उत्तर प्रदेश के अयोध्या से लगभग 25 किमी दूर, धन्नीपुर गांव में पांच एकड़ जमीन पर एक अजीब सा सन्नाटा छाया हुआ है.
यह वही भूमि है, जिसे राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद (Babri Mosque) पर अपना फैसला सुनाने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने धवस्त बाबरी मस्जिद के स्थान पर मस्जिद बनाने के लिए यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को आवंटित की थी.
पांच साल बाद, जनवरी 2024 में, 22 जनवरी को होने वाले राम मंदिर के अभिषेक से पहले लाखों श्रद्धालु अयोध्या में एकत्रित हो गए हैं. वहीं, प्रस्तावित मस्जिद का निर्माण अभी तक शुरू नहीं हुआ है, अब तक केवल नींव रखी गई है.
पूरा मामला क्या?
सोलहवीं शताब्दी में मुगल जनरल मीर बाकी द्वारा सम्राट बाबर के सम्मान में निर्मित, अयोध्या की बाबरी मस्जिद दशकों तक हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच विवाद का केंद्र रही.
हिंदुओं के अनुसार, मस्जिद का निर्माण मंदिर के खंडहरों पर किया गया था, जो हिंदू देवता भगवान राम के जन्मस्थान था.
मस्जिद को 6 दिसंबर 1992 को एक राजनीतिक रैली के दौरान ध्वस्त कर दिया गया. विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) के नेतृत्व में लाखों कारसेवक हिंसक हो गए और उन्होंने मस्जिद तोड़ गिराया.
लंबी कानूनी और राजनीतिक लड़ाई के बाद, 2019 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने विवादित स्थल पर राम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर दिया.
अपने फैसले में कोर्ट ने कहा कि 2.7 एकड़ विवादित जमीन एक ट्रस्ट को सौंप दी जाए, जिसपर राम मंदिर का निर्माण कराया जाएगा.
कोर्ट ने इसके बदले सरकार को उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को अयोध्या में एक अन्य "प्रमुख" स्थान पर पांच एकड़ जमीन देने का भी आदेश दिया, जो विवादित स्थल से बहुत दूर नहीं हो, जिससे धवस्त बाबरी मस्जिद के बदले एक मस्जिद का निर्माण किया जा सके.
प्रशासनिक बाधाएं
प्रस्तावित मस्जिद की आधारशिला 26 जनवरी 2021 को रखी गई थी. तब से, मस्जिद के निर्माण का काम संभाल रहे इंडो-इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन (IICF) को कई प्रशासनिक बाधाओं का सामना करना पड़ा.
अयोध्या में यूपी सुन्नी सेंट्रल बोर्ड वक्फ उप-समिति के अध्यक्ष आजम कादरी ने द क्विंट को बताया, "मस्जिद के निर्माण में देरी के पीछे दो मुख्य कारण हैं."
उन्होंने आगे बताया...
"पहले, अयोध्या विकास प्राधिकरण मैप को मंजूरी नहीं दे रहा था. फिर, बोर्ड उस भूमि पर एक संग्रहालय या लाइब्रेरी बनाने पर विचार कर रहा था लेकिन हाल ही में हमने बॉम्बे (मुंबई) में सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की एक बैठक की. वहां हमने "हमने तय किया कि हम मस्जिद के बगल में एक कैंसर अस्पताल बनाएंगे. हालांकि, हमें इसके लिए और जमीन की जरूरत है. अगर हमें मस्जिद ही बनानी होती, तो अब तक यह बन चुकी होती."
मस्जिद में एक इंडो-इस्लामिक रिसर्च सेंटर, एक सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, एक लाइब्रेरी, एक संग्रहालय, एक सामुदायिक रसोई और एक सांस्कृतिक केंद्र बनाने की उम्मीद है.
यह भी दावा किया गया कि अस्पताल की क्षमता 100 बिस्तरों की होगी, जिसे आगे बढ़ाकर 200 किया जाएगा. इसी तरह, सामुदायिक रसोई में प्रतिदिन 1,000 गरीब लोगों के लिए खाना पकाया जाएगा, जिसे बाद में बढ़ाकर 2,000 लोगों को खिलाने में सक्षम बनाया जाएगा.
