65 साल के महंत भानु दास अयोध्या में पंच कोसी परिक्रमा मार्ग पर अपने आश्रम में एक छोटे से कमरे के अंदर बैठे हुए हैं. उनकी नजर आश्रम के दरवाजे पर टिकी हुई है. जैसे ही दो स्थानीय लोग दरवाजे से अंदर दाखिल हुए, उन्होंने सवाल किया- "क्या आप ट्रस्ट से हैं? क्या आप मेरे लिए न्योता लाए हैं?"
आगे से ना में जवाब सुनने के बाद महंत भानु दास के आंखों ने निराशा साफ देखी जा सकती थी.
भानु दास 22 जनवरी को होने वाले राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा (Ram Temple pran pratishtha) के न्योते का जिक्र कर रहे थे. यह समारोह वाराणसी के पुजारी पंडित लक्ष्मी कांत दीक्षित के मार्गदर्शन में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किया जाएगा.
"राम लला का मंदिर बन रहा है...हमें बहुत खुशी है. लेकिन साधु संतों का ध्यान भी रखना चाहिए था", यह कहते हुए वे चुप हो गए और सीधे अपने प्रार्थना कक्ष में चला गए और 15 मिनट बाद बाहर आए.
उन्होंने कुछ देर रुकने के बाद उन्होंने कहा, "मैं इस बात से इनकार नहीं कर रहा हूं कि (नरेंद्र) मोदी और योगी (आदित्यनाथ) ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मंदिर का निर्माण किया है... लेकिन यह एक ऐसा दिन है जिसका हमने जीवन भर इंतजार किया है. उन्होंने मुझे दिवाली उत्सव में आमंत्रित किया था. ऐसा वो इसबार क्यों नहीं कर सकते?”
धर्म, आस्था और राजनीति
भानु दास की चिंताएं शंकराचार्यों या चार मठों के मठाधीशों सहित अन्य साधु-संतों द्वारा उठाई गई चिंताओं जैसी ही हैं. शंकराचार्य और मठ आठवीं शताब्दी के हिंदू संत, आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित हिंदू धर्म की अद्वैत वेदांत परंपरा का हिस्सा हैं.
4 जनवरी को, पुरी के गोवर्धन मठ के प्रमुख निश्चलानंद सरस्वती का एक वीडियो सामने आया. उन्हें पुरी के शंकराचार्य के नाम से भी जाना जाता है. वीडियो में उन्होंने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी पर "धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप" करने का आरोप लगाया और घोषणा की कि वह प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल नहीं होंगे.
वीडियो में गोवर्धन मठ प्रमुख को यह कहते हुए सुना गया, “मैं वहां क्या करूंगा? जब मोदी जी मूर्ति का उद्घाटन और स्पर्श करेंगे तो क्या मैं वहां खड़ा होकर ताली बजाऊंगा? मुझे कोई पद नहीं चाहिए. मेरे पास पहले से ही सबसे बड़ा पद है. मुझे श्रेय की जरूरत नहीं है. लेकिन शंकराचार्य वहां (प्राण प्रतिष्ठा में) क्या करेंगे?”
जल्द ही, अन्य तीन अन्य शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती के साथ शामिल हो गए और एक बयान जारी कर कहा कि वे सभी समारोह में शामिल नहीं होंगे.
9 जनवरी को, उत्तराखंड के ज्योतिष मठ के प्रमुख अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने घोषणा की कि चार धार्मिक प्रमुखों में से कोई भी समारोह में शामिल नहीं होगा क्योंकि यह "शास्त्रों" के खिलाफ आयोजित किया जा रहा है - खासकर इसलिए कि मंदिर का निर्माण अधूरा है.
उन्होंने कहा, "शास्त्रों के अनुष्ठानों का पालन करना और यह सुनिश्चित करना शंकराचार्य का कर्तव्य है कि उनका पालन किया जाए. और यहां, शास्त्रों की अनदेखी की जा रही है. सबसे बड़ी समस्या यह है कि प्राण प्रतिष्ठा तब किया जा रहा है जब मंदिर अभी भी अधूरा है."
अयोध्या में, रेखाएं धुंधली हैं
45 वर्षीय रामानंद प्रसाद 10 जनवरी की सुबह अयोध्या के प्रसिद्ध हनुमान गढ़ी मंदिर के बाहर खड़े थे.
उनके माथे पर 'जय श्री राम' लिखा हुआ था और हाथों में बीजेपी का झंडा था. वह लंबी कतार में लगकर मंदिर में प्रवेश करने का इंतजार कर रहे थे. उन्होंने कहा, "बहुत शानदार मंदिर बनवाया है मोदी और योगी ने."
