प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने मंगलवार, 14 मई को लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election 2024) के लिए वाराणसी (Varanasi) से अपना नामांकन दाखिल किया. जितना उत्साह बीजेपी समर्थकों में पीएम मोदी के नामांकन को लेकर था उतनी ही उत्सुकता लोगों में उनके प्रस्तावकों को लेकर दिखी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चार प्रस्तावको में से दो ओबीसी, एक दलित और एक ब्राह्मण हैं.
चलिए आपको बताते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी के चारों प्रस्तावक कौन हैं?
वाराणसी में कौन बना PM मोदी का प्रस्तावक?
आमतौर पर उम्मीदवार प्रस्तावकों को लेकर बहुत गंभीर नहीं होते हैं लेकिन 2014 में राष्ट्रीय राजनीति में प्रधानमंत्री मोदी की एंट्री के बाद वो हर चुनाव में प्रस्तावकों के जरिए जनता को संदेश देते रहे हैं. 2024 के चुनाव में भी पीएम ने समायोजन को ध्यान में रखते हुए प्रस्तावक ब्राह्मण, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और दलित समुदायों से चुना. पंडित गणेश्वर शास्त्री, बैजनाथ पटेल, लालचंद कुशवाहा और संजय सोनकर पीएम मोदी के प्रस्तावक है.
गणेश्वर शास्त्री
66 वर्षीय गणेश्वर शास्त्री द्रविड़ वैदिक विद्वान हैं और वाराणसी के राम घाट क्षेत्र के निवासी हैं. इन्हें अयोध्या राम मंदिर के अभिषेक और भूमि पूजन के लिए "शुभ मुहूर्त" और फरवरी 2022 में काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के भूमि पूजन की तिथि तय करने का काम सौंपा गया था.
इंडियन एक्सप्रेस के रिपोर्ट के मुताबिक, तमिलनाडु के तिरुविसनल्लूर गांव के रहने वाले द्रविड़ के पूर्वज 19वीं सदी में वाराणसी चले आए थे. उनके पिता लक्ष्मण शास्त्री को रामघाट में श्री वल्लभराम शालिग्राम सांगवेद विद्यालय की स्थापना का श्रेय दिया जाता है.
संजय सोनकर
50 वर्षीय संजय सोनकर वाराणसी यूनिट में जिला महामन्त्री हैं और वह सोनकर समुदाय से ताल्लुक रखते हैं. सोनकर को चुनने के पीछे पीएम मोदी की योजना अनुसूचित जाति को साधने की बताई जा रही है. 2022 में विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान मोदी से मुलाकात के बाद वह सुर्खियों में आए थे. वह वाराणसी के रहने वाले हैं और बीजेपी के पुराने नेता हैं.
लालचंद कुशवाहा
ओबीसी कुशवाहा जाति से आने वाले 65 वर्षीय लालचंद कुशवाहा एक कपड़ा दुकान के मालिक हैं. वाराणसी के छावनी क्षेत्र के निवासी हैं. कुशवाहा बीजेपी के वाराणसी जोनल प्रभारी भी हैं.
बैजनाथ पटेल
बैजनाथ पटेल आरएसएस के पुराने समर्थक हैं और उन्होंने अपनी राजनीतिक यात्रा जनसंघ से शुरू की थी. वाराणसी के सेवापुरी इलाके के निवासी पटेल ओबीसी समुदाय से हैं. वह पहले हरसोस के ग्राम प्रधान के रूप में कार्य कर चुके हैं.
कहते हैं दिल्ली का रास्ता यूपी-बिहार से होकर गुजरता है. पीएम ने इस बात को ध्यान में रखते हुए कुशवाहा और पटेल वोटर्स को साधने की कोशिश की है. पूर्वांचल में जहां पटेल वोटर्स की बड़ी आबादी है. वहीं बिहार में कुशवाहा दूसरी सबसे बड़ी ओबीसी जाति है.
क्या होती है प्रस्तावक की भूमिका?
प्रस्तावक की भूमिका चुनाव में बेहद अहम होती है. यह वह लोग होते हैं जो अपने क्षेत्र में किसी उम्मीदवार के नाम का प्रस्ताव रखते हैं. अगर कोई उम्मीदवार मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल से है तो उसे कम से कम एक प्रस्तावक की जरूरत होती है. वहीं निर्दलीय पार्टी के उम्मीदवारों को कम से कम 10 प्रस्तावकों की जरूरत होती है. प्रस्तावक बनने के लिए व्यक्ति का उसी निर्वाचन क्षेत्र का वोटर होना जरूरी है.
इनके हस्ताक्षरों के बिना चुनाव में नामांकन अधूरा होता है. उम्मीदवार के नामांकन दाखिल करने के बाद अगर रिटर्निंग ऑफिसर नामांकन सत्यापन के दौरान हस्ताक्षर नकली या अवैध घोषित कर दे तो कैंडिडेट का नामांकन पत्र रद्द किया जा सकता है.
सूरत लोकसभा चुनाव में ऐसा ही देखने को मिला जब प्रस्तावक के हस्ताक्षर का मिलान न होने के कारण कांग्रेस उम्मीदवार का नामांकन रद्द कर दिया गया.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)