कर्नाटक में धर्म परिवर्तन (Religious Conversion) रोकने के लिए लाए गए धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार और संरक्षण बिल के खिलाफ बेंगलुरु में 40 से ज्यादा मानवाधिकार संगठनों और क्रिश्चियन समुदाय के लोगों बुधवार , 22 दिसंबर को प्रदर्शन किया. यह बिल कर्नाटक विधानसभा में 21 दिसंबर को पेश किया गया.
विरोध मार्च का आयोजन मैसूर बैंक सर्किल से लेकर फ्रीडम पार्क तक किया गया. इस प्रदर्शन में भाषण, संगीत और संवैधानिक नारों के जरिए धर्म परिवर्तन विरोधी बिल रोकने की मांग की गई. प्रदर्शनकारियों ने कहा कि कर्नाटक सरकार संविधान के द्वारा दिए गए धार्मिक स्वतंत्रता, निजता और गरिमा के साथ जीने के अधिकार का उल्लंघन कर रही है. इस प्रदर्शन में बेंगलुरु के आर्कबिशप पीटर मचाडो भी शामिल हुए, उन्होंने खुलकर विधेयक की आलोचना की.
ऑल कर्नाटक यूनाइटेड क्रिश्चियन फोरम फॉर ह्यूमन राइट्स के सेक्रटरी एफआर फॉस्टिन एल लोबो ने कहा, ''संविधान में धार्मिक स्वतंत्रता और जबदस्ती पर सजा का साफ जिक्र है. सिस्टम वर्तमान कानून को लागू करना में अफल रहा है,नया कानून केवल असामाजिक तत्वों का प्रोत्साहित करेगा.''
बेंगलुरु में रहने वाली ऐक्टिविस्ट बृंदा एडिज ने बिल का विरोध करते हुए कहा, ''पूजा और किसको पूजना है, इस संवैधानिक अधिकार का इस्तेमाल कर रहे लोगों को संरक्षण देने की बजाए नेता हमें कंट्रोल करने के लिए कानून लेकर आ रहे हैं.''
संविधानदा हादियल्ली के अशोक मारिदास ने इस बिल को बेहद सख्त बताते हुए कहा कि इस बिल में लोगों के किसी भी मत का पालन करने के संवैधानिक अधिकार को इस बिल में अपराध घोषित कर दिया गया है. इसका इस्तेमाल अल्पसंख्यकों के खिलाफ किया जाएगा.
''असली मुद्दों पर क्यों नहीं देते ध्यान?''
अर्थशास्त्री डॉ. जोसेफ रस्कीना ने कहा कि वर्तमान हालात में ऐसा कानून लाने की कोई जरूरत नही हैं. फिलहाल अर्थव्यवस्था, जॉब और कोरोना जैसे मुद्दों पर फोकस करना ज्यादा जरूरी है.
सरकार के द्वारा हिंदू और मुसलमान समुदाय को लगातार एकदूसरे का दुश्मन बताने का प्रयास किया जा रहा है. इससे यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि राज्य में जो ज्यादा अहम मुद्दे हैं, उनमें किसी तरह का संसाधन ना लगे. सरकार राज्य में बच्चों के खानपान के हालात, शिक्षा, सार्वजनिक परिवहन, सुरक्षा, स्वास्थ्य जैसे मुद्दे पर ध्यान नहीं दे रही है. इसपर ध्यान कौन देगा?सिल्विया कर्पागम
बीजेपी सरकार यह दावा कर रही है कि कानून कर्नाटक के लोगों के हित में है, लेकिन राज्य का क्रिश्चियन समुदाय इसे असहिष्णुता बढ़ाने का प्रयास मान रहा है. अर यह बिल कर्नाटक विधानसभा से पास हो जाता है तो भी इसे विधान परिषद में जाना होगा, जहां फिलहाल बीजेपी बहुमत में नहीं है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)