महाराष्ट्र पुलिस ने 4 नवंबर को रिपब्लिक टीवी (Republic TV) के मालिक और एडिटर-इन-चीफ अर्णब गोस्वामी (Arnab Goswami) को गिरफ्तार किया. अर्णब को 2018 के आत्महत्या के लिए उकसाने के एक मामले में गिरफ्तार किया गया है.
अर्णब की गिरफ्तारी के बाद बीजेपी नेताओं ने प्रतिक्रिया देते हुए इसे ‘प्रेस की आजादी’ पर खतरा बताते हुए इसकी तुलना इमरजेंसी से की. गृहमंत्री अमित शाह से लेकर केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी, प्रकाश जावडेकर, रवि शंकर प्रसाद, यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ समेत कई बीजेपी नेताओं ने अर्णब गोस्वामी का समर्थन किया.
नेताओं से गोस्वामी को मिला ये समर्थन देश में राइट-विंग हिपोक्रेसी को उजागर करता है. अर्णब की गिरफ्तारी के बाद कई लोगों ने सड़कों पर उतर कर उनकी गिरफ्तारी का विरोध किया और इसे रिपब्लिक टीवी के खिलाफ सत्ता का दुरुपयोग बताया.
लेकिन जब प्रशांत कनौजिया जैसे पत्रकार, और उमर खालिद और डॉ कफील खान जैसे एक्टिविस्ट को गिरफ्तार किया गया था, तब राइट-विंग लोगों ने इसके खिलाफ बोलने से इनकार कर दिया था और इसे 'कानून' बताया था. तो बाकी पत्रकारों की गिरफ्तारी पर मौन क्यों थे सब?
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