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द्रौपदी मुर्मू ही नहीं, सोरेन से लेकर मनसुख वसावा भी हैं आदिवासियों के बड़े नेता

आदिवासी नेता मनसुख वसावा के बारे में कितना जानते हैं आप?

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द्रौपदी मुर्मू (Draupadi Murmu) को NDA की तरफ से राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाए जाने के बाद से देश में एक बार फिर आदिवासी नेताओं का जिक्र होना शुरू हो गया है. कोई इसे बीजेपी का ‘मास्टर स्ट्रोक’ बता रहा है, तो कोई इसे सिर्फ चुनाव एजेंडा कह रहा है. हालांकि, ये सच है कि सत्ता में बैठे सत्तासीनों को आदिवासी समाज तभी नजर आता है जब उन्हें वोट लेना होता है. लेकिन, इन सबके बीच हम कुछ आदिवासी नेताओं के बारे में बता रहे हैं, जो राजनीतिक रूप से आदिवासी समाज का नेतृत्व करते हैं.

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दरअसल, भारत की जनसंख्या का 8.6 फीसदी यानी 10 करोड़ आबादी आदिवासियों की है. इनमें सबसे ज्यादा मध्यप्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, ओड़िशा, झारखंड, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और गुजरात में निवास करते हैं. NDA की राष्ट्रपति उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू ओड़िशा से आती हैं.

हालांकि, ये भी सच है कि आने वाले इस साल के अंत में राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. इसके अलावा 2023 में झारखंड, ओड़िशा और महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव होंगे. इन्हीं प्रदेशों में देश की सबसे ज्यादा आबादी आदिवासियों की है. आरोप है कि बीजेपी ने इन्हीं प्रदेशों के विधानसभा चुनाव को देखते हुए राष्ट्रपति उम्मीदवार के तौर पर द्रौपदी मुर्मू का नाम आगे बढ़ाया है.

बिरसा मुंडा को आदिवासी समाज अपना नेता और भगवान मानता है. बिरसा मुंडा आदिवासी समाज के ऐसे नायक रहे, जिनको जनजातीय लोग आज भी गर्व से याद करते हैं. आदिवासियों के हितों के लिए संघर्ष करने वाले बिरसा मुंडा ने तब के ब्रिटिश शासन से भी लोहा लिया था. बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर साल 1875 को हुआ था. वहीं, 9 जून 1900 में उनकी मृत्यु हो गई थी.

शिबू सोरेन

झारखंड मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष शिबू सोरेन का मौजूदा समय में आदिवासी नेताओं में नाम पहले लिया जाता है. शिबू सोरेन ने अपना पूरा जीवन झारखंडियों के उत्थान में लगा दिया. उन्होंने पृथक राज्य के आंदोलन के साथ-साथ महाजनी प्रथा और सूदखोरी को खत्म करने के लिए अभियान चलाया. दिशोम गुरु ने वर्षों जंगल की खाक छानी और कई दफा जेल गए. महाजनी और सूदखोरी प्रथा को खत्म करने के बाद उन्होंने पृथक झारखंड राज्य के आंदोलन का सफल नेतृत्व किया. वे झारखंड के मुख्यमंत्री समेत केंद्रीय मंत्री का पद संभाल चुके हैं. वे फिलहाल राज्यसभा के सदस्य हैं. शिबू सोरेन का जन्म 11 जनवरी 1944 को हुआ था.

अर्जुन मुंडा

झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा का भी नाम आदिवासियों के बड़े नेताओं में शामिल है. अर्जुन मुंडा ने अपने राजनीतिक पारी कि शुरुआत झारखंड मुक्ति मोर्चा से की थी. अर्जुन मुंडा झारखंड आंदोलन का भी हिस्सा थे. आंदोलन में सक्रिय रहते हुए अर्जुन मुंडा ने जनजातीय समुदायों और समाज के पिछड़े तबकों के उत्थान की कोशिश की.