रामानंद प्रसाद ने एक दर्जन अन्य लोगों के साथ, मध्य प्रदेश के पन्ना जिले के सिथौली गांव से अयोध्या तक की 400 किमी की यात्रा की है. यह यात्रा उन्होंने पैदल तय की है.
आगे उन्होंने शोक व्यक्त किया, "हम यहां राम लला और मोदी दोनों के दर्शन करने आये हैं. लेकिन अभी लग रहा है वापस लौटना पड़ेगा. बहुत सिक्योरिटी होगी उस दिन."
पूरे अयोध्या में, रामानंद प्रसाद जैसे कई लोगों के लिए, धार्मिक समूहों और बीजेपी के बीच कोई अंतर नहीं है. पीएम मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए भी 'संत', 'साधु' और 'महात्मा' जैसे शब्दों का उपयोग किया जाता है.
अब उदाहरण के लिए इसे देखिए. 10 जनवरी की सुबह, हनुमान गढ़ी मंदिर से बमुश्किल 2 किमी दूर, प्रसिद्ध राम की पैड़ी पर भजन गायिका और हिंदू धार्मिक उपदेशक अंजलि द्विवेदी का कार्यक्रम चल रहा है.
एक प्रमुख अंग्रेजी न्यूज चैनल के लिए परफॉर्म कर रहीं अंजलि द्विवेदी ने सबसे पहले "श्री राम की अयोध्या वापसी" पर अपना प्रमुख गीत गाया. उन्होंने अपने गाने को यह कहते हुए समाप्त किया कि आधुनिक भारत में केवल दो संत हैं - "मोदी जी और योगी जी."
वहां मौजूद लगभग 50 लोगों की भीड़ ने इसपर जोरदार ताली बजाई.
'यह मुद्दा हमेशा राजनीतिक रहा है': वीएचपी
कारसेवकपुरम में मौजूद विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) कार्यालय में, शरद शर्मा बहुत व्यस्त हैं. 1980 के दशक के मध्य में जब मंदिर आंदोलन जोर पकड़ रहा था तब वीएचपी में शामिल हुए शरद शर्मा ने कहा, ''प्राचीन काल से ही अयोध्या राजनीति का केंद्र रही है.''
उन्होंने कहा, "केवल राजनीतिक कारणों से ही भगवान राम को वनवास दिया गया था. राम मंदिर के लिए आंदोलन साधु-संतों के साथ-साथ संघ परिवार द्वारा संचालित था, जिसमें बीजेपी भी शामिल है. एक राजनीतिक दल होने के नाते बीजेपी की अपनी सीमाएं हैं और फिर भी अगर आप इसके बारे में सोचते हैं, तो बीजेपी के प्रयासों के कारण ही आज अयोध्या में मंदिर बन रहा है."
शरद शर्मा ने दावा किया कि भले ही मंदिर के लिए संघर्ष धार्मिक और राजनीतिक दोनों तरह का था, लेकिन प्राण प्रतिष्ठा के पीछे कोई राजनीतिक मकसद नहीं है जैसा कि शंकराचार्य और अन्य राजनीतिक दल दावा कर रहे हैं.
उन्होंने पूछा, "हम शंकराचार्यों का बहुत सम्मान करते हैं. लेकिन क्या कोई मुझे बता सकता है कि अगर इसका कोई धार्मिक अर्थ नहीं है तो प्राण प्रतिष्ठा के लिए देश भर से 4,000 संत अयोध्या क्यों आ रहे हैं?"
'क्या नई अयोध्या राम के सबसे बड़े भक्तों के लिए नहीं है?'
हालांकि, झुनकी घाट के पास एक मंदिर में रहने वाले 60 वर्षीय संत महंत चंद्रभान दास के लिए शरद शर्मा का यह स्पष्टीकरण पूरी तरह से गलत है.
"राम लला हमेंशा अयोध्या में ही थे, बस अभी उन्हें एक घर मिल रहा है. इन्हें याद रखना चाहिए कि इसमें हम साधु संतों का भी योगदान है."महंत चंद्रभान दास
महंत ने आगे सवाल किया, "कई महत्वपूर्ण धार्मिक नेताओं ने समारोह में शामिल न होने का फैसला किया है. उनकी बात में दम है. हम इस बात से इनकार नहीं कर रहे हैं कि प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री ने मंदिर के लिए काम किया है, लेकिन हमने भी किया है. इसके अलावा, प्राण प्रतिष्ठा समारोह आयोजित करने की इतनी जल्दी क्यों है जब काम पूरा नहीं हुआ है?”
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