सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम आदेश में कहा कि वेश्यावृत्ति (Prostitution) एक पेशा है और सेक्स वर्कर्स कानून के अनुसार सम्मान और समान सुरक्षा की हकदार हैं. सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस से कहा कि अपनी सहमति से सेक्स वर्कर (Sex Workers) के तौर पर काम करने वालों के खिलाफ न तो उन्हें दखल देना चाहिए और न ही कोई आपराधिक कार्रवाई शुरू करनी चाहिए.
आइए जानते हैं सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में क्या-कहा कहा है, उसका क्या मतलब है और वेश्यावृत्ति पर भारत का कानून क्या कहता है?
"वेश्यावृत्ति भी एक पेशा है": सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने 19 जुलाई 2011 को अपना एक आदेश जारी कर सेक्स वर्कर्स से जुड़े मुद्दों के लिए एक पैनल का गठन किया था. पैनल को इन तीन पहलुओं पर ध्यान देना था :
ट्रैफिकिंग कैसे रोकी जाए?
सेक्स वर्क छोड़ने की इच्छा रखने वाली सेक्स वर्कर्स का पुनर्वास (रिहैबिटेशन)
जो सम्मान के साथ सेक्स वर्कर्स के रूप में काम करना जारी रखना चाहती हैं, उनके लिए अनुकूल परिस्थितियों का निर्माण
सभी स्टेकहोल्डर्स से बातचित और परामर्श करने के बाद पैनल ने 2016 में एक व्यापक रिपोर्ट प्रस्तुत की थी. इसके बाद जब मामला सुनवाई के बाद सूचीबद्ध किया गया था, तो केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया था कि पैनल की सिफारिशें विचाराधीन थीं और उनको शामिल करते हुए एक मसौदा कानून सरकार ने पब्लिश किया था.
लेकिन 2016 से आज 2022 हो गया और इन सिफारिशों के आधार पर सरकार ने कोई कानून नहीं बनाया. इसी तथ्य के मद्देनजर अब सुप्रीम कोर्ट ने गाइडलाइन्स जारी करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 142 के अंतर्गत मिली शक्ति का प्रयोग किया है.
जस्टिस एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच ने राज्यों और केंद्र सरकार को पैनल द्वारा की गई इन सिफारिशों का कड़ाई से पालन करने का निर्देश दिया है:
1. यह कहते हुए कि संविधान के अंतर्गत दी गयी सम्मान के साथ जीने का मौलिक अधिकार सेक्स वर्कर्स को भी समान रूप से मिला है, सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि पुलिस को सेक्स वर्कर्स के साथ सम्मान के साथ व्यवहार करना चाहिए और मौखिक या शारीरिक रूप से उनके साथ दुर्व्यवहार नहीं होना चाहिए.
2. बेंच ने आदेश दिया कि जब भी किसी वेश्यालय पर छापा मारा जाए तो सेक्स वर्कर्स को "गिरफ्तार या दंडित या परेशान" नहीं किया जाना चाहिए, "क्योंकि स्वेच्छा से सेक्स वर्क अवैध नहीं है, केवल वेश्यालय चलाना गैरकानूनी है".
3. कोर्ट ने कहा कि सेक्स वर्कर्स के बच्चे को सिर्फ इस आधार पर मां से अलग नहीं किया जाना चाहिए कि वह देह व्यापार में है. SC ने कहा "मानव गरिमा का मौलिक अधिकार सेक्स वर्कर्स और उनके बच्चों को भी है."
4. यदि कोई नाबालिग वेश्यालय में या सेक्स वर्कर के साथ रहता पाया/पायी जाता है, तो यह नहीं माना लिया जाना चाहिए कि बच्चे की ट्रैफिकिंग की गई है. "यदि सेक्स वर्कर का दावा है कि वह उसका बेटा/बेटी है, तो यह निर्धारित करने के लिए टेस्ट किया जा सकता है कि क्या वह दावा सही है. यदि यह दावा सही है तो नाबालिग को जबरन मां से अलग नहीं किया जाना चाहिए."
