चंद महीने पहले डॉक्टरों के लिए जो देश ताली और थाली बजा रहा था, उसी देश में अब उन्हें 'जाहिल' और मेडिकल विज्ञान को 'कातिल' बताया जा रहा है. डॉक्टर सरकार से गुजारिश कर रहे हैं कि या तो हमपर ये तोहमत लगाने वाले रामदेव को सजा दीजिए या फिर हमें छुट्टी दे दीजिए. ताज्जुब सरकार चुप है. और ये सब कोरोना (Coronavirus) के कहर के बीच हो रहा है जब हमें डॉक्टरों की, उनके मनोबल की, उनके ज्ञान की सबसे इससे ज्यादा जरूरत है. लेकिन डॉक्टरों, मेडिकल साइंस को कातिल बताने और उसपर सरकार की चुप्पी में जितना दिख रहा है उतना ही है या मामला कुछ और भी है?
रामदेव का एलोपैथी विरोध
रामदेव (Ramdev) का एक वीडियो वायरल हुआ. इसमें वो कह रहे हैं-
एलोपैथी (Allopathy) स्टूपिड और दिवालिया साइंस है. क्लोरोक्विन-रेमेडिसिवर फेल हुई, एंटीबायोटिक-स्टेरॉयड फेल हो गए, प्लाज्मा थेरेपी पर बैन लग गई. लाखों लोगों की मौत एलोपैथी की दवा से हुई. जितने लोगों की मौत अस्पताल, ऑक्सीजन की कमी से हुई है, उससे ज्यादा मौत एलोपैथी की दवा से हुई है.
रामदेव के इस बयान के बाद इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने सरकार से मांग की है कि या तो आप कहिए कि रामदेव के आरोप सही हैं या फिर रामदेव पर एक्शन लीजिए. डॉक्टरों के इस संगठन ने रामदेव को लीगल नोटिस भी भेजा है.
IMA के इस कड़े रुख के बाद पतंजलि ने बयान जारी किया कि रामदेव की ऐसी मंशा नहीं थी. वो ऐलोपैथी को प्रोग्रेसिव साइंस मानते हैं. डैमेज कंट्रोल के लिए पतंजलि के एमडी बालकृष्ण ने भी ट्वीट कर यही बात दोहराई.
बयान और ट्वीट में बताया गया है कि दरअसल रामदेव एक वॉट्सऐप मैसेज पढ़ रहे थे. रामदेव ने खुद से एलोपैथी के बारे में कुछ बुरा नहीं कहा, बल्कि किसी वॉट्सऐप मैसेज को पढ़ सुना रहे थे.
हालांंकि, सफाई में दम नहीं है, इस बात का पता रामदेव के इस वायरल वीडियो का आखिरी 1 मिनट सुनकर लग जाता है. इसके साथ ही पतंजलि के लेटर को ध्यान से पढ़ेंगे तो आपको लाइन बिटविन लाइन भी काफी कुछ मिलेगा.
कोरोनिल और मेडिकल साइंस में फर्क
रामदेव ने कहा है कि कोरोना के इलाज में इस्तेमाल की गई कई दवाइयां फेल हो चुकी हैं. उनपर अब रोक लग चुकी है. कोई रामदेव को कैसे बताए कि इसी को विज्ञान कहते हैं. प्रयोग करते हैं. जो फेल होते हैं. फिर से प्रयोग होते हैं. सफल होते हैं. दुनिया को बताते हैं. आलोचना होती है. मूल्यांकन होता है. दुनिया की प्रयोगशाला में हां या ना होती है.
विज्ञान उसको नहीं कहते कि कह दिया कि कोरोनिल को WHO ने कोरोना की दवा के रूप में अप्रूव कर दिया है और फिर WHO ही मना कर दे कि ना जी हमने तो ऐसा नहीं कहा.
एलोपैथी के खिलाफ क्यों बोल रहे रामदेव?
मसला सिर्फ एलोपैथी और डॉक्टरों के खिलाफ बयान का है क्या? कहीं एलोपैथी और डॉक्टरों की कीमत पर किसी और का भला करने का प्लान तो नहीं? सिर्फ पतंजलि का फायदा नहीं, उससे आगे?
