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राजस्थान: राज्यपाल विधानसभा सत्र बुलाने को राजी, लेकिन शर्तें लागू

राजस्थान विधानसभा सत्र को लेकर राज्यपाल ने जारी किए जरूरी निर्देश

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राजस्थान में आखिरकार गहलोत सरकार जो चाहती थी वो अब हो रहा है. राज्यपाल कलराज मिश्र ने सरकार को विधानसभा सत्र बुलाने का आदेश दे दिया है. जिसके बाद अब अशोक गहलोत सरकार अगले कुछ दिनों में कभी भी सत्र बुला सकते हैं. ये विधानसभा सत्र कोई आम सत्र की तरह नहीं है, क्योंकि भले ही सीएम गहलोत ने इस सत्र को बुलाए जाने के पीछे फ्लोर टेस्ट का जिक्र नहीं किया हो, लेकिन कहीं न कहीं ये कुछ महीनों की मोहलत पाने को लेकर चल रही कोशिश थी, जो अब पूरी होती दिख रही है. हालांकि राज्यपाल की तरफ से इस सत्र को लेकर कुछ निर्देश भी दिए गए हैं.

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देना होगा 21 दिन का नोटिस

राजभवन की तरफ से जारी बयान के मुताबिक इस विधानसभा सत्र के लिए तय नियम के हिसाब से 21 दिन का नोटिस दिया जाना चाहिए. सरकार की तरफ से दी गई दलीलों पर राज्यपाल ने कहा कि अगर कुछ भी ज्यादा जरूरी है तो उसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर भी किया जा सकता है. इसके अलावा गहलोत सरकार को दूसरा निर्देश फ्लोर टेस्ट को लेकर भी दिया गया है. जिसमें कहा गया है,

“अगर किसी भी स्थिति में विश्वास मत हासिल करने की विधानसभा सत्र में कार्यवाही की जाती है, तो ऐसी परिस्थितियों में जबकि माननीय अध्यक्ष महोदय द्वारा खुद सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है. विश्वास मत प्राप्त करने की संपूर्ण प्रक्रिया संसदीय कार्य विभाग के प्रमुख सचिव की उपस्थिति में की जाए और संपूर्ण कार्यवाही की वीडियो रिकॉर्डिंग करवाई जाए. साथ ही ऐसा विश्वास मत सिर्फ हां या ना के बटन से ही किया जाए.”

वहीं तीसरे निर्देश में राज्यपाल ने इस सत्र के बुलाए जाने पर ही सवाल खड़े किए हैं. उन्होंने कहा है कि अगर इस दौरान कोई विधायक या अधिकारी संक्रमित हुआ तो उसे दूसरों में फैलने से कैसे रोका जाएगा. निर्देश में कहा गया है कि, अगर विधानसभा सत्र बुलाया जाता है तो इसके दौरान सोशल डिस्टेंसिंग का सख्ती से पालन कैसे किया जाएगा? क्या कोई ऐसी व्यवस्था है, जिसमें 200 विधायक और 1000 से ज्यादा कर्मचारियों के एक जगह इकट्ठा होने पर उन्हें संक्रमण का कोई खतरा न हो. अगर उनमें से किसी भी शख्स में संक्रमण हुआ तो उसे दूसरों में फैलने से कैसे रोका जाएगा?

राज्यपाल कलराज मिश्र ने कहा है कि राजस्थान विधानसभा में इतनी जगह नहीं है कि 200 विधायक और 1 हजार से ज्यादा कर्मचारी सोशल डिस्टेंसिंग के साथ आराम से बैठ पाएं. उन्होंने कहा कि विधानसभा सत्र बुलाने का मतलब है कि हम 1200 लोगों की जिंदगी खतरे में डाल रहे हैं. राज्यपाल की तरफ से कहा गया,

“संक्रमण रोकने के लिए आपदा प्रबंधन अधिनियम और भारत सरकार की गाइडलाइंस का पालन किया जाना जरूरी है. संविधान के अनुच्छेद 174 का निरपेक्ष अर्थ मंत्रिमंडल की आज्ञा में बताया गया है. ये राज्यपाल का संवैधानिक दायित्व है कि ऐसी विपरीत परिस्थिति में बिना किसी विशेष आकस्मिकता के विधानसभा का सत्र बुलाकर 1200 से ज्यादा लोगों की जिंदगी को खतरे में न डाला जाए.”

विधानसभा सत्र को लेकर राज्यपाल पर भी गहलोत सरकार ने सवाल खड़े किए थे और दबाव में काम करने का आरोप लगाया था. इसे लेकर भी राजभवन की तरफ से सफाई दी गई है. जिसमें कहा गया है कि राज्यपाल ने संविधान के अनुच्छेद 174 के अंतर्गत परामर्श देते हुए विधानसभा का सत्र बुलाए जाने को लेकर राज्य सरकार को निर्देश दे दिए हैं. राज्यपाल ने कहा कि विधानसभा सत्र न बुलाने की उनकी कोई भी मंशा नहीं है.

आखिर क्या सोच रहे हैं गहलोत?

अब इस विधानसभा सत्र को लेकर पिछले कुछ दिनों से जमकर बवाल हुआ. यहां तक कि पहली बार लोगों ने राजभवन के अंदर विधायकों का ऐसा कोई धरना और नारेबाजी देखी. वहीं अशोक गहलोत ने खुलेआम कहा था कि अगर राज्यपाल उचित आदेश जारी नहीं करते हैं तो जनता राजभवन को घेर सकती है और इसके बाद उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं होगी.

दरअसल विधानसभा सत्र बुलाए जाने के पीछे गहलोत की लंबी सोच है. गहलोत सरकार फिलहाल खतरे में है. वहीं मामला भी अभी लगातार लंबा खिंचता रहा है. इसीलिए अब सरकार को कुछ वक्त की जरूरत है. जो उन्हें तभी मिल सकता है जब वो सदन में अपना बहुमत साबित कर दें. इसीलिए भले ही फ्लोर टेस्ट का अभी जिक्र नहीं हो रहा है, लेकिन सत्र बुलाए जाने के बाद गहलोत बचे हुए विधायकों के समर्थन से अपना बहुमत साबित कर सकते हैं, जिससे उन्हें कम से कम 6 महीने की तो राहत मिल जाएगी. वहीं बीएसपी के 6 विधायकों के कांग्रेस में शामिल होने का मामला भी फिलहाल शांत हो चुका है. बीजेपी विधायक मदन दिलावर ने बीएसपी के सभी 6 विधायकों के कांग्रेस में विलय करने के खिलाफ याचिका दाखिल की थी. जिसे हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया है. ये गहलोत सरकार के लिए एक बड़ी राहत की खबर है.

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