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PFI बैन: कौन हैं वो 3 चेहरे जिन्होंने रखी थी पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया की नींव

PFI Ban: 'एम्पॉवर इंडिया 2047' को भारत के इस्लामीकरण की साजिश बताया गया, इसके पीछे अब्दुल रहिमान का दिमाग था

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भारत
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PFI बैन: कौन हैं वो 3 चेहरे जिन्होंने रखी थी पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया की नींव
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एक अंग्रेजी के प्रोफेसर, एक अरबी भाषा के शिक्षक और एक लाइब्रेरियन. पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया यानी PFI के बनने और आगे बढ़ने के पीछे ये तीन चेहरे हैं. मोदी सरकार ने PFI (Popular Front of India) को बैन कर दिया है. सरकार ने PFI पर टेरर लिंक का आरोप लगाते हुए 5 साल के लिए बैन किया है. अब संगठन ने भी खुद को भंग करने का ऐलान कर दिया है.

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22 सितंबर 2022 को पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) पर अपनी पहली राष्ट्रव्यापी कार्रवाई में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने करीब 70 साल की उम्र के तीन लोगों को गिरफ्तार किया था, जिन्होंने 1992 में पीएफआई के मूल संगठन नेशनल डेवलपमेंट फ्रंट (NDF) की स्थापना और संचालन किया था. ये तीनों हैं प्रोफेसर पी कोया, ई अबूबकर और ईएम अब्दुल रहिमन.

केंद्र सरकार ने कहा है कि PFI को विध्वंशक गतिविधियों को चलते गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 यानी Unlawful Activities (Prevention) Act (UAPA) के के तहत बैन किया गया है. वहीं PFI के अलावा रिहैब इंडिया फाउंडेशन (RIF), कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (CFI), ऑल इंडिया इमाम काउंसिल (AIIC), नेशनल कॉन्फेडरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स ऑर्गनाइजेशन (NCHRO), नेशनल वीमेन फ्रंट, जूनियर फ्रंट, एम्पावर इंडिया फाउंडेशन और रिहैब फाउंडेशन, केरल जैसे सहयोगी संगठनों पर भी बैन लगाया गया है.
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कौन है प्रोफेसर पी कोया?

कोझिकोड के गवर्नमेंट आर्ट्स कॉलेज में पढ़ाने वाले प्रोफेसर पी कोया के बारे में माना जाता है कि वे बचपन में वामपंथी विचारधारा से जुड़े थे. केरल के कोझीकोड में स्थित एक मध्यम-आय वाले परिवार से आने वाले कोया अपनी किशोरावस्था में नास्तिक थे.

लेकिन कुछ वक्त के बाद कोया का जमात-ए-इस्लामी हिंद की तरफ रुझान बढ़ा और 70 के दशक में उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में उभरे स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) में शामिल हो गए. इसी दौरान ई अबूबकर और ईएम अब्दुल रहिमन साथ आए. अबुबकर कोझीकोड के रहने वाले थे, वहीं रहमान एर्नाकुलम में रहते थे.

हालांकि तीनों ने कुछ वक्त बाद सीमी से खुद को अलग कर लिया था. वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक ऑबजरवर सी दाऊद कहते हैं, “सिमी के संविधान में, आयु सीमा अनिवार्य थी. कोई भी 30 साल से अधिक का संगठन में नहीं रह सकता है. लेकिन यह एक आम गलत धारणा है कि कोया, अबूबकर और अब्दुल रहमान ने सिमी से अलग होने के बाद एनडीएफ की शुरुआत की.”

हालांकि दोनों को सिमी छोड़ना पड़ा, लेकिन वे स्थानीय मुस्लिम युवाओं और छात्रों के संगठनों से जुड़े थे, जो 1980 के दशक में केरल में उभरे थे. मुख्य रूप से वे लोग जो मुस्लिम समुदाय के उत्थान के लिए सामाजिक परिवर्तन के पक्षधर थे, जैसे वायनाड मुस्लिम एसोसिएशन, मुस्लिम ब्रदर्स क्लब , मुस्लिम टास्क फोर्स और यंगस्टर्स एसोसिएशन. लेकिन 1990 के दशक की शुरुआत में नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ने वास्तव में आकार लिया.