रामदेव के इस वीडियो पर सफाई तो आ गई है लेकिन वीडियो तो और भी हैं. क्या उनकी बातों में कोई पैटर्न है?
याद कीजिए कुछ दिन पहले बिन ऑक्सीजन मरते कोरोना मरीजों का रामदेव ने मजाक उड़ाया था.
''बेड कम पड़ गए, अस्पताल कम पड़ गए, दवा कम पड़ गई. श्मशान कम पड़ गए फूंकने के लिए..भगवान ने मुफ्त में ऑक्सीजन दे रखा है. ऑक्सीजन की कमी पड़ रही है... भगवान ने सारा ब्रह्मांड भर रखा है ऑक्सीजन से. ले तो ले बावले.चारों तरफ नकारात्मक वातावरण बना रखा है.''
और जरा इस बार के बयान का ये टुकड़ा फिर पढ़िए..
''लाखों लोगों की मौत एलोपैथी की दवा खाने से हुई है. जितने लोगों की मौत अस्पताल, ऑक्सीजन की कमी से हुई है उससे ज्यादा मौत एलोपैथी की दवा से हुई है."
दोनों बयानों में एक बात समान है कि ऑक्सीजन और बेड की कमी मौत की मुख्य वजह नहीं है.
डॉक्टरों के अपमान पर क्यों चुप सरकार?
अब इस सवाल पर आइए कि जो सरकार डॉक्टरों और हेल्थ वर्कर्स के लिए ताली और थाली बजवा चुकी है वो इस मेडिकल आपातकाल में डॉक्टरों के संगठन IMA के त्राहिमाम पर चुप क्यों है? जिस आपदा से देश को बचाने में 1000 से ज्यादा डॉक्टर शहादत दे चुके हैं उनके अपमान को सरकार चुपचाप क्यों देख रही है?
IMA के विरोध के बाद स्वास्थ्य मंत्री की एक चिट्ठी सामने आई है जिसमें उन्होंने रामदेव से अपना बयान वापस लेने का आग्रह किया है.
समझना है मुश्किल है कि कोरोना के कठिन काल में देशवासियों को जीवनदान दे रहे डॉक्टरों के अपमान करने वाले, जीवनरक्षक दवाओं के प्रति भ्रम पैदा करने वाले से सरकार करबद्ध मुद्रा में क्यों बात कर रही है?
क्या सरकार इसलिए रामदेव के खिलाफ कोई स्टैंड लेने से झिझक रही है क्योंकि उसके खुद के बड़े मंत्री रामदेव के साथ बैठकर कोरोनिल का प्रचार कर चुके हैं? या फिर यही सरकार का भी स्टैंड है? सरकार भी तो यही साबित करना चाहती है कि रिकॉर्डतोड़ मौतों के पीछे ऑक्सीजन, बेड की कमी नहीं है. ये बात 'मन की बात में कही गई है. कमी है कहने पर यूपी में सजा मिल सकती है. पॉजिटिव रहने का प्रवचन हम सुन चुके हैं.
सबसे खौफनाक सवाल
ये सारी बातें झूठ है. 'कोरोनिल कांड' सिर्फ एक दुर्घटना नहीं थी?
कोरोना के इलाज में गोबर-गोमूत्र के टोटकों पर रोक न लगना एक संदेश है?
मेडिकल साइंस और विज्ञान के खिलाफ सत्ता और उनके करीबियों का संकीर्तन कोरोना के मोर्चे पर नाकामी को छिपाने भर की सियासी चाल नहीं, बल्कि सत्ता की सोच यही हो गई है-अवैज्ञानिक?
अगर हां तो सत्ता और अवैज्ञानिक सोच के गठजोड़ का ये स्ट्रेन साइंस और सिटिजन दोनों की बलि लेता रहेगा.
नए भारत का ये अवैज्ञानिक आइडिया, उससे एकदम उलट है, जिस भारत को हम जानते हैं. हम किसी चीज या विचार पर आंख मूंद कर यकीन नहीं करते. सदियों से हमारी परंपरा सवाल करने की रही है. हम नए विचारों का स्वागत करते हैं. विचारों का समुच्चय ही हमारा 'विचार' है. विज्ञान का आइडिया ही भारत का आइडिया है.
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