5. यौन उत्पीड़न की शिकार सेक्स वर्कर्स को तत्काल चिकित्सा-कानूनी देखभाल सहित हर सुविधा दी जानी चाहिए.
6. कोर्ट ने कहा कि मीडिया को इस बात का बहुत ध्यान रखना चाहिए कि गिरफ्तारी, छापेमारी और रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान कोई सेक्स वर्कर की पहचान उजागर न करें, चाहे वह सर्वाइवर हों या आरोपी. ऐसी कोई भी तस्वीर पब्लिश या प्रसारित न करें जिससे ऐसी पहचान का खुलासा हो.
7. सेक्स वर्कर्स द्वारा प्रोटेक्शन के लिए किए गए उपाय, जैसे कॉन्डम का उपयोग, पुलिस द्वारा उनके "अपराध" के खिलाफ सबूत के रूप में नहीं किया जाना चाहिए.
भारत में वेश्यावृत्ति पर क्या कहता है कानून?
पहला सवाल है कि क्या भारत में वेश्यावृत्ति कानूनी अपराध है या नहीं? यदि नहीं, तो क्या सेक्स वर्कर्स के पास कोई अधिकार है?- दरअसल इस सवाल का जवाब हां भी है और ना भी.
भारत में वेश्यावृत्ति स्पष्ट रूप से अवैध नहीं है क्योंकि देश में विशेष रूप से वेश्यावृत्ति को कानून द्वारा दंडनीय नहीं किया गया है. लेकिन वेश्यावृत्ति से जुड़ी कुछ गतिविधियां जैसे वेश्यालय चलाना, वेश्यालय में बुलाने के लिए इशारे करना करना, तस्करी करना और दलाली करना भारत में अनैतिक तस्करी रोकथाम अधिनियम, (1956)/ THE IMMORAL TRAFFIC (PREVENTION) ACT, (1956) के अंतर्गत गैरकानूनी है.
उदाहरण के लिए, यदि कोई आदमी दलाली/पिंपिंग में लिप्त है तो उसे कानून के तहत दंडित किया जाएगा, लेकिन अगर कोई सेक्स वर्कर सहमति से और बिना किसी पूर्व आग्रह के सेक्स के बदले पैसे लेती है तो वह भारत में अवैध नहीं है.
THE IMMORAL TRAFFIC (PREVENTION) ACT, (1956) के सेक्शन 2 (F) के अनुसार, "वेश्यावृत्ति" की परिभाषा दी है- किसी भी व्यावसायिक उद्देश्य के लिए किसी भी व्यक्ति का यौन शोषण या दुरुपयोग करना.
IPC 1860 की धारा 372 और 373 भी वेश्यावृत्ति से जुड़ी है लेकिन यह केवल बाल वेश्यावृत्ति (child prostitution) तक ही सीमित है. IPC की धारा 366A, 366B, 370A के अनुसार नाबालिग लड़की से सेक्स वर्क कराने, सेक्स के लिए विदेश से लड़की को इम्पोर्ट करने और ट्रैफिकिंग किए गए लोगों के शोषण के अपराधों के लिए दंड देने का प्रावधान है.
IPC धारा 372 और धारा 373 के तहत वेश्यावृत्ति के उद्देश्य से नाबालिग की खरीद, बिक्री और दूसरे देश से आयत को दंडित करता है.
सुप्रीम कोर्ट ने अब राज्यों और केंद्र सरकार के लिए गाइडलाइन्स जारी कर व्यक्तिगत स्तर पर सेक्स वर्कर्स के लिए अधिकारों को और अधिक स्पष्ट कर दिया है. SC ने पैनल की सिफारिशों के अनुसार ही एक आम पेशे के तौर पर अपनी मर्जी से सेक्स वर्क करने वालीं सेक्स वर्कर्स के लिए सुरक्षित और सम्मानजनक माहौल बनाने की दिशा में बड़ा कदम उठाया है.
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