था कि रमजान के दिनों में खीर और दूध से बनी दूसरी चीजों की मांग बढ़ जाती है.

जैबुना कहती हैं, ‘पहलू मीठा बोलते थे. कभी मुझसे साफ-सफाई के लिए नहीं कहते. खुद करते थे. उन्होंने मुझसे कभी ऊंची आवाज में बात नहीं की .वह गेट के सामने बने एक कमरे में अकेले सोते थे. इसकी छत टूट गई है और किसी को इसकी चिंता नहीं है. हम भी सोचते हैं क्या फायदा. जब इसमें सोने वाला ही नहीं रहा.’’

पहलू के परिवार का कहना है कि वह एक पाक शख्स थे. पांच बार नमाज पढ़ते थे. रात में भी नमाज पढ़ते थे. ‘‘आखिरी बात उन्होंने मुझसे यही कही थी कि 24 घंटे में लौट आएंगे. मुझे अब उनकी बहुत याद आती है.’’ ये कहते हुए जुबैना की आवाज गहरे दुख में डूब जाती है.

इस रिपोर्टर के साथ कब्र तक आए मुबारक खुद को अक्सर यहां अकेले पाते हैं. मुबारक अपने पिता की कब्र को देखते हैं, इस पर एक पीला कार्ड बोर्ड लगा है, जिस पर हिंदी में पहलू खान लिखा है. मुबारक कहते हैं- ‘‘मुझे उम्मीद थी कि मैं यहां आऊंगा और कहूंगा – अब्बा अदालत ने आपके हत्यारों को सजा दी है. लेकिन अब मैं क्या कहूंगा, पता नहीं.’’

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