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पीएफआई के समाचार पत्र तेजस के पूर्व संपादक और अबूबकर के बचपन के दोस्त एनपी चेकुट्टी ने क्विंट को बताया,

“यह उन मामलों में ई अबूबकर की सक्रिय भागीदारी के साथ शुरू हुआ जहां कोझीकोड के नाडापुरम में स्थानीय CPI(M) कार्यकर्ताओं द्वारा मुस्लिम युवाओं पर कथित रूप से हमला किया गया था. वे और उनके मित्र CPI(M) कार्यकर्ताओं को बैकफुट पर लाने में सफल रहे. गठबंधन बाद में अलग-अलग धाराओं के लोगों को शामिल करने के लिए विकसित हुआ और नेशनल डेवलपमेंट फ्रंट बन गया.”

हालांकि, 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस ने एनडीएफ को बढ़ावा दिया और संघ परिवार के खिलाफ खड़े होने की कोशिश हुई. एनडीएफ की स्थापना 1992 में हुई थी और 1993 में कोझीकोड में इसका सार्वजनिक तौर पर घोषणा किया गया.

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वहीं NDF में कोया विचारक, अबूबकर आयोजक और अब्दुल रहमान योजनाकार बन गए. तीनों लोग अब तक अपनी-अपनी भूमिका निभाते रहे हैं, यहां तक ​​कि पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) में उनकी सक्रिय भागीदारी समय के साथ कम हो गई थी.

PFI के केरल अध्यक्ष नेसरूद्दीन एलामोरम संगठन के संस्थापकों में से एक हैं. इसके राष्ट्रीय अध्यक्ष अबुबकर भी केरल से ही हैं.
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अबुबकर ने संगठन में दी जान

अबूबकर को एनडीएफ में भीड़ खींचने वाले एक व्यक्ति के रूप में जाना जाता है. अरबी भाषा के शिक्षक अबूबकर ने एनडीएफ की स्थानीय स्तर की इकाइयों के निर्माण के लिए पूरे केरल की यात्रा की. जब कई छोटे मुस्लिम संगठनों ने बाबरी मस्जिद के लिए धन इकट्ठा करने के लिए संघर्ष किया, वहीं अबूबकर के मुतबाकि, युवाओं की टीम ने राज्य भर की अलग-अलग मस्जिदों से मिनटों के भीतर 11.5 लाख रुपये जमा कर लिए थे. इसके अलावा निचले पायदान के नेताओं को केरल और भारत में कहीं भी कथित मानवाधिकारों के उल्लंघन के विरोध में हिस्सा लेने और नेतृत्व करने के लिए प्रोत्साहित किया.

अबुबकर ने संगठन को मजबूत करने के लिए अलग-अलग राज्यों में यात्राएं की और लोकल मुस्लिम संगठनों को साथ लाने की कोशिश की.

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जब कोया और अबुबकर एनडीएफ को वैचारिक और संगठनात्मक रूप से बढ़ावा दे रहे थे, कोचीन विश्वविद्यालय में लाइब्रेरियन के रूप में काम करने वाले ईएम अब्दुल रहिमन ने भविष्य की योजना बनाई.

अब्दुल रहिमन- मुसलमानों के लिए आरक्षण की उठाई मांग

अब्दुल रहीमान ने साल 2000 में त्रिवेंद्रम से कासरगोड तक मुसलमानों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण की मांग करते हुए एक मार्च का नेतृत्व किया था.

बता दें कि कोया और अबुबकर और रहीमन में सिर्फ अब्दुल रहीमन ही अभी भी पीएफआई में आधिकारिक पद पर हैं. वह संगठन के वर्तमान उपाध्यक्ष हैं.

पीएफआई के प्रमुख कार्यक्रम 'एम्पॉवर इंडिया 2047' को रहिमान के दिमाग की उपज माना जाता है. इसी प्रोग्राम पर विवाद खड़ा हो गया था क्योंकि कई हिंदुत्ववादी संगठनों ने इसे "2047 तक भारत को इस्लामी देश" में बदलने के प्रयास के रूप में देखा था.

वहीं अगर मौजूदा बड़े नामों की बात करें तो एनआईए ने पीएफआई के और भी प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार किया है, जिनमें राष्ट्रीय अध्यक्ष ओएमए सलाम, राष्ट्रीय महासचिव अनीस अहमद और केरल के राज्य अध्यक्ष नजीरुद्दीन एलाराम शामिल हैं.

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