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जम्मू-कश्मीर:प्रेस काउंसिल की याचिका का सदस्यों ने ही किया विरोध

जम्मू-कश्मीर में प्रेस की आजादी पर अनुराधा भसीन की याचिका में हस्तक्षेप के लिए प्रेस काउंसिल के आवेदन का विरोध शुरू

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भारत
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जम्मू-कश्मीर में कम्यूनिकेशन पर पाबंदी लगाए जाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका के बाद प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया की हस्तक्षेप याचिका पर संगठन के भीतर ही विरोध की आवाज उठने लगी हैं. प्रेस काउंसिल के सदस्यों के एक ग्रुप ने इस कदम पर नाराजगी जताते हुए कहा है कि उनसे इस मामले में कोई सलाह नहीं ली गई और न ही कोई जानकारी दी गई.

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‘प्रेस काउंसिल सरकार के हाथ का खिलौना नहीं हो सकती’

जम्मू-कश्मीर में प्रेस और कम्यूनिकेशन के दूसरे माध्यमों पर पाबंदी के खिलाफ कश्मीर टाइम्स की कार्यकारी संपादक अनुराधा भसीन ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. लेकिन प्रेस काउंसिल ने इसमें हस्तक्षेप याचिका दायर करते हुए कहा था कि इस केस की सुनवाई एक तरफ स्वतंत्र और निष्पक्ष रिपोर्टिंग के पत्रकारों के अधिकारों की मांग और दूसरी ओर एकता और अखंडता के राष्ट्रीय हितों के संदर्भ में होनी चाहिए. लेकिन प्रेस काउंसिल की इस याचिका पर इसमें शामिल प्रेस एसोसिएशन के दो सदस्यों जयशंकर गुप्त और महासचिव सीके नायक ने आश्चर्य जताया है और कहा है इतने गंभीर मामले में कोई कदम उठाने से पहले काउंसिल को विश्वास में नहीं लिया गया. प्रेस एसोसिएशन के अध्यक्ष और महासचिव प्रेस काउंसिल के सदस्य होते हैं.

गुप्त और नायक के बयान में कहा गया है कि 22 अगस्त को पूरे दिन काउंसिल की मीटिंग चली थी और उस दौरान इस याचिका का कोई जिक्र नहीं हुआ था. जयशंकर गुप्त ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा

प्रेस काउंसिल का यह फैसला पूरी तरह मनमाना है. कोई एक व्यक्ति प्रेस काउंसिल नहीं है. यह एक संस्थान है और यह सरकार के हाथ का खिलौना नहीं हो सकता.
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प्रेस काउंसिल के सदस्यों ने कहा,हमसे सलाह-मशविरा नहीं किया गया

जबकि नायक ने कहा कि दिल्ली के सदस्य प्रेस काउंसिल की याचिका के खिलाफ हैं. वह इस फैसले में अध्यक्ष के साथ नहीं हैं.दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज और प्रेस काउंसिल के अध्यक्ष सी के प्रसाद ने कहा कि संगठन ने जम्मू-कश्मीर से संबंधित याचिका में हस्तक्षेप इसलिए किया कि इस पर देश में पत्रकारिता के हितों की रक्षा की जिम्मेदारी है. कहा जा रहा है कि इसे लेकर सदस्यों से सलाह-मशविरा नहीं किया गया. लेकिन हमारा आवेदन 15 दिन पहले दाखिल कर दिया गया था. चूंकि मामला सुप्रीम कोर्ट में कुछ दिन बाद ही आना था इसलिए हमने वक्त रहते आवेदन दाखिल किया था.

जब उनसे पूछा गया कि आपने सदस्यों को इसकी जानकारी क्यों नहीं दी तो उन्होंने कहा कि अध्यक्ष के पास यह अधिकार होता है तो वह बेहद जरूरी मामलों में खुद पहल करे. जरूरी नहीं है कि हर बार काउंसिल की बैठक बुलाई जाए. याचिका में देशहित का हवाला देने के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा कि हर कोई अपना मतलब निकालने के लिए स्वतंत्र है. मुझे इस बारे में कुछ नहीं कहना.

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