कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने नोबेल पुरस्कार विजेता अभिजीत बनर्जी के साथ COVID-19 से जुड़ी आर्थिक समस्या और उसके समाधान को लेकर बातचीत की है.
कोरोना संकट की वजह से पैदा हुई स्थिति को लेकर राहुल गांधी ने कहा, ''बहुत से व्यवसाय इस झटके की वजह से दिवालिया हो सकते हैं. इसलिए इन व्यवसायों को होने वाले आर्थिक नुकसान और लोगों की नौकरी बनाए रखने की क्षमता के बीच सीधा संबंध है.''
इस पर अभिजीत बनर्जी ने कहा, ‘’यही कारण है कि हम में से बहुत से लोग कहते रहे हैं कि हमें प्रोत्साहन पैकेज की जरूरत है. अमेरिका, जापान, यूरोप यही कर रहे हैं. हमने बड़े प्रोत्साहन पैकेज पर फैसला नहीं लिया है. हम अब भी जीडीपी के 1 फीसदी पर हैं. अमेरिका 10 फीसदी तक चला गया है. हमें MSME सेक्टर पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है.’’
उन्होंने कहा, '' ऋण भुगतान पर रोक लगाकर बुद्धिमानी का काम किया गया है. इससे ज्यादा किया जा सकता था. इस तिमाही के लिए ऋण भुगतान रद्द किया जा सकता था और सरकार उसका भुगतान करती. MSME पर ध्यान केंद्रित करना सही प्रणाली है. यह मांग को पुनर्जीवित करने का मसला है. ’’
बनर्जी ने कहा, ‘’हर किसी को पैसा दिया जाए, ताकि वो सामान खरीद सकें, तो MSME इनका उत्पादन करेगा. लोग खरीद नहीं रहे हैं. अगर उनके पास पैसा है या सरकार उन्हें पैसे देने का वादा करती है, तो जरूरी नहीं कि अभी पैसा दिया जाए. रेड जोन में सरकार कह सकती है कि लॉकडाउन खत्म होने पर लोगों के खाते में 10000 रुपये होंगे और वो इसे खर्च कर सकते हैं. अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए खर्च बढ़ाना आसान तरीका है क्योंकि जब MSME को पैसा मिलता है, वे इसे खर्च करते हैं और फिर इसकी सामान्य केन्जियन चेन रिएक्शन होती है.’’
इसके बाद राहुल गांधी ने पूछा, ''तो हम NYAY जैसी योजना या सबसे गरीब लोगों को डायरेक्ट कैश ट्रांसफर के बारे में बात कर रहे हैं?''
बनर्जी ने इसके जवाब में कहा, ''मैं इसे व्यापक स्तर पर देखूंगा क्योंकि मुझे लगता है कि चिह्नित करना बेहद महंगा पड़ सकता है. इस संकट के समय में सरकार उनको चिह्नित करने की कोशिश करेगी, जो 6 हफ्ते तक अपनी दुकान बंद रखने के बाद गरीब हो गए हैं. मुझे नहीं पता वे इसे कैसे समझेंगे. निचले तबके की 60 फीसदी आबादी को पैसा देने में कोई बुराई नहीं है. शायद उनमें से कुछ को इसकी जरूरत नहीं होगी, लेकिन वे इसे खर्च करेंगे. अगर वे खर्च करते हैं तो इसका अच्छा असर होगा.''
बातचीत के दौरान राहुल ने कहा, ''हमारे यहां अन्न आपूर्ति का मुद्दा थोड़ा अलग है. बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं, जिनके पास राशन कार्ड नहीं हैं. एक तर्क है कि गोदाम में जो अनाज है, उसे वितरित किया जाए, क्योंकि नई फसल के आते ही भंडारण बढ़ जाएगा, इसलिए उस पर तुरंत कदम उठाएं.''
इस पर बनर्जी ने कहा, ''रघुराम राजन और अमर्त्य सेन के साथ हमने जरूरतमंदों के लिए अस्थाई राशन कार्ड का विचार रखा था. वास्तव में बाकी राशन कार्ड को रोककर, अस्थाई राशन कार्ड शुरू किए जाएं. जिसे जरूरत हो, उसे दिया जाए.''
इसके अलावा उन्होंने कहा, ''मुझे लगता है कि हमारे पास पर्याप्त स्टॉक है. मुझे लगता है कि हम थोड़े समय तक इसे चला सकते हैं. इस बार रबी की फसल अच्छी रही है, इसलिए हमारे पास कई टन गेहूं और चावल होंगे. इसलिए कम से कम लोगों को ये तो दिए ही जा सकते हैं. मुझे नहीं पता कि हमारे पास पर्याप्त दाल है या नहीं, लेकिन शायद सरकार ने दाल का वादा किया था. इसलिए उम्मीद है कि हमारे पास पर्याप्त दाल और खाद्य तेल आदि हैं. लेकिन हां, हमें निश्चित रूप से सभी को अस्थाई राशन कार्ड देना चाहिए.''
बता दें कि राहुल ने पिछले दिनों भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गर्वनर रघुराम राजन के साथ भी इसी तरह से बातचीत की थी. उस बातचीत के दौरान राजन ने कोरोना वायरस का संक्रमण फैलने से रोकने के लिए लागू लॉकडाउन को सावधानीपूर्वक खत्म करने की पैरवी करते हुए कहा था कि गरीबों की मदद के लिए सीधे उनके खाते में पैसे भेजे जाएं और इस पर करीब 65 हजार करोड़ रुपये खर्च होंगे.
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