हालांकि, 17 जनवरी की हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट में दावा किया गया कि मस्जिद के निर्माण में और देरी हो सकती है.
आईआईसीएफ (IICF) के एक अधिकारी के हवाले से रिपोर्ट में कहा गया है कि "मस्जिद का काम मई 2024 में शुरू होना था, लेकिन अब इसमें देरी होगी क्योंकि प्लानिंग अभी भी चल रही है."
वक्फ बोर्ड की भूमिका
स्वामित्व विवाद में अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष को जो पांच एकड़ वैकल्पिक भूमि आवंटित की थी, उसे शुरू में मुस्लिम पक्ष ने स्वीकार नहीं किया था.
अयोध्या के एक पैरालीगल खलीक अहमद खान, जिन्होंने दो दशकों से अधिक समय तक इस केस का दस्तावेजीकरण किया था, उन्होंने समझाया...
"अगर हम इस फैसले को स्वीकार करते हैं कि यह जमीन हमें बाबरी मस्जिद के विकल्प के रूप में दी गई थी, तो हमें भविष्य में 3000 मस्जिदों को छोड़ना होगा. अगर हम इसे स्वीकार करते हैं, तो कल वे किसी भी मस्जिद को ध्वस्त कर देंगे और इस फैसले का उदाहरण दे देंगे"
खान ने यह भी कहा कि वक्फ अधिनियम और शरिया कानून के अनुसार किसी मस्जिद को न तो बेचा जा सकता है, न ही किसी अन्य उपयोग में लाया जा सकता है, या जमीन के किसी अन्य टुकड़े के बदले में नहीं दिया जा सकता है.
वहीं, यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया और जमीन स्वीकार कर ली.
खान ने सवाल किया...
"जब ट्रस्ट सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के अधीन है, जो यूपी सरकार के अधीन है, तो क्या यह राज्य सरकार की जिम्मेदारी नहीं है कि वह ट्रस्ट को फंड दे या फंडिंग सुनिश्चित करे? उन्हें मस्जिद के लिए फंड देने की जरूरत नहीं थी. उन्हें फंड देना था सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड, जिसके माध्यम से वे लाखों-करोड़ों का राजस्व भी कमा रहे हैं. राज्य सरकार बोर्ड पर अपने पैसे का उपयोग करने के लिए दबाव क्यों नहीं डाल रही है?"
स्थानीय मुसलमानों की 'उदासीनता'
जब बाबरी मस्जिद ढहाई गई तब 52 साल के मोहम्मद शाहिद की उम्र तीस के आसपास थी. शाहिद ने याद करते हुए दावा किया कि वह और उनका परिवार मस्जिद के निर्माण के प्रति "उदासीन" हैं. उन्होंने कहा...
"हमारे घर के सामने वाली मस्जिद पर सबसे पहले हमला किया गया. उन्होंने पवित्र कुरान को फाड़ दिया और पन्ने सड़कों पर फेंक दिए. उन पन्नों को इकट्ठा करने के बाद, हम सभी अलग-अलग दिशाओं में भागे. मैं पुलिस स्टेशन की ओर गया और मेरे पिता विपरीत दिशा में चले गए, मेरे पिता और मेरे चाचा दोनों मारे गए. हमारे पड़ोस में दो और लोग मारे गए.''
शाहिद के चाचा रफीक, जो अपने दो कमरों के साधारण घर में उनके बगल में बैठे थे, ने इस उदासीन दृष्टिकोण के पीछे का कारण बताया. रफीक ने कहा...
"आपका मंदिर बन रहा है, हम इससे बहुत खुश हैं. हमने सुप्रीम कोर्ट के एक तरफा फैसले को भी स्वीकार कर लिया है लेकिन आपने वादा किया था कि अयोध्या शहर में मस्जिद भी बनाई जाएगी लेकिन जो जमीन है, यहां से 25 किमी दूर आवंटित की गई है. क्या यहां रहने वाले लोग सुबह 4 बजे उठकर नमाज पढ़ने के लिए 25 किमी दूर जाएंगे?"
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