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गहलोत को फौरी राहत,HC ने सिंगल बेंच पर छोड़ा BSP विधायकों का फैसला

कांग्रेस में शामिल हुए 6 बीएसपी विधायकों पर 11 अगस्त को आएगा फैसला

Published
भारत
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राजस्थान की राजनीति कुछ ऐसे अधर में अटकी हुई है कि कभी भी कुछ भी हो सकता है. इसी बीच गहलोत सरकार को राजस्थान हाईकोर्ट से फौरी राहत मिली है. बीएसपी विधायकों के कांग्रेस में विलय के मामले को हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने वापस सिंगल बेंच को भेज दिया है. इस मामले पर फैसले के लिए इसे डिवीजन बेंच के पास भेजा गया था, लेकिन बेंच ने सुनवाई से इनकार करते हुए फैसला सिंगल बेंच पर छोड़ दिया है. हाईकोर्ट की सिंगल बेंच 11 अगस्त को इस मामले पर अपना फैसला सुनाएगी.

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बता दें कि इससे पहले बीजेपी विधायक मदन दिलावर की तरफ से हाईकोर्ट में दी गई याचिका को सिंगल बेंच ने खारिज कर दिया था. लेकिन याचिका खारिज होने के बाद दोबारा याचिका दाखिल की गई. जिसे लेकर अब 11 अगस्त को हाईकोर्ट की सिंगल बेंच अपना फैसला देगी. इस याचिका में मांग की गई है कि कांग्रेस में शामिल हुए 6 बीएसपी विधायकों को अयोग्य घोषित किया जाए.

हाईकोर्ट का फैसला बदल सकता है समीकरण

अब 11 अगस्त को हाईकोर्ट के फैसले पर गहलोत सरकार की किस्मत टिकी हुई है. अगर हाईकोर्ट का फैसला बीएसपी विधायकों के खिलाफ आता है तो ऐसे में गहलोत सरकार के गिरने की संभावना काफी ज्यादा बढ़ जाएगी. क्योंकि विधानसभा सदस्यों की संख्या 200 से घटकर तब 194 रह जाएगी. वहीं बहुमत का आंकड़ा तब 101 से घटकर 98 रह जाएगा.

कांग्रेस के पास अभी तक अपने खुद के, अन्य दलों और निर्दलीय विधायकों को मिलाकर कुल 103 विधायक हैं. ऐसे में 6 बीएसपी विधायकों के कम होने पर गहलोत सरकार का आंकड़ा 97 तक पहुंच जाएगा. जो बहुमत से एक संख्या कम है.

वहीं अगर बीजेपी की बात करें तो उसके पास 72 अपने और राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के तीन विधायक हैं. यानी आंकड़ा 75 तक पहुंचता है. लेकिन अगर उस सूरत में देखा जाए, जब कांग्रेस के 19 बागी विधायक और तीन निर्दलीय बीजेपी की तरफ आते हैं तो आंकड़ा 97 तक पहुंच जाएगा. जिसके बाद बीजेपी को सिर्फ 1 विधायक की जरूरत होगी.

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क्या कहता है कानून?

हालांकि बीएसपी विधायकों के खिलाफ फैसला आने की उम्मीद कम ही है. क्योंकि यहां पर सभी विधायक एक साथ कांग्रेस में शामिल हुए हैं. दल बदल कानून की दसवीं अनुसूची के पैरा 4 (2) के मुताबिक ‘’सदन के किसी सदस्य के मूल राजनीतिक दल का विलय हुआ तभी समझा जाएगा, जब संबंधित विधान दल के कम से कम दो तिहाई सदस्य ऐसे विलय के लिए सहमत हो गए हों."

वहीं दसवीं अनुसूची के पैरा 4 में कहा गया है कि दलबदल के लिए अयोग्यता राजनीतिक दलों के ‘विलय’ के मामले में लागू नहीं होगी. अब राजस्थान में दो तिहाई नहीं बल्कि पूरे सदस्यों का विलय हुआ है. ऐसे में उन पर कार्रवाई मुमकिन नहीं दिख रही है. वहीं हाईकोर्ट ने पहले भी इस याचिका को खारिज कर दिया था.

बता दें कि राजस्थान में 14 अगस्त को विधानसभा सत्र बुलाया गया है. जिसमें फ्लोर टेस्ट होने की पूरी संभावना है. अशोक गहलोत चाहेंगे कि वो एक बार फ्लोर पर अपना बहुमत साबित कर दें, जिससे उन्हें अगले 6 महीने की राहत मिल जाए. वहीं बीजेपी को सिर्फ एक मौके की तलाश है. आशंका जताई जा रही है कि 14 अगस्त तक गहलोत के कुनबे में सेंध लगाने की कोशिश हो सकती है.

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