राम जेठमलानी बीजेपी के संस्थापक सदस्य थे. इमरजेंसी के घोर आलोचक जेठमलानी 1977 में बनी जनता पार्टी की सरकार में भी थे. बाद की वाजपेयी सरकारों में वो कानून और शहरी विकास मंत्री रहे लेकिन वाजपेयी सरकार में ही कुछ ऐसा हुआ कि बीजेपी और जेठमलानी की दूरियां बढ़ने लगी. ये तल्खियां 1 दशक से ज्यादा तक रही लेकिन अमित शाह के अध्यक्ष बनने के बाद जेठमलानी और बीजेपी की जंग रुकी और इसका श्रेय जाता है पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली को.
दशकों की दोस्ती जो दुश्मनी में बदल गई
बात 2014 की है, देश में मोदी लहर की बात चल रही थी. पूरे देश में हर क्षेत्र में दो धाराएं थी एक जो मोदी के पक्ष में थी दूसरी मोदी के विरोध में. बीजेपी के साथ जारी तकरार के बीच जेठमलानी ने मोदी के प्रधानमंत्री पद के लिए दावेदारी का समर्थन किया था. हालांकि, मोदी के सरकार में आने के बाद जेठमलानी, मोदी के कटु आलोचक भी हो गए और ये तक कह दिया कि वो ‘धोखे का शिकार’ हो गए थे. अब सीधा साल 2018 में चलते हैं, जेठमलानी को बीजेपी से निकाले 5 साल बीत चुके हैं. बीजेपी के तत्कालीन अध्यक्ष अमित शाह और बीजेपी के बड़े नेता भूपेंद्र यादव, राम जेठमलानी को मनाने के लिए पहुंचते हैं. बात बन जाती है.
राम जेठमलानी को बीजेपी ने ‘अनुशासन तोड़ने’ के लिए पहले पार्टी से सस्पेंड किया फिर पार्टी से निकाल दिया. ऐसे में जेठमलानी ने खुद के पार्टी से निकाले जाने के लिए बीजेपी की संसदीय बोर्ड पर ही 50 लाख का मुकदमा ठोक दिया.
अमित शाह और भूपेंद्र यादव का जेठमलानी के पास जाना और मनाना काम कर गया. दिसंबर 2018 में राम जेठमलानी ने बीजेपी के साथ मिलकर कोर्ट में जॉइंट एप्लिकेशन डाला और केस खत्म कर दिया.
पहले अरुण जेटली vs जेठमलानी, फिर जेटली ने ही कराई BJP से सुलह
साल 2018 में जब अमित शाह और भूपेंद्र यादव, जेठमलानी से मिलने जाते हैं तो पार्टी के लिए उनके योगदानों को देखते हुए खेद जताते हैं कि बीजेपी निष्कासित करने का फैसला लेना पड़ा था. बाद में केस सेटल किया गया और बीजेपी और जेठमलानी ने मिलकर जॉइंट स्टेटमेंट जारी कर मामले को खत्म किया.
अब तक किसी को नहीं पता था कि इसके पीछे बीजेपी के कद्दावर नेता और पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली थे. अरुण जेटली ने जेठमलानी कि ओर से पूर्व में कहे ‘अपशब्दों’ को भुलाकर ऐसा किया था.
द क्विंट से बात करते हुए सीनियर एडवोकेट और पूर्व अटॉर्नी जनरल ने मुकुल रोहतगी ने बताया,
‘‘मामला अच्छी भावनाओं के साथ खत्म हुआ. मुझे केस के बारे में पता है और ये भी पता है कि श्री अरुण जेटली ने इस केस को खत्म करवाने में अहम भूमिका निभाई थी. क्योंकि जेठमलानी अपनी जिंदगी के आखिरी पड़ाव में थे और जो भी था वो 1977 की जनता सरकार में थे. तो जेटली जी ने बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व से कहा कि उनकी जिंदगी के आखिरी पलों में सबकुछ मैत्रीपूर्ण तरीकों से खत्म करते हैं.’’मुकुल रोहतगी
मुकुल रोहतगी ने इस बात पर जोर दिया कि जेटली ने अपनी निजी दूरियों को दरकिनार कर ये फैसला लिया था.
अरुण जेटली ने जब दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल पर मानहानि का केस किया था तब केजरीवाल का केस जेठमलानी लड़ रहे थे. कोर्ट में जिरह के दौरान जेठमलानी ने जेटली को 'धूर्त' तक कह दिया था. सवाल-जवाब में भी काफी तल्ख बहस हुई थी. मुकुल रोहतगी बताते हैं कि इन सबके बावजूद जब जेठमलानी ने जेटली से कहा कि वो बीजेपी के खिलाफ किए केस के खत्म करना चाहते हैं तो जेटली ने पूर्व में किए अपमानों को दरकिनार कर मामले को सुलझाने में मदद की थी.
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