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रवीश कुमार ने प्राइम टाइम पर दिखाया टीवी न्यूज का अंधेरा

NDTV इंडिया के एंकर रवीश कुमार ने प्राइम टाइम शो पर टीवी न्यूज की शोर में बदलती बहसों के बारे में बताया.

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भारत
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9 फरवरी की शाम, जेएनयू में कुछ लोगों द्वारा देशद्रोही नारेबाजी किए जाने के बाद देशभर में टीआरपी रेटिंग में आगे रहने वाले चैनलों और एंकरों ने बिना कोर्ट-कचहरी के कुछ छात्रों को देश-द्रोही और एंटी-नैशनल ठहराना शुरू कर दिया. एंकरों ने कुर्सी-तोड़ एंकरिंग की और पैनल में शामिल लोगों की आवाज को बंद करके अमेरिकी रैपर एमिनेम से भी तेज और फर्राटेदार अंग्रेजी बोलते हुए जेएनयू छात्रों पर देशद्रोह का तमगा लगा दिया.

जेएनयू परिसर के बाहर खड़ी ओवी वैन्स को चैनल के एंकरों की बड़ी और आक्रामक तस्वीरों से पोत दिया गया. एक वैन पर लिखा गया “पहले देशभक्त फिर पत्रकार”. ये बात मेरे समझ से बाहर थी है कि देशभक्ति और पत्रकारिता में पहले और बाद की तुलना आखिर क्यों?

आपमें से भी कई लोग इन सवालों से जूझ रहे होंगे कि आखिर क्यों एंकर इतने उत्तेजित हो रहे् हैं. आखिर क्यों इन एंकरों का गुस्सा टीवी से होते हुए सोशल मीडिया में दिखाई दे रहा है? ऐसे सभी सवालों का जवाब देने के लिए NDTV इंडिया के प्राइम टाइम एंकर रवीश कुमार लेकर आए हैं एक नए तरह का प्राइम टाइम.

पढ़िए टीवी न्यूज की इस बुरी गत पर क्या कहते हैंरवीश -

आप सबको पता ही है कि हमारा टीवी बीमार हो गया है. पूरी दुनिया में टीवी में टीबी हो गया है. हम सब बीमार हैं. मैं किसी दूसरे को बीमार बताकर खुद को डॉक्टर नहीं कह रहा. बीमार मैं भी हूं. पहले हम बीमार हुए अब आप हो रहे हैं. आपमें से कोई न कोई रोज़ हमें मारने पीटने और ज़िंदा जला देने का पत्र लिखता रहता है. उसके भीतर का ज़हर कहीं हमारे भीतर से तो नहीं पहुंच रहा. मैं डॉक्टर नहीं हूं. मैं तो ख़ुद ही बीमार हूं. मेरा टीवी भी बीमार है. डिबेट के नाम पर हर दिन का यह शोर शराबा आपकी आंखों में उजाला लाता है या अंधेरा कर देता है. आप शायद सोचते तो होंगे.

फिर अंधेरे की दुनिया में ले गए रवीश

इसलिए हम आपको टीवी की उस अंधेरी दुनिया में ले जाना चाहते हैं जहां आप तन्हा उस शोर को सुन सकें. समझ सकें. उसकी उम्मीदों, ख़ौफ़ को जी सकें जो हम एंकरों की जमात रोज़ पैदा करती है. आप इस चीख को पहचानिये. इस चिल्लाहट को समझिये. इसलिए मैं आपको अंधेरे में ले आया हूं. कोई तकनीकी ख़राबी नहीं है. आपका सिग्नल बिल्कुल ठीक है. ये अंधेरा ही आज के टीवी की तस्वीर है. हमने जानबूझ कर ये अंधेरा किया है. समझिये आपके ड्राईंग रूम की बत्ती बुझा दी है और मैं अंधेरे के उस एकांत में सिर्फ आपसे बात कर रहा हूं. मुझे पता है आज के बाद भी मैं वही करूंगा जो कर रहा हूं. कुछ नहीं बदलेगा, न मैं बदल सकता हूं. मैं यानी हम एंकर. तमाम एंकरों में एक मैं. हम एंकर चिल्लाने लगे हैं. धमकाने लगे हैं. जब हम बोलते हैं तो हमारी नसों में ख़ून दौड़ने लगता है. हमें देखते देखते आपकी रग़ों का ख़ून गरम होने लगा है. धारणाओं के बीच जंग है. सूचनाएं कहीं नहीं हैं. हैं भी तो बहुत कम हैं. हमारा काम तरह तरह से सोचने में आपकी मदद करना है. जो सत्ता में है उससे सबसे अधिक सख़्त सवाल पूछना है. हमारा काम ललकारना नहीं है. फटकारना नहीं है. दुत्कारना नहीं है. उकसाना नहीं है. धमकाना नहीं है. पूछना है. अंत अंत तक पूछना है. इस प्रक्रिया में हम कई बार ग़लतियां कर जाते हैं. आप माफ भी कर देते हैं. लेकिन कई बार ऐसा लगता है कि हम ग़लतियां नहीं कर रहे हैं. हम जानबूझ कर ऐसा कर रहे हैं. इसलिए हम आपको इस अंधेरी दुनिया में ले आए हैं. आप हमारी आवाज़ को सुनिये. हमारे पूछने के तरीकों में फर्क कीजिए. परेशान और हताश कौन नहीं है. सबके भीतर की हताशा को हम हवा देने लगे तो आपके भीतर भी गरम आंधी चलने लगेगी. जो एक दिन आपको भी जला देगी.

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