नागपुर यूनिवर्सिटी में अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का इतिहास पढ़ाया जाएगा. इसे बीए सेकेंड ईयर, इतिहास में यूनिट 3 के एक चैप्टर के तौर पर जोड़ा गया है. चैप्टर का नाम है- 'Rashtriya Swayamsevak Sangh (RSS) Role in Nation building' यानी 'राष्ट्र निर्माण में RSS की भूमिका'. पहले इसकी जगह 'सांप्रदायिकता का उदय और विकास' नाम का चैप्टर था, जिसे हटाकर RSS का चैप्टर जोड़ा गया है.
बता दें, इतिहास से ग्रेजुएशन कर रहे यूनिवर्सिटी के छात्रों को दूसरे साल में साल 1885 से लेकर 1947 तक का देश का इतिहास बताया जाता है.
सिलेबस में बदलाव की जानकारी रखने वाले एक सूत्र ने बताया कि ऐसा इसलिए किया गया है कि छात्रों को इतिहास के 'नए ट्रेंड' के बारे में पता चले. यूनिवर्सिटी के बोर्ड ऑफ स्टडीज के मेंबर सतीश चाफले ने कहा,
इस साल, हम राष्ट्र निर्माण में आरएसएस के योगदान को इतिहास के छात्रों के लिए लेकर आए हैं ताकि वो इतिहास में होने वाले नए ट्रेंड के बारे में जान सकें. नए ट्रेंड जैसे मार्क्सवाद, नव-आधुनिकतावाद को इतिहास में पढ़ाया जाएगा.
यूनिवर्सिटी के इस कदम को सही ठहराते हुए चाफले कहते हैं कि इतिहास को फिर से लिखने से समाज के सामने नए तथ्य आते हैं.
उन्होंने कहा, "राष्ट्रवादी विचार के लोकमान्य तिलक जैसे नेता भी भारतीय इतिहास का हिस्सा है. इसी तरह संघ का इतिहास भी राष्ट्रवादी विचारों का हिस्सा है."
आरएसएस पर चैप्टर को सिलेबस में जोड़ने से हंगामा भी शुरू हो गया है. महाराष्ट्र कांग्रेस के प्रवक्ता ने ट्वीट किया, "नागपुर विश्वविद्यालय को आरएसएस और राष्ट्र निर्माण का संदर्भ कहां मिलेगा? संघ ने अंग्रेजों के साथ मिलकर देश को बांटने का काम किया, स्वतंत्रता आंदोलन का विरोध किया, 52 साल तक तिरंगा नहीं फहराया और संविधान की जगह मनुस्मृति लागू करना चाहता था."
महाराष्ट्र के पूर्व सीएम अशोक चह्वाण ने कहा, "आरएसएस के 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन, संविधान और तिरंगा के लिए विरोध को भी सिलेबस में शामिल किया जाना चाहिए."
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