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रामविलास पासवान: चुनाव की नब्ज पकड़ने वाले ‘डॉक्टर’ की कहानी

1989 में जीत के बाद वह वी पी सिंह की कैबिनेट में पहली बार शामिल किए गए और उन्हें श्रम मंत्री बनाया गया.

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वीडियो एडिटर: पुनीत भाटिया

वीडियो प्रोड्यूसर: मौसमी सिंह

अलग-अलग सरकारों में देश के 6 प्रधानमंत्रियों के कैबिनेट में बतौर मंत्री काम करने वाला रामविलास पासवान नहीं रहें. मौजूदा मोदी सरकार में केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्री, पासवान पिछले काफी समय से बीमार चल रहे थे. दिल्ली के एक अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था. 74 साल के रामविलास पासवान की कुछ दिनों पहले ही दिल की सर्जरी भी हुई थी. पासवान ने अपनी राजनीतिक विरासत और पार्टी की कमान कुछ समय पहले ही चिराग पासवान को सौंप दी थी. निधन पर चिराग पासवान ने सोशल मीडिया पर लिखा- "पापा..अब आप इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन मुझे पता है आप जहां भी हैं हमेशा मेरे साथ हैं."

दलितों की राजनीति के लिए अपनी पहचान बना चुके रामविलास का जन्म बिहार के खगड़िया जिले के शाहरबन्नी गांव में 5 जुलाई 1946 को हुआ था. पासवान ने कोसी महाविद्यालय खगड़िया और पटना यूनिवर्सिटी से शिक्षा हासिल की थी.  

1960 के दशक में शुरू हुआ था राजनीतिक सफर

1989 में जीत के बाद वह वी पी सिंह की कैबिनेट में पहली बार शामिल किए गए और उन्हें श्रम मंत्री बनाया गया.
(साभार-खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग/भारत सरकार)

पासवान के राजनीतिक सफर की शुरुआत 1960 के दशक में विधायक के तौर पर हुई. आपातकाल के बाद 1977 के लोकसभा चुनावों से वह तब सुर्खियों में आए, जब उन्होंने हाजीपुर सीट पर 4 लाख वोट के रिकार्ड अंतर से जीत हासिल की.

1989 में पहली बार कैबिनेट में हुए शामिल

1989 में जीत के बाद वह वी पी सिंह की कैबिनेट में पहली बार शामिल किए गए और उन्हें श्रम मंत्री बनाया गया.एक दशक के भीतर ही वह एच डी देवगौडा और आई के गुजराल की सरकारों में रेल मंत्री बने.

1990 के दशक में जिस ‘जनता दल’ धड़े से पासवान जुड़े थे, उसने बीजेपी की अगुवाई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) )का साथ दिया और वह संचार मंत्री बनाए गए और बाद में अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार में वह कोयला मंत्री बने. बाबू जगजीवन राम के बाद बिहार में दलित नेता के तौर पर पहचान बनाने के लिए उन्होंने आगे चलकर अपनी लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) की स्थापना की.

साल 2002 में यूपीए में हुए शामिल

वह 2002 में गुजरात दंगे के बाद विरोध में राजग से बाहर निकल गए और कांग्रेस के UPA की ओर गए. दो साल बाद ही सत्ता में संप्रग के आने पर वह मनमोहन सिंह की सरकार में रसायन एवं उर्वरक मंत्री नियुक्त किए गए. यूपीए-2 के कार्यकाल में कांग्रेस के साथ उनके रिश्तों में तब दूरी आ गयी जब 2009 के लोकसभा चुनाव में अपनी पार्टी की हार के बाद उन्हें मंत्री पद नहीं मिला. पासवान अपने गढ़ हाजीपुर में ही हार गए थे.

2014 में बीजेपी के साथ मिलकर लड़े चुनाव

2014 के लोकसभा चुनाव के पहले बीजेपी ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के जेडीयू के अपने पाले में नहीं रहने पर पासवान का खुले दिल से स्वागत किया और बिहार में उन्हें लड़ने के लिए सात सीटें दी. लोजपा छह सीटों पर जीत गयी. पासवान, उनके बेटे चिराग और भाई रामचंद्र को भी जीत मिली थी.नरेंद्र मोदी कार्यकाल में उन्हें खाद्य, जनवितरण और उपभोक्ता मामलों के मंत्री का पदभार दिया गया. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में नहीं खड़े हुए थे,

(इनपुट: भाषा से भी)

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