वैसे तो 2012 में बतौर गुजरात के सीएम मोदी जी ने अजय देवगन से गूगल चैट पर लाइव बात की थी. पिछले साल गीतकार प्रसून जोशी ने भी पीएम मोदी से लंदन में सवाल पूछे थे. लेकिन अब जब फिल्म हेराफेरी के स्टार एक्टर अक्षय कुमार ने मोदी का इंटरव्यू किया तो विपक्ष को पसंद नहीं आया. प्रियंका गांधी ने पीएम को प्रधान प्रचार मंत्री बताया तो राहुल गांधी ने कहा -‘हकीकत सामने हो तो अदाकारी नहीं चलती, चौकीदार, जनता के सामने मक्कारी नहीं चलती.’ लेकिन अक्षय का ये ‘राउडी राठौर’ रूप सबसे ज्यादा कुछ एंकरों को खला होगा.
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टीवी एंकर कह रहे होंगे- आपने जनहित के सारे सवाल पूछ लिए. क्या खाते हैं, आम खाते हैं तो गुठली के साथ या गुठली के बिना, कितना सोते हैं, जुकाम कैसे ठीक करते हैं? ऐसे सवाल तो हम पूछते हैं फिर आप हमारे डोमेन में क्यों घुसे? ऊपर से मोदी जी ने इस गैर एंकर, एंकर को खूब सारी हेडलाइन्स दे दी. देसी मसाज थैरेपी सिखाई, जुकाम का घरेलू इलाज बताया, फिट रहने का गुर सिखाया, एंगर मैनेजमेंट का मोदी मंत्र दिया और तो और चुनाव के बीच चुटकले तक सुनाए.
दूसरे समूह वाले एंकर कह रहे होंगे कि हम तो इंटरव्यू मांग-मांग कर थक गए लेकिन मिला आपको. सिनेमा में कॉमेडियन्स की नौकरी पहले ही खा रहे हो, क्या अब हमारी नौकरी पर नजर है?
इंटरव्यू में एक तरफ सवालों की कारीगरी दिखी तो दूसरी तरफ बयानों की बाजीगरी. समझ में नहीं आया कि खिलाड़ी नंबर 1 कौन है? शक हुआ कि पर्सनल से सवालों के सिलवटों से सियासत तो नहीं रिस रही थी?
दीदी की मिठाई, विपक्ष में लड़ाई
मोदी ने इंटरव्यू में बताया कि विपक्ष के नेता उनके लिए परिवार जैसे हैं. कांग्रेसी गुलाब नबी आजाद दोस्त हैं. ममता बनर्जी तो खुद कुर्ते खरीद कर देती हैं. मिठाई भेजती हैं. ये वही विपक्ष है जिसे पाकिस्तान भेजने की बात होती है. बीजेपी के अध्यक्ष कहते हैं कि ये आतंकवादियों के चचेरे-ममरे भाई हैं. खुद मोदी ममता को स्पीडब्रेकर बताते हैं और वो इन्हें एक्सपायरी बाबू.
इंटरव्यू में दोस्ताना और सियासत में पक्की दुश्मनी. बहुत कन्फ्यूजन है. चाइनीज ऑर्ट ऑफ वार में इस कन्फ्यूजन को रणनीति कहते हैं. दुश्मन के खेमे में भ्रम पैदा करो, वो पूरी ताकत से नहीं लड़ेगा.
फक्कड़पन का अफसाना, समाजवादियों पर निशाना!
अक्षय कुमार ने मोदी जी से पूछा कि आपका बैंक बैलेंस क्या है? उन्होंने बताया कि एमएलए रहते जो पैसे कमाए थे उसका एक हिस्सा सचिवालय के परिवारों को दान दे दिया. जमीन मिली थी वो भी पार्टी को दे दी. जवाब में अक्षय ने पूछा कि वो गुजराती हैं भी या नहीं? क्योंकि गुजराती तो पैसे-कौड़ी का बड़ा हिसाब रखता है.
