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प्रशांत किशोर नहीं थामेंगे कांग्रेस का हाथ, बनते-बनते कहां बिगड़ गई बात?

Prashant kishor और सुरजेवाला के ट्वीट से साफ है कि प्रशांत किशोर को वो पद मंजूर नहीं था जो उन्हें ऑफर किया गया.

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बनते बनते बात बिगड़ गई. जब सब मान चुके थे कि प्रशांत किशोर (Prashant Kishore) कांग्रेस (Congress) का हाथ थाम लेंगे तो खबर आ गई कि प्रशांत किशोर कांग्रेस में नहीं जा रहे. तो बात कहां बिगड़ गई? उन्होंने तो सोनिया गांधी, अशोक गहलोत, भूपेश बघेल समेत कई दिग्गज नेताओं के सामने कांग्रेस की किस्मत चमकाने का सीक्रेट प्लान भी रखा था.

दरअसल प्रशांत किशोर और रणदीप सुरजेवाला के ट्वीट पर गौर करें तो पता चलेगा कि कांग्रेस-पीके की पिक्चर वहीं खत्म हुई है, जहां पिछले साल इंटरवल में रुकी थी.

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प्रशांत किशोर ने लिखा है कि उन्हें कांग्रेस ने इंपावर्ड एक्शन ग्रुप का हिस्सा बनाने का ऑफर दिया था लेकिन मैंने उसे ठुकरा दिया. डील कैंसल होते ही पीके कांग्रेस पर हमलावर हैं. उन्होंने लिखा है कि - मेरे विचार में मुझसे ज्यादा कांग्रेस को नेता की जरूरत है. कांग्रेस में एक सामूहिक इच्छाशक्ति की जरूरत है ताकि जड़ जमा चुकी ढांचागत समस्या को आमूलचूल सुधारों के जरिए ठीक किया जा सके.

प्रशांत किशोर के पार्टी न ज्वाइन करने की सूचना देते हुए कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने ट्वीट किया- प्रशांत किशोर के प्रजेंटेशन और बातचीत के बाद पार्टी की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने एक एंपावर्ड एक्शन ग्रुप 2024 बनाया था. उन्होंने प्रशांत किशोर को इस ग्रुप का हिस्सा बनने का ऑफर दिया था. उन्हें तय जिम्मेदारी दी थी, लेकिन पीके ने मना कर दिया. हम उनकी मेहनत और पार्टी को सलाह का सम्मान करते हैं.

जब प्रशांत किशोर प्रजेंटेशन दे रहे थे तो अशोक गहलोत ने ये प्रजेंटेशन देखने के बाद खुलेआम कहा था कि पीके ने जो सुझाव दिए हैं उनसे कांग्रेस को फायदा होगा.

तो बात कहां बिगड़ी?

दोनों ट्वीट से साफ है कि प्रशांत किशोर को वो पद मंजूर नहीं हुआ जो पार्टी ने उन्हें ऑफर किया. दरअसल पिछली बार भी बात यहीं बिगड़ी थी. बताते हैं कि प्रशांत किशोर पार्टी में खुला हाथ चाहते थे. एकदम अटल शक्ति. इस बार भी लगता है कि यही बात नहीं बन पाई. खासकर 2024 के लिए सोनिया के बनाए एंपावर्ड ग्रुप में जगह पीके के लिए काफी नहीं थी.

पीके की तरफ से सोचें तो बिना खुली छूट के वो अपनी रणनीति को लागू नहीं कर पाएंगे, लिहाजा फेल होने का डर होगा. कांग्रेस की तरफ से सोचें तो पीके को सर्वशक्तिमान बनाने से पार्टी में शक्ति संतुलन एकदम बिगड़ने का डर है. कई बागी हो सकते हैं.

कांग्रेस और पीके की बात बनने की राह में एक और बाधा तब नजर आ रही थी जब प्रजेंटेशन से लेकर डिस्कशन में राहुल गांधी की चर्चा नहीं हो रही थी.

अप्रैल की शुरुआत में पूरी चर्चा थी कि पीके महासचिव के तौर पर पार्टी ज्वाइन करेंगे. सूत्र तो ये भी बताते हैं कि उनको महासचिव बनाने का ऐलान होने ही वाला था लेकिन फिर इसे रोक दिया गया.
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2021 की कहानी 2022 में दोहराई गई?

प्रशांत किशोर के कांग्रेस में आने की जोरदार चर्चा 2021 में भी चली थी, लेकिन तब भी बात बनते-बनते बिगड़ गई थी. तभी भी बात भूमिका को लेकर अटक गई थी. प्रशांत किशोर एक पद को लेकर इच्छुक नहीं थे लेकिन अपनी 2024 के लिए अपनी रणनीति को लागू करने में किसी की दखल नहीं चाहते थे. अगर ऐसा तो वो पार्टी में गांधी परिवार के बाद सबसे ताकतवर बन जाते. पिछली बार की तरह ही रिश्ते एक कड़वाहट के साथ खत्म हुए लगते हैं क्योंकि पिछली बार बात नहीं बनने के बाद प्रशांत ने खुले मंचों से कांग्रेस की आलोचना की. इस बार भी बात न बनने की जानकारी देते हुए कह दिया है कि उनसे से ज्यादा पार्टी को लीडरशिप की जरूरत है.

एक बात तो तय है कि प्रशांत किशोर और कांग्रेस के बीच बात नहीं बनने के लिए बड़े सियासी नतीजे निकलेंगे. नेशनल लेवल से राज्यों तक.

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