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जहरीले स्क्रैप टायर का ये धंधा पर्यावरण के पहरेदारों से दूर क्यों?

क्या आपको पता है कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा खराब टायरों का आयात करने वाला देश है?

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क्या आपको पता है कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा खराब टायरों का आयात करने वाला देश है? यूनाइटेड नेशंस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया भर में जितने स्क्रैप टायर आयात किए गए, उसका 32 फीसदी भारत में ही आया. अब इन खराब टायरों का आपकी सांस से कनेक्शन क्या है?

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने इन बेकार टायरों के प्रबंधन को लेकर चिंता जाहिर की थी. साथ ही सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (CPCB) से इस कचरे के प्रबंधन पर प्लान भी बनाने को कहा था.

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देश और देश की राजधानी यानी दिल्ली सबसे ज्यादा प्रदूषण की चपेट में है. लेकिन जब दिल्ली में चुनाव आए हैं ऐसे में भी कोई भी पार्टी इसे गंभीर मुद्दा बनाने के लिए तैयार नहीं दिख रही. पर्यावरण प्रदूषण के कुछ ऐसी वजहें हैं जो पूरे साल चलती रहती हैं, शासन-प्रशासन की नाक के नीचे. इनके बारे में ज्यादा बात तक नहीं होती. ऐसी ही एक बड़ी समस्या है खराब टायरों का पायरोलिसिस इंडस्ट्री में इस्तेमाल, जिसके कारण हर रोज आपकी हवा जहरीली होती जा रही है.

ताजा अनुमान के मुताबिक, भारत में हर रोज करीब 275,000 टायर स्क्रैप में जाते हैं. हर साल दुनियाभर में जितने टायर स्क्रैप में जाते हैं उसमें भारत की हिस्सेदारी 6 फीसदी है. क्या इन खराब टायरों के मैनेजमेंट का कोई प्लान है? 

जहरीली धुएं की जद में हैं हजारों गांव

खराब टायरों को लेकर चिंता इसलिए बढ़ जाती है क्योंकि देश के कई राज्यों में आधिकारिक और अनाधिकारिक तौर पर पायरोलिसिस प्लांट धड़ल्ले से काम कर रहे हैं. इन प्लांट्स में खराब टायरों को जलाकर उससे पायरोलिसिस ऑयल, पायरो गैस बनाई जाती हैं. इस प्रक्रिया में जहरीला धुआं निकलता है, जो पर्यावरण और आम इंसान के लिए बेहद हानिकारक होता है.

देश की राजधानी दिल्ली से करीब 100 किलोमीटर दूर मथुरा जिले में नबीपुर गांव है. ये पायरोलिसिस इंडस्ट्री का कहर झेलने वाले गांव-शहरों के लिए अच्छा उदाहरण हैं. नबीपुर में करीब एक दर्जन पायरोलिसिस प्लांट हैं. इसी गांव के रहने वाले शिवम कहते हैं कि ये फैक्ट्रियां चलाने वाले किसी भी मानक का इस्तेमाल नहीं कर रहे, काला धुंआ लगातार निकलता रहता है. गांव के लोग कई बार इसके खिलाफ आंदोलन कर चुके हैं, लेकिन कोई फायदा नहीं.

शिवम कहते हैं कि ज्यादा हंगामा देखते हुए ये फैक्ट्रियां बीच में बंद कर दी जाती हैं. जैसे ही आंदोलन दबता है इनका काम फिर शुरू हो जाता है.

इसी गांव के रहने वाले संजीव कहते हैं कि न सिर्फ हमारे स्वास्थ्य पर असर पड़ रहा है, आसपास रहने वाले जानवरों पर भी इस तरह के प्रदूषण का असर है. जब से ये प्लांट चल रहे हैं, गाय-भैंसे बीमार लगातार बीमार पड़ रही हैं.

ये सिर्फ एक गांव की हालत नहीं है. देश के कई गांव में ये खेल चल रहा है.

देशभर में 637 पायरोलिसिस यूनिट्स

सीपीसीबी को सौंपी गई एक रिपोर्ट के मुताबिक, देशभर में 637 टायर पायरोलिसिस यूनिट्स हैं. इन 637 यूनिट्स में से 251 यूनिट्स ही नियम-कानून के मुताबिक काम कर रहे हैं, 270 यूनिट्स नियमों को ताक पर रखकर काम कर रहे हैं, 116 बंद हैं. ये तो हो गया सरकारी आंकड़ा. लेकिन इसके अलावा भी कई प्लांट धड़ल्ले से चलाए जा रहे हैं जिसके बारे में कोई रिकॉर्ड ही नहीं है. इन प्लांट्स को चलाने में खर्च कम आता है, ऐसे में प्रशासन की सख्ती देखते हुए अवैध तरीके से चलाने वाले कुछ दिन के लिए प्लांट बंद कर देते हैं. ढिलाई दिखते ही फिर से टायरों को जलाने और पायरोलिसिस ऑयल बनाने का काम शुरू हो जाता है.

क्या कदम उठाया जा रहा है?

सितंबर, 2019 में पायरोलिसिस इंड्रस्टी में खराब टायरों के इस्तेमाल को लेकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में सुनवाई हुई थी. एनजीओ सोशल एक्शन फार फारेस्ट एंड एनवायरमेंट (सेफ) की याचिका पर हुई सुनवाई में पायरोलिसिस इंडस्ट्री में टायरों के पूरी तरह से बैन किए जाने की मांग की गई थी.

सुनवाई में NGT ने सेंट्रल पॉल्युशन कंट्रोल बोर्ड को ये निर्देश दिया था कि वो खराब टायरों के बैन और उसके भारी आयात पर लगाम कसने के लिए निर्देश जारी करे. इस मामले में अगली सुनवाई की तारीख अगले साल के शुरुआती हफ्तों में रखी गई है.

खराब टायरों के बेतहाशा आयात को लेकर एनजीटी की पीठ ने कहा था कि ये सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि भारत दूसरे देशों के खतरनाक कचरों का अड्डा न बन जाए.

बता दें कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा खराब टायरों का आयात करने वाला देश है. द गार्जियन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ब्रिटेन जैसे देश हर साल हजारों टन खराब टायर भारत को एक्सपोर्ट कर रहे हैं.

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