वाराणसी की जिला कोर्ट ने काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद कॉम्प्लेक्स के पुरात्विक सर्वे को अनुमति दे दी है. इस मामले में याचिकाकर्ता के वकील वीएस रस्तोगी ने कोर्ट में अर्जी देकर ज्ञानवापी मस्जिद की जमीन हिंदुओं को वापस करने की मांग की थी. सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रशांत भूषण ने इस आदेश को पूजा स्थल एक्ट 1991 के खिलाफ बताते हुए कहा है कि इसपर हाईकोर्ट को तुरंत रोक लगानी चाहिए.
प्रशांत भूषण ने ट्विटर पर लिखा, "ये पूरी तरह से पूजा स्थल (विशेष प्रावधानों अधिनियम) 1991 के खिलाफ है. इसपर हाईकोर्ट को तुरंत रोक लगानी चाहिए."
AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने इस आदेश की वैधता पर सवाल उठाया है. एक के बाद एक कई ट्वीट्स में ओवैसी ने लिखा, "AIMPLB और मस्जिद कमेटी को इस आदेश से पहले तुरंत अपील करनी चाहिए और इसे सुधारना चाहिए. ASI से इसमें केवल धोखाधड़ी की संभावना है और इतिहास दोहराया जाएगा जैसा कि बाबरी के मामले में किया गया था."
जर्नलिस्ट राणा अयूब ने लिखा, “भारत में एक और मस्जिद ढाहने के लिए स्टेज तैयार हो रहा है, जिसे ज्यूडिशरी से अनुमति मिली है और सत्ता का समर्थन प्राप्त है, मुस्लिम अल्पसंख्यकों के लिए अपमान करने वाला दिन.”
कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने भी आदेश पर सवाल उठाते हुए कहा कि क्या वरिष्ठ सिविल जज ऐसा आदेश दे सकता है?
क्या है मामला?
याचिकाकर्ता का दावा है कि मुगल बादशाह औरंगजेब ने 1664 में 2000 साल पुराने मंदिर के एक हिस्से को गिरा दिया था और वहां पर ज्ञानवापी मस्जिद बनाई थी. याचिकाकर्ता की इस दलील का ज्ञानवापी मस्जिद मैनेजमेंट कमेटी ने विरोध किया था, लेकिन अब कोर्ट ने मस्जिद के पुरातत्व सर्वे को मंजूरी दे दी है.
काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद कॉम्प्लेक्स के ASI सर्वे का पूरा खर्च सरकार द्वारा उठाया जाएगा.
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