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बिल्‍डर की देरी के साइड इफेक्‍ट: दिल्‍ली में बेतहाशा बढ़ा किराया

देश में घरों के किराये पिछले कुछ समय में किस तरह बढ़े हैं, जानने के लिए पढ़े ये खास रिपोर्ट

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हाल ही में जारी हुए कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स के आंकड़ों में एक बड़ा दिलचस्प तथ्‍य सामने आया है. ये आंकड़ा है देश में घरों के किराये पिछले कुछ समय में किस तरह से बढ़े हैं.

साल 2012 से लेकर अगस्त, 2016 तक की अवधि में पूरे देश में घरों के किराये बढ़ने की औसत दर है 27.3%. कई इलाकों में किराये इस दर से ज्यादा, तो कहीं कम भी बढ़े हैं. दिलचस्प बात ये है कि देश में सबसे ज्यादा तेज रफ्तार से किराये में बढ़ोतरी दर्ज की है दिल्ली ने. उपर्युक्त अवधि में दिल्ली में घरों के किराये 41.4% बढ़े हैं.

इसके बाद नंबर है तमिलनाडु का, जहां किराया बढ़ने की रफ्तार 36.4% रही. आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में ये दर 35-35% रही है. हैरत की बात है कि देश के दो सर्वाधिक विकसित राज्य माने जाने वाले गुजरात और महाराष्ट्र में घरों के किराये बढ़ने की दर राष्ट्रीय औसत से भी काफी कम है और दिल्ली के मुकाबले करीब आधी. गुजरात में जहां ये दर 20.8% है, वहीं महाराष्ट्र में ये है 19.2%. पंजाब और हिमाचल प्रदेश में भी घरों के किराया बढ़ने की रफ्तार 2012 से 2016 की अवधि के दौरान 18% के आसपास रही.

सबसे महंगा किराया दिल्ली में

सरकार के जारी किए आंकड़ों से तो ऐसा ही लगता है कि राजधानी दिल्ली में किराये पर रहना सबसे महंगा है. साथ ही यहां किराये के घरों की मांग भी सबसे ज्यादा है. लेकिन रियल एस्टेट एक्सपर्ट मानते हैं कि सिर्फ इन आंकड़ों के आधार पर इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सकता. उनके मुताबिक, किसी इलाके में घरों के किराये बढ़ने की रफ्तार कई तथ्यों पर निर्भर करती है. इनमें सबसे अहम होता है उस इलाके में किराये और घर की कीमत का अनुपात.

माना जाता है कि किसी भी घर से मिलने वाला सालाना किराया उसकी बाजार कीमत का 2.5-3% के बीच होना चाहिए. अगर किराया इस दायरे से कम होता है, तो उसके बढ़ने की रफ्तार ज्यादा होती है और इस दायरे से ज्यादा किराया होने पर उसमें बढ़ोतरी कम होगी. जानकारों के मुताबिक, दिल्ली में घर किराये में सबसे ज्यादा वृद्धि दर की एक बड़ी वजह तो यही है कि यहां के ज्यादातर इलाकों में बेस किराये (2012 में जो किराये थे) निचले स्तर पर थे, जिस वजह से यहां बढ़ोतरी सबसे ज्यादा दिख रही है.

दूसरी बड़ी वजह है कि पिछले चार साल की अवधि के दौरान दिल्ली-एनसीआर के इलाके में रियल एस्टेट मार्केट में प्रॉपर्टी की डिलीवरी बहुत बुरी तरह प्रभावित रही है. ज्यादातर रियल एस्टेट डेवलपर्स अपने वादों के मुताबिक घरों की डिलीवरी नहीं दे पाए हैं और इस वजह से किराये के घरों की मांग मजबूत बनी रही.

आबादी में तेज बढ़ोतरी का भी असर

रियल एस्टेट एक्सपर्ट दिल्ली में किराया सबसे ज्यादा बढ़ने की एक और वजह यहां की आबादी में तेज बढ़ोतरी को भी मानते हैं. साल 2012 में यहां की आबादी 1.71 करोड़ थी, जो 2016 में 1.86 करोड़ पहुंच चुकी है, यानी 4 साल में 9% की बढ़ोतरी हुई. गौरतलब है कि दिल्ली में आबादी की इस तेज बढ़ोतरी की प्रमुख वजह है प्रवासियों का बड़ी तादाद में यहां आना, जो घरों की मांग को मजबूत बनाए रखते हैं.

रियल एस्टेट जानकारों के मुताबिक तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में घरों के किराये में अच्छी-खासी बढ़ोतरी की वजह भी यही है कि दूसरे राज्यों से बड़ी तादाद में कामकाजी लोग पहुंच रहे हैं.

दक्षिण भारत के इन तीनों राज्यों में पिछले कुछ सालों में आईटी, सॉफ्टवेयर और ई-कॉमर्स कंपनियां बड़े पैमाने पर फली-फूली हैं और इसी का असर है कि इन राज्यों में, खासतौर पर इनकी राजधानी क्षेत्रों में, हाउसिंग की मांग मजबूत रही है.

दूसरी तरफ गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में किराये कम बढ़ने की बड़ी वजह जानकार ऊंचे बेस फेयर्स को ही मानते हैं. मुंबई, पुणे, नागपुर, अहमदाबाद जैसे शहरों में किराये 2012 में ऊंचे स्तर पर थे और इसी वजह से यहां किरायों में वैसी तेज बढ़ोतरी नहीं देखी गई. जानकार साफ तौर पर कहते हैं कि किसी भी इलाके में किराये और घर की बाजार कीमत का समीकरण निश्चित तौर पर काम करता है, इसलिए किराये कभी भी एक सीमा से ज्यादा नहीं बढ़ सकते.

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