- MNS ने पाकिस्तानी कलाकारों वाली फिल्मों के निर्माताओं से पांच करोड़ रुपये आर्मी वेलफेयर फंड में देने की मांग की है.
- सीनियर आर्मी अधिकारी और दिग्गज इस बात से खफा हैं कि सेना को भी राजनीति में खींचा जा रहा है.
- यह देखा गया है कि MNS फिल्म निर्माता को धमकाकर पछताने को मजबूर करने में कामयाब हो गया.
- मैंने खुद रक्षा मंत्री से इस बेकार ऑफर को कैंसिल करने का आग्रह किया है.
मामले की शुरुआत महाराष्ट्र की एक राजनीति पार्टी MNS द्वारा फिल्म "ऐ दिल है मुश्किल" का विरोध करने के बाद से हुई. उसके बाद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने भारतीय सेना को राजनीति में घसीट लिया.
राजनीति पार्टी MNS का विरोध करने का कारण इस फिल्म में पाकिस्तानी कलाकारों का होना था. MNS ने इस फिल्म को रिलीज न करने की धमकी दी थी. केंद्र और मुख्यमंत्री ने ऐलान किया था कि फिल्म रिलीज में किसी भी तरह की रुकावट डालने वाले को माफ नहीं किया जाएगा. इसके बावजूद मुख्यमंत्री कुछ शर्तों को मानने के लिए तैयार हो जाते हैं.
क्या ये कानून-व्यवस्था का मामला था?
22 अक्टूबर को मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से मुलाकात के बाद MNS लीडर राज ठाकरे ने कहा:
जिन निर्माताओं की फिल्मों में पाकिस्तानी कलाकारों का रोल है, उन्हें कुछ पैसों का भुगतान करना होगा. मैंने हर एक फिल्म के लिए सेना कल्याण कोष में 5 करोड़ रुपये देने का सुझाव किया है.राज ठाकरे, MNS लीडर
यह मामला सीधा-सीधा रंगदारी का है. जो MNS लीडर फिल्म निर्माताओं से पैसा छीनकर भारतीय सेना को दे रहे हैं. ऐसा लगता है, जैसे MNS के पास किसी फिल्म को रिलीज करने और न करने का अधिकार है. ऐसा लगता है यह कानून-व्यवस्था का मामला है, जो राज्य सरकार ने तुरंत ही इस मामले में सुनवाई की.
लेकिन भारतीय सेना के वेलफेयर को मुंबई की राजनीति में घसीटा गया, इस बात को कानून-व्यवस्था कहा गया.
क्या सरकार को और अधिक ध्यान नहीं देना चाहिए था?
कई रिटायर्ड अधिकारियों को इस बदलाव से काफी दर्द हुआ है. मैंने पर्सनली रक्षामंत्री से इस ऑफर को कैंसिल करने का आग्रह किया.
भारत की सेना देश के नागरिकों से सिर्फ प्यार और सम्मान की चाहत रखती है. वह देश की हिफाजत के लिए दुश्मनों से लड़ते-लड़ते अपनी जान तक दे देती है. इसलिए किसी जवान के शहीद हो जाने पर उनको तिरंगे में लपेटकर सम्मान से विदा किया जाता है.
सेना अपने लिए हर एक नागरिक से बस दिल से सम्मान देने की अपेक्षा रखती है.
(लेखक सामरिक मामलों के जानकार हैं और वर्तमान में सोसायटी फॉर पॉलिसी स्टडीज के डायरेक्टर हैं. इस आलेख में प्रकाशित विचार उनके अपने हैं. आलेख के विचारों में क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)
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