जवाब में पीएम मोदी ने अपने फक्कड़पन की एक कहानी सुनाई.बताया काफी साल पहले पुणे में वो कुर्ते-पायजामे में झोला लेकर जा रहे थे. स्टेशन से बाहर निकले तो एक रिक्शा वाला पीछे-पीछे आया. कुछ दूर जाकर रिक्शा वाले ने पूछा - आप चलोगे नहीं? मोदी जी ने कहा - नहीं, क्यों? तो रिक्शे वाले ने कहा-आप समाजवादी नहीं हो क्या? मोदी जी ने पूछा कि वो ऐसा क्यों कह रहा है तो जवाब मिला-समाजवादी सबके सामने रिक्शा नहीं लेते. लेकिन थोड़ी दूर जाकर लोगों की नजर से बचकर रिक्शा ले लेते हैं.
इस कहानी में समाजवादियों के कथित स्वांग पर तंज है. वही समाजवादी और बहुजन समाजवादी जिनसे 80 सीटों वाले यूपी में जंग है.
सियासत पर सोशल दंगल...हा,हा,हा
इंटरव्यू में एक सवाल के जवाब में पीएम मोदी ने कहा - मैं सोशल मीडिया जरूर देखता हूं, इससे मुझे बाहर क्या चल रहा है इसकी जानकारी मिलती है. मैं आपका भी और ट्विंकल खन्ना जी का भी ट्विटर देखता हूं और जिस तरह से वो मुझ पर गुस्सा निकालती हैं तो मैं समझता हूं कि इससे आपके परिवार में बहुत शांति रहती होगी. यहां मोदी जी अलग-अलग सियासी झुकाव के कारण एक ही परिवार में होने वाले मतभेद पर बात कर रहे थे. आज सोशल मीडिया पर लोग अपने सियासी मतभेद पर जिस तरह से भिड़ रहे हैं, वो अपूर्व है. कई बार एक ही घर के सदस्यों के बीच मतभेद पैदा हो रहे हैं. क्या इस सोशल दंगल पर टिप्पणी इसे न्यू नॉर्मल की कैटेगरी में खड़ा करने की कोशिश नहीं है?
चाय वाला, चौकीदार, पिछड़ा और अब...
इस पूरे इंटरव्यू में बार-बार बताया गया कि मोदी जी किस तरह गरीबी में रहे. कितने त्याग किए. जब उनके उम्दा स्टाइल स्टेटमेंट के बारे में पूछा गया तो भी उन्होंने यही कहा कि हो सकता है ये इस वजह से हो कि उन्होंने अपनी ज्यादातर जिंदगी कमियों में गुजारी है. क्या ये महज संयोग है कि मोदी खुद को कभी चाय वाला कभी चौकीदार और कभी पिछड़ा बताते हैं. रैलियों से लेकर इंटरव्यू तक में खुद को आम बताने में कुछ खास बात नहीं है क्या? आम आदमी से खुद को कनेक्ट करने की कोशिश नहीं है क्या?
रैलियों में वीरानी, टीवी पर सुपरहिट कहानी
इस बार चुनावी रैलियों में सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक जैसे शब्द खूब सुने जा रहे हैं. बेरोजगारी, विकास और सामाजिक न्याय के बदले इन्हें ही सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा बताया जा रहा है.
शायद सौतेले मौसम और बेगाने मुद्दों का ही तकाजा है कि रैलियों में उतनी भीड़ नहीं जुट रही. लेकिन बुधवार को तमाम खबरिया चैनलों के परदे पर दो ही तस्वीरें तैरती दिखीं.
साइबर वर्ल्ड से सैटेलाइट चैनलों तक सर्वव्यापी इस इंटरव्यू के शुरू में ही सुपरहिट फिल्म हेराफेरी के एक्टर अक्षय कुमार ने एक डिस्क्लेमर दे दिया - ये इंटरव्यू एकदम नॉन पॉलिटिकल है. लेकिन चुनावी माहौल में अनेकानेक इंटरव्यूज के बाद मोदी जी ने एक स्टार एक्टर को इंटरव्यू दिया और वो टीवी पर सुपरहिट हो गया. क्या ये टीवी के परदों के जरिए जनमत पर सॉफ्ट सर्जिकल स्ट्राइक नहीं है?
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