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छात्रों को हिंसा में नहीं, बहस में हिस्सा लेना चाहिएः राष्ट्रपति

भारत स्वंतत्र अभिव्यक्ति और सोच के लिए जाना जाता है. ऐसे में असहिष्णु लोगों के लिए भारत में जगह नहीं होनी चाहिए

Published
भारत
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दिल्ली यूनिवर्सिटी में एबीवीपी और वामपंथी छात्र संगठनों में चल रहे विवाद के बीच राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने बड़ी टिप्पणी की है. राष्ट्रपति ने कहा है कि विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले छात्रों को हिंसा की संस्कृति को बढ़ावा नहीं देना चाहिए. बल्कि तार्किक विचार-विमर्श और बहस में हिस्सा लेना चाहिए.

राष्ट्रपति ने कहा कि यह देखना दुखद है कि छात्र हिंसा और अशांति के भंवर में फंसे हुए हैं. राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने ये बातें गुरुवार को केरल के कोच्चि में छठे केएस राजामोनी मेमोरियल लेक्चर के दौरान कही.

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विश्वविद्यालयों में स्वतंत्र सोच की वकालत करते हुए उन्होंने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मौलिक अधिकार है, आलोचना और सहमति दोनों के लिए जगह होनी चाहिए. भारत प्राचीन काल से स्वंतत्र अभिव्यक्ति और सोच के लिए जाना जाता है. ऐसे में असहिष्णु लोगों के लिए भारत में जगह नहीं होनी चाहिए.

आपको बता दें कि राष्ट्रपति की यह टिप्पणी ऐसे वक्त आई है जब दिल्ली विश्वविद्यालय में एबीवीपी और वामपंथी छात्र संगठनों के बीच गतिरोध चल रहा है. साथ ही गुरमेहर कौर के हालिया ट्वीट के बाद राष्ट्रवाद और स्वतंत्र अभिव्यक्ति पर बहस छिड़ी हुई है.

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देश में महिलाओं की सुरक्षा पर बात करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि किसी भी समाज की असली परीक्षा महिलाओं और बच्चों के प्रति उसके सोच से होता है. उन्होंने कहा कि अगर किसी समाज में महिलाओं से सही व्यवहार नहीं होता है तो उसे सभ्य नहीं माना जा सकता है. किसी महिला के साथ बर्बरता करने से सभ्यता की आत्मा पर गहरी चोट लगती है.

उन्होंने कहा कि मैं उस समाज को सभ्य नहीं मानता हूं जहां के नागरिक महिलाओं के प्रति सभ्य बर्ताव नहीं करते हैं.

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