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नहीं रहे प्रणब दा: लेक्चरर से राष्ट्रपति तक,50 साल का राजनीतिक सफर

एक लेक्चरर से लेकर राष्ट्र के प्रथम नागरिक तक के उनके सफर पर एक नजर डालते हैं.

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भारत
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वीडियो एडिटर: मोहम्मद इब्राहीम

देश के वित्त मंत्री, रक्षा मंत्री और राष्ट्रपति रह चुके और भारत रत्न से सम्मानित प्रणब मुखर्जी नहीं रहे. 84 साल की उम्र में सेना के आरआर अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांसें लीं. पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले में 11 दिसंबर 1935 को जन्मे प्रणब मुखर्जी का राजनीतिक करियर 50 साल से ज्यादा लंबा रहा. इस दौरान उन्होंने सरकार के अलग-अलग पदों, कई अंतराष्ट्रीय संस्थाओं का प्रतिनिधित्व किया.

स्वतंत्रता सेनानी किंकर मुखर्जी और राजलक्ष्मी के बेटे प्रणब मुखर्जी एक ऐसे परिवार में जन्मे थे, जहां उनके पिता ने देश की आजादी की लड़ाई के लिए कई बार जेल जा चुके थे.

प्रणब मुखर्जी का विवाह रवींद्र संगीत की गायिका स्वर्गीय सुव्रा मुखर्जी से हुआ था, उनके एक बेटे और एक बेटी हैं. सुव्रा मुखर्जी का साल 2015 में देहांत हो गया.
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कोलकाता यूनिवर्सिटी से इतिहास और पॉलिटिकल साइंस में पोस्ट ग्रेजुएशन और लॉ की डिग्री हासिल करने वाले प्रणब ने बतौर शिक्षक और पत्रकार के तौर पर अपना प्रोफेशनल करियर शुरू किया. साल 1969 में राज्यसभा के मेंबर चुने जाने के बाद वो पूरी तरह से सार्वजनिक जीवन में कूद पड़े.

प्रणब मुखर्जी का राजनीतिक करियर

साल 1969 में ही प्रणब दा ने मिदनापुर में स्वतंत्र उम्मीदवार वीके कृष्णा मेनन के लिए कैंपेन में हिस्सा लिया. इंदिरा गांधी ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें कांग्रेस में ले आईं. वो उसी साल राज्यसभा सांसद और 1973 में मंत्री बने. जब इंदिरा गांधी 1980 में सत्ता में लौटीं तो मुखर्जी राज्यसभा में सदन के नेता और 1982 में वित्त मंत्री बने. जब इंदिरा की हत्या की गई तो मुखर्जी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार माना गया. लेकिन ये पद राजीव गांधी को मिला.

मुखर्जी 1986 में कांग्रेस से अलग हो गए और पश्चिम बंगाल में राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस का गठन किया. वो 1989 में पार्टी में दोबारा शामिल हुए और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.
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प्रणब मुखर्जी का कार्यकाल

  • योजना आयोग के अध्यक्ष: 1991
  • विदेश मंत्री: 1995
  • रक्षा मंत्री: 2004-06
  • विदेश मंत्री : 2006-09
  • वित्त मंत्री: 2009-12

कई लोगों का मानना है कि मुखर्जी 1998 में कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष के रूप में सोनिया गांधी को स्थापित करने में सहायक थे. उन्हें प्यार से लोग 'प्रणब दा' बुलाते हैं. जुलाई 2012 में वो भारत के राष्ट्रपति बने और जुलाई 2017 तक भारत के 'प्रथम नागरिक' रहें.

कूटनीतिक अनुभव

प्रणब मुखर्जी को अपने पूरे करियर के दौरान कई बड़े संस्थाओं का हिस्सा बनने का मौका मिला. वो अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक, एशियाई विकास बैंक और अफ्रीकी विकास बैंकों के संचालक मंडलों में रहे हैं. उन्होंने 1982, 1983 और 1984 में राष्ट्रमंडल वित्त मंत्रियों के सम्मेलन में; 1994, 1995, 2005 तथा 2006 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में, 1995 में ऑकलैंड में राष्ट्रमंडल शासनाध्यक्षों के सम्मेलन में, 1995 में कार्टाजीना में गुटनिरपेक्ष विदेश मंत्रियों के सम्मेलन में और 1995 में बांडुंग में अफ्रीकी-एशियाई सम्मेलन की 40वीं वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित सम्मेलन में भारतीय शिष्टमंडल का नेतृत्व किया.

वैचारिक मतभेद के बावजूद RSS के कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए पार्टी में कई लोगों ने उनकी आलोचना की, इनमें उनकी बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी भी थीं. प्रणब मुखर्जी को उनकी राजनीति और भारतीय राजनीति में योगदान के लिए हमेशा याद किया जाएगा.

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