पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI Raids) पर केंद्र सरकार ने पांच सालों का बैन लगा दिया है. PFI ने राज्य मशीनरी के दुरूपयोग और केंद्रीय एजेंसियों की मदद से असहमति की आवाजों को दबान का आरोप लगाते हुए आज केरल में बंद बुलाया था. राज्य भर में तोड़फोड़ और हिंसा की कई घटनाएं सामने आई हैं ,जिसके बाद केरल हाई कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया.
दरअसल राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने गुरुवार, 22 सितंबर को ED और राज्य पुलिसों के साथ मिलकर PFI से जुड़े 15 राज्यों के 93 ठिकानों पर छापे मारे. इस छापेमारी में PFI के टॉप लीडर्स समेत 100 से अधिक सदस्यों को गिरफ्तार किया गया है.
2006 में नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट के उत्तराधिकारी के रूप में सामने आया PFI सालों से सुरक्षा और जांच एजेंसियों के निशाने पर है और करीब एक दशक से इसका नाम अपराधों में सामने आ रहा है. आपको बताते हैं कि PFI पर कब-कब क्या आरोप लगे हैं और किन मामलों में इसके लीडर्स और सदस्यों को दोषी पाया गया है.
PFI : शुरुआत में ही जुड़े प्रतिबंधित संगठन SIMI से तार
PFI का गठन 2006 में तीन संगठनों के एक में मिलने के बाद हुआ था. ये तीन संगठन- केरल में नेशनल डेवलपमेंट फ्रंट (NDF), तमिलनाडु में मनीथा नीथी पासराय (MNP) और कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी थे.
PFI के कुछ नेताओं और कैडरों के अतीत के तार प्रतिबंधित संगठन स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट इन इंडिया (SIMI) से जुड़े थे. PFI के उपाध्यक्ष ई.एम अब्दुल रहिमन 1982 और 1993 के बीच SIMI के महासचिव रहे हैं. SDPI के अध्यक्ष अबूबकर SIMI के केरल प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं जबकि प्रोफेसर पी कोया, SIMI के संस्थापक सदस्य भी थे.
गुरुवार को हुई छापेमारी में तीनों को गिरफ्तार जा चुका है.
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के खिलाफ केस
राष्ट्रीय जांच एजेंसी और गृह मंत्रालय लंबे समय से PFI की गतिविधियों पर नजर बनाए हुए था. साल 2017 में एनआईए ने गृह मंत्रालय को सौंपी अपनी विस्तृत रिपोर्ट में PFI के आतंकी गतिविधियों में शामिल होने के चलते बैन लगाने की मांग की थी. कई और राज्य समय समय पर बैन लगाने की मांग कर चुके हैं.
SIMI से जुड़े अतीत के तारों के अलावा PFI का नाम कई ऐसे हिंसक मामलों में आ चुका है, जिसने राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसियों को इनके प्रति सतर्क किया.
आउटलुक इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार जुलाई 2010 में, PFI के वर्कर्स ने केरल के प्रोफेसर टीजे जोसेफ का दाहिना हाथ काट दिया था. 2015 में इस मामले में PFI के 13 सदस्यों को दोषी ठहराया गया था. यह मामला PFI से जुड़ी हिंसा की पहली चर्चित घटनाओं में से एक था. प्रोफेसर जोसेफ ने कथित तौर पर पैगंबर मुहम्मद का अपमान किया था.
इसके बाद से PFI के कार्यकर्ताओं का नाम कई ऐसे मामलों में सामने आया है, जिसमें सांप्रदायिक हिंसा से लेकर राज्य विरोधी गतिविधियों तक के आरोप हैं. इनमें से कई में ये दोषी भी सिद्ध हुए.
इसी रिपोर्ट के अनुसार 2016 में, PFI के 21 सदस्यों को केरल के कन्नूर में एक आतंकी कैंप आयोजित करने के लिए दोषी ठहराया गया था.
2016 में, केंद्रीय एजेंसियों ने ISIS के संदिग्धों को गिरफ्तार किया, जिनमें से कुछ PFI के सदस्य निकले थे. NIA ने श्रीलंका के ईस्टर बम धमाकों के लिए भी PFI की जांच की थी. श्रीलंका के ईस्टर बम धमाकों में 200 से अधिक लोग मारे गए थे और ISIS ने बम धमाकों की जिम्मेदारी ली थी.
यहां तक कि 2020 में, अफगानिस्तान के काबुल में एक गुरुद्वारे पर हमला करने वाले हमलावरों में से एक केरल का PFI सदस्य बताया गया था.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार 2014 में केरल सरकार ने हाई कोर्ट में एक हलफनामा प्रस्तुत किया था जिसमें कहा गया था कि PFI के कार्यकर्ता कम से कम 27 राजनीतिक हत्याओं, 86 हत्या के प्रयास के मामलों और 125 से अधिक मामलों में सांप्रदायिक भावनाओं को भड़काने के मामले में शामिल थे.
CAA विरोधी आंदोलन से लेकर दिल्ली दंगों में भी लगे आरोप
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार ED दिल्ली में हुए 2020 के दंगों के साथ-साथ नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) विरोध आंदोलन में कथित रूप से फंडिंग के लिए PFI की जांच कर रही है. साथ ही दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल भी 2020 के दिल्ली दंगों के लिए कथित तौर पर 'लॉजिस्टिक्स मुहैया कराने' में PFI की भूमिका की जांच कर रही है.
इसी साल जुलाई में पीएम मोदी के दौरे से ठीक पहले पुलिस ने फुलवारी शरीफ से कुछ संदिग्ध आतंकियों को गिरफ्तार किया था. इसमें भी PFI का नाम सामने आया था. जांच एजेंसियों ने आरोप लगाया कि इन आतंकियों को प्रधानमंत्री मोदी के पटना दौरे से 15 दिन पहले फुलवारी शरीफ में ट्रेनिंग दी जा रही थी.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)