इरशाद कई साल से अलीमुद्दीन को पुराने फीचर फोन के बदले स्मार्टफोन लेने को कह रहे थे, लेकिन वह नहीं माने. अलीमुद्दीन हंसते हुए कहते थे, ‘मेरे फोन की बैट्री चार दिन तक चलती है और तुम्हारे फोन की चार घंटे में खत्म हो जाती है.’ इरशाद ने अपने इसी फोन से दोस्त अलीमुद्दीन से आखिरी बार बात की थी.
उन्होंने बताया, ‘मैंने 29 जून को सुबह 8 बजे अलीमुद्दीन को फोन किया था. उस वक्त रामगढ़ शहर के लिए निकल रहे थे. उन्होंने कहा था कि छोटा सा काम है, निपटाकर आता हूं. डेढ़ घंटे बाद मैंने फिर फोन किया, तो उन्होंने कॉल रिसीव नहीं की. मैंने कई बार उन्हें फोन मिलाया. 10 बजे हमें मिलना था, तब उनका फोन बंद हो चुका था.’
रामगढ़ जिले के मनुआ गांव में रहने वाले इरशाद की आवाज यह कहते-कहते फुसफुसाहट में बदल गई.
अलीमुद्दीन अंसारी की 29 जून को एक भीड़ ने हत्या कर दी थी. उन पर बीफ रखने का आरोप लगाया गया था.
अलीमुद्दीन का बचपन गरीबी में गुजरा था. उनके तीन बेटे और तीन बेटियां हैं. इनमें से दो बच्चे जुड़वां हैं. 56 साल के अलीमुद्दीन ने पूरी जिंदगी बच्चों का भविष्य संवारने में लगा दी. वह सिर्फ चौथी क्लास तक पढ़े थे. उनकी पत्नी मरियम खातून ने बताया कि घर चलाने के लिए उन्होंने वो सारे काम किए, जो उन्हें मिले.
मरियम ने बताया कि उनके पति को बिरयानी पसंद नहीं थी. उन्होंने कहा, ‘मैं बच्चों के लिए बिरयानी बनाने के बाद उनके लिए चिकन करी बनाती थी.’
आखिरी बार जब अलीमुद्दीन ने अपनी पत्नी को जब खुदा हाफिज कहा, तब वह ब्लू जींस, ब्लू शर्ट और ब्राउन जूते पहने हुए थे. अलीमुद्दीन की 23 साल की बेटी समा परवीन ने बताया, ‘अब्बा के पास तीन या चार शर्ट थीं और दो जोड़े पैंट थे. वह उसी से संतुष्ट रहते थे.’
समा बच्चों में सबसे बड़ी हैं. सबसे छोटी 10 साल की सादिया परवीन है. वह हमें छत पर ले गईं और कहा, ‘यहां अब्बा घंटों लेटे रहा करते थे और अक्सर अम्मी भी उनके साथ आकर बैठती थीं.’
नीचे 18 साल के शाहबान अंसारी घर में अफसोस जताने के लिए जो लोग आ रहे थे, उन्हें चाय-पानी मिले, यह देख रहे थे. वह पास के गांव में मदरसे में पढ़ते हैं और परिवार के पास साल में दो बार आते हैं. उन्होंने बताया:
मैं जब भी घर आता था, अब्बा मुझे मुस्कुराते हुए गले लगा लेते थे. वह मुझसे पूछते थे कि क्या मैं और पढ़ना चाहता हूं, ताकि वह पैसों का इंतजाम कर सकें.
शाहबान ने कहा कि उन्हें नहीं पता कि वह मदरसे लौट पाएंगे या नहीं?
डेढ़ महीने पहले ही समा ने दिया था दूसरी बेटी को जन्म
डेढ़ महीने पहले समा ने दूसरे बेटी को जन्म दिया और वह अभी भी सर्जरी से उबर रही हैं. वह पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले से यहां आई हैं. उन्होंने बताया कि अब्बा हर हफ्ते उन्हें फोन करते थे. फोन पर वह मुझसे कहते, ‘क्या तुम शादी के बाद अपने अब्बा को भूल गई हो? सब ठीक तो चल रहा है ना?’
समा के पति शेख सबीर ने बताया कि पिछले साल जब उनके पिता का देहांत हुआ, तो किस तरह से अलीमुद्दीन ने उन्हें इस सदमे से उबरने में मदद की थी.
इरशाद और अलीमुद्दीन इसी गांव में साथ-साथ बड़े हुए. इस दौरान दोनों ने कई ईद साथ मनाई. दोस्त के साथ पिछली ईद को याद करते हुए इरशाद ने कहा कि जहां दूसरे लोग त्योहार के दौरान बाजार और दूसरी जगहों पर जश्न मनाने जाते थे, अलीमुद्दीन को परिवार के साथ घर पर ईद मनाना पसंद था.
उन्होंने कहा, ‘अलीमुद्दीन मुझसे कहते थे कि ईद के दिन सुबह-सुबह नमाज पढ़ने के बाद हम घर आए और पूरा दिन सोए.’
मनुआ गांव में जो मातम पसरा है, उसे देखकर यह यकीन करना मुश्किल है कि ईद को गुजरे अभी 15 दिन भी नहीं हुआ है, जब यहां जश्न का माहौल था.
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