1995 में वे झारखंड मुक्ति मोर्चा के उम्मीदवार के रूप में खरसावां विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से चुनकर बिहार विधानसभा पहुंचे थे. बतौर भारतीय जनता पार्टी प्रत्याशी 2000 और 2005 के चुनावों में भी उन्होंने खरसावां से जीत हासिल की. साल 2003 में विरोध के कारण बाबूलाल मरांडी को मुख्यमंत्री के पद से हटना पड़ा. यही वक्त था कि एक मजबूत नेता के रूप में पहचान बना चुके अर्जुन मुंडा पर भारतीय जनता पार्टी आलाकमान की नजर गई.

18 मार्च 2003 को अर्जुन मुंडा झारखंड के दूसरे मुख्यमंत्री चुने गये. अर्जुन मुंडा का जन्म 5 जनवरी साल 1968 को हुआ था. अर्जुन मुंडा फिलहाल बीजेपी से सांसद हैं और केंद्रीय जनजातीय मंत्री पद का दायित्व संभाल रहे हैं.

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बाबू लाल मरांडी

बाबू लाल मरांडी का नाम भी बड़े आदिवासी नेताओं में आता है. बाबू लाल मरांडी झारखंड के पहले मुख्यमंत्री हैं. इनका जन्म 11 जनवरी 1958 को हुआ था. मौजूदा समय में बीजेपी बाबू लाल मरांडी झारखंड विधानसभा में नेताप्रतिपक्ष की भूमिका निभा रहे हैं.

झारखंड में जयपाल सिंह, कार्तिक उरांव, एनइ होरो, बागुन सुंब्रई, डॉक्टर रामदयाल मुंडा जैसी प्रबुद्ध आदिवासी शख्सियत भी हुए, जिन्होंने लंबी राजनीतिक पारी खेली और देश-दुनिया में नाम स्थापित किया. आदिवासियों को इन हस्तियों ने पहचान के साथ आवाज भी दी.

बता दें, जयपाल सिंह के ही नेतृत्व में ही 1928 में भारत ने पहली दफा ओलंपिक हॉकी में हिस्सा लिया था. बाद में भारत का संविधान बनाने के लिए उन्होंने जनजातियों का प्रतिनिधित्व किया. वे सांसद भी रहे.

इनके अलावा एनइ होरो, बागुन सुंब्रई जैसे नेताओं ने खूंटी तथा चाईबासा जैसे आदिवासी इलाकों का लंबे दिनों तक विधानसभा-लोकसभा में प्रतिनिधत्व किया. कार्तिक उरांव भी छोटानागपुर में आदिवासियों के बड़े नेता के तौर स्थापित हुए. वे कई सरकारों में मंत्री भी बने.

झारखंड आंदोलन के अगुवा डॉक्टर रामदयाल मुंडा ने भी आदिवासी जननेता, बुद्धिजीवी के तौर पर ख्याति अर्जित की. उन्हें पद्मश्री का सम्मान भी मिला.
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मनसुख वसावा

मनसुख वसावा गुजरात के बड़े आदिवासियों में से एक हैं. आदिवासी समुदाय से आने वाले मनसुख वसावा का जन्म 1 जून 1957 को नर्मदा जिले के जूनाराज में हुआ था. वसावा ने BA की पढ़ाने करने के बाद MSW की भी शिक्षा ली. मनसुख वसावा की पढ़ाई साउथ गुजरात यूनिवर्सिटी और अहमदाबाद स्थिति विद्यापीठ से हुई. मूलरूप से उनका पेशा खेती-किसानी का है.

63 साल के मनसुख वसावा का राजनीतिक करियर काफी लंबा रहा है. 1994 में वसावा सबसे पहले गुजरात विधानसभा का चुनाव जीतकर विधायक बने थे. उन्हें गुजरात सरकार में डिप्टी मिनिस्टर भी बनाया गया था. इसके बाद वो लोकसभा चुनाव की राजनीति में उतर गए और तब से ही लगातार चुनाव जीतते आ रहे हैं. 1998 में वसावा भरूच से लोकसभा के सांसद निर्वाचित हुए. 1999 में लगातार दूसरी बार सांसद बने. जीत का ये सिलसिला चलता रहा और 2004. 2009, 2014 और 2019 में भी उन्होंने जीत हासिल की. साल 2014 में मोदी सरकार में वो केंद्रीय आदिवासी मंत्री भी